Wednesday, July 18, 2018

तुम थी कोई और न था

जब मैं एक अरसे बाद मुस्कुराया था ,
जब मैं एक खामोशी के बाद खिलखिलाया था ,
तो वो तुम थी कोई और न था !
तो वो सिर्फ तुम थी कोई और न था !!
कि जब मैं रोया था बहुत ,
फ़िर चैन से सोया था बहुत ,
वहाँ तुम थी कोई और न था !
जब जहाँ बिखरता था मैं सँवार लेती थी तुम,
इस तरह खुद को निखार लेती थी तुम ,
मेरे उलझे सफ़र में हमसफ़र की तरह,
सीधी पगडंडी , सादा डगर की तरह ,
तुम थी कोई और न था !!
वो जो हँसी में झूमा करता था ,
बेफिक्री में घूमा करता था ,
तब साथ तुम थी कोई और न था !!
लेकिन कल रात ,
तुम्हारे बाद…तुम्हारी याद में,
खोया था ज़िंदगी में बहुत,
रखकर कंधे पे सिर मैं  रोया था बहुत ,
वहाँ कोई और था तुम न थी !
वहाँ कोई और था !! तुम न थी !!
कितना अजीब सा न …
कि पहले तुम थी कोई और न था !!

✍ पं.खेमेस्वर पुरी गोस्वामी ✍

मुंगेली-छत्तीसगढ़ 8120032834

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