बहिनी हरस तैं.....
रचना - पं.खेमेस्वर पुरी गोस्वामी
"छत्तीसगढ़िया राजा"
मुंगेली-छत्तीसगढ़-7828657057
बहिनी हरस तैं..
हर भाई के अरमान हरस तैं
राखी के डोरी में बंधाय
एक मनभावन पहचान हरस तैं,
मां के जइसे हे मान तोर
घर-घर पावत सम्मान हरस तैं.
स्वार्थ भरे ए दुनिया में
एक सुख के अहसास हरस तैं.
घायल हाथ के पट्टी बरोबर,
हर पीरा के बाम हरस तैं.
मया का जलत दीया सही,
ममता के मुरत महान हरस तैं.
संचारी हे रूप हर तोर,
सर्वोत्तम जीवन के आयाम हरस तैं.
तोर ले..
तोर ले सूरूज-चाँद बंदैनी,
झीलमिल,झिलमिल करत चंदैनी ,
हरा-भरा जीवन हे ताेर ले,
सच्चा सुख के संसार हरस तैं.
कतका सुघर,कतना कोमल
हे तोर डोरी के बंधना
मृग बन खोजत रहे जौन खुशबू,
ओखर भी स्रोत साकार हरस तैं.
जब-जब माथा म तिलक लगाथस
राखी बांध जब तैं मुस्काथस,
खुशी के एक धार निकलथे,
लगथे सृष्टि साकार हरस तैं.
पाती म सिमटे हे तोर बात,
भींगे सावन के सौगात
डोरी में बंध बढ़थे जीवन
फूल बगिया के बहार हरस तैं
धरती हस तैं,आसमान हस तैं,
चमत्कारी वरदान हस तैं
रिश्ता के केंद्र बिंदु हस,
मोर हिरदे के बहिनी हरस तैं....!
जम्मो दीदी मन सादर प्रणाम
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