शिवजी की पंचवक्त्र पूजा
हिन्दू सनातन धर्मका सबसे बड़ा पर्व उत्सव मतलब महाशिवरात्रि। इस महारात्रि के मध्य समय ( रात्रि के 12 बजे ) वो ही ये समय है जब निराकार शिव से पांच तत्व ओर तत्व देवताओ का प्रागट्य हुवा। इसलिए ही महाशिवरात्रि के जागरण का महत्व है । दिनभर शिबलिंग पर अभिषेक पूजा और हर प्रहर की पूजा के बाद रात्रि के तीसरे प्रहर ( मध्यरात्र ) के समय शिबलिंग पर जानकार विद्वान ब्राह्मणों , उपासको ,शंकराचार्यो सहित दंडी स्वामी ओर श्री महाराज जैसे महापुरुषों द्वारा पंचवक्त्र पूजा की जाती है।
गुरु गणपति की पूजा करके शिबलिंग पर दुग्ध,दंहि, घी,मधु,शक्कर ,गन्ने का रस , श्रीफल जल,गंगाजल,आमरस, द्राक्षसव,बिगैरे उत्तम द्रव्यों का अभिषेक किया जाता है । शिव लिंग के पूर्वमुख पर केसर तिलक करके भगवान सूर्य नारायण की पूजा तत्पुरुषाय नमः के स्वरूप की जाती है । शिवलिंग के पश्चिम मुख पर ॐ सद्योजात देवतायें नमः स्वरूप महागणपति (आदि ब्रह्मा)की रक्त चंदन का तिलक करक ेपूजा की जाती है। शिवलिंग के उत्तरमुख पर हल्दीचंदन का तिलक करके ॐ वामदेवाय नमः से भगवान विष्णु नारायण की पूजा की जाती है । शिबलिंग के दक्षिणमुख पर भस्म चंदन जा तिलक करके श्री अघोरेश्वर शक्ति स्वरूप की पूजा की जाती है। शिवलिंग के उर्ध्व(ऊपर)मुख पर सफेद चंदन का तिलक करके श्री ईशानाय नमः से भगवान सदाशिव की पूजा की जाती है। इस पाचो मुख की पूजा के मंत्र,मुद्रा,नैवेद्य,धूप,स्तोत्र ये तंत्र मार्ग है इसलिए गोपनीय रखा जाता है पर कोई साधक आपको ये पूजा करवा सकता है। रात्रि के इस समय शिव दर्शन करना ,जप जाप मंत्र माला करना सर श्रेष्ठ है। महाशिवरात्रि का उपवास करे ,शिवपूजा करे ,शिवमंत्र का जाप करे और संभव हो तो रात्रि का जागरण कर मध्य रात्रि को शिव दर्शन और मंत्र जाप अबश्य करे।
ऐसे तो ये पोस्ट पहले भी दे चुके है ,किन्तु कल महाशिवरात्र पर्व है इसलिए भाविक भक्तो के मार्गदर्शन केलिए फिरसे आज रख रहे है।
ब्रह्म का मूल स्वरूप
निराकार ब्रह्म शिव का मूल स्वरूप प्रकाश पूंझ है और उनका नाद है ॐ कार.. एक से अनेक रूप की कल्पना मात्र से पाँच तत्व भूमि,जल,वायु,अग्नि ओर आकाश तत्व प्रकट हुवे ओर उन पांचो तत्व के देव भूमि से - (सद्योजात) महागणपति , वायु से - (वामदेव) नारायण , अग्नि से - (तत्पुरुष) सूर्यदेव , जल से - (अघोरेश्वर) शक्ति और आकाश से - (ईशान) महादेव प्रकट हुवे ओर इन पंचदेवों ने 14 ब्रह्मांड रचाया..इन सभी ब्रह्म शक्तिओ से अंशरूप अनेक देवी ,देवता ,वीर,भैरव,योगिनी,जति, सती,राम,कृष्ण,ऋषियादी अवतारों समय समय पर प्रकट होते रहते है..
सतयुग के सप्तर्षि ओर सनकादिक मुनिओ ने प्रकाश पुंज ज्योत स्वरूप शिव जी जहाँ प्रकट हुवे वहां ज्योत आकार शिवलिंग की स्थापना की ..ज्योत स्वरूप है इसलिए ज्योतिर्लिंग कहते है ..हरेक देवी देवता ,वीर ,भैरव सभी शिव का ही अंश है इसलिए उन सभी की पूजा शिवलिंग में ही कि जाति है..द्वापर युग के बाद मूर्ति पूजा प्रथा शुरू हुई और अनेक देवी देवताओ की मूर्ति स्थापना होने लगी और धीरे धीरे हिन्दू सनातन धर्म की प्रकृति और प्रकृति के तत्व देवता स्वरूप की पूजा और जानकारी लुप्त होती गई..आज ब्रह्मविद्या के उपासक या उच्च कोटि के साधक साधु संत के अलावा शिवलिंग के विषयमे ज्ञान ही नही है..
विश्व के किसी भी मंदिर में शिवलिंग की पूजा करो ब्रह्मांड के हरेक देवी देवताओ की पूजा अपनेआप हो जाती है.शंकराचार्य परंपरा और उच्च कोटि के साधु संत उपासक आज भी शिवजी का पंचवक्त्र पूजन करते है..
किसी भी मंदिरमे शिवलिंग का पूर्व दिशा का मुख सूर्यदेव है ,उन्हें तत्पुरुष भी कहते है.पश्चिम दिशाका मुख महागणपति है उन्हें सद्योजात कहते है.उत्तर दिशाका मुख नारायण है उन्हें वामदेव कहते है.दक्षिण दिशाका मुख भगवती है उन्हें अघोरेश्वर कहते है और उर्ध्व मुख महादेव है उन्हें इशानरूप कहते है.इस तरह शिवलिंग की पूजा से पाँच तत्व देवता और उन्ही के अंश रूप तमाम देवी ,देवता,वीर,भैरव,योगनी,जति,सती संसार के तमाम देवी देवता की पूजा हो जाती है.
शिवालय एक यंत्र है .विद्धवान सोमपुरा ,विद्धवान ब्राह्मण , उच्चकोटि के साधु संत के मार्ग दर्शन से बने शिवालय स्वयम ही फलदायी दिव्य धाम बन जाते है
आपका अपना
"पं.खेमेश्वर पुरी गोस्वामी"
धार्मिक प्रवक्ता-ओज कवि
मुंगेली छत्तीसगढ़
प्रदेश संगठन मंत्री एवं प्रवक्ता
अंतरराष्ट्रीय युवा हिंदू वाहिनी छत्तीसगढ़
८१२००३२८३४-/-७८२८६५७०५७
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