Tuesday, March 3, 2020

होरी कैसे गली में खेले अब हमार री

होरी कैसे गलिन में खेले कान्हा अब हमार री।।टेक।।

बिन मौसम जो बदरा बरसें ओले पड़े हजार री।
गेहूं चना सरसों फूल झरैगें बाचैं न तो तुँआर री।।होरी.

बच्चें बुढ़े मिलकर खेलते,खेलते गांव की नाररी।
भर-भर रंग परस्पर छोड़ते,हो गए सब बिमार री।। होरी.

लाल गुलाल अबीर उड़ाते,केसर छुटते फुवार री।
भूषण बदन सब भीनते,उछाव न बिन आधार री।। होरी.

हाथ हिलाय अब सिर धुनैं,फसलों को बुखार री।
खेमेश्वर रंग कैसे बिसायें, कैसे मनाएं त्योहार री।।होरी.

              ©पं.खेमेश्वर पुरी गोस्वामी ®
                   ओज-व्यंग्य कवि
                  मुंगेली - छत्तीसगढ़
     7828657057 - 8120032834

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