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Monday, July 2, 2018

एही हमार औकात

"एही हमार अवखाद"।।।
रचना:- पं.खेमेस्वर पुरी गोस्वामी
"छत्तीसगढ़िया राजा"
मुंगेली-छत्तीसगढ़©-८१२००३२८३४
 
एक डब्बी के कांड़ी,
एक घीव के लोटा,
लकड़ी-छेना के उपर म
कुछ घण्टा म राख.....
बस अतकेच
      मनखे के अवखाद!!!

एक डोकरा बबा संझा कुन मर गिस ,
अपन पुरा ज़िन्गानी,
परिवार के नाम कर दिस,
कोनो कति रो के सुगबुगावंय ,
त कोनो डहर फुसफुसावंय ....
अरे जल्दी लेगव ऐला
कोन रखहि पुरा रात...
बस अतकेच
       मनखे के अवखाद!!!!

मरे के बाद तरी डहन देखिस ,
नज़ारा नज़र आवत रिहिस,
मोर मरना म.....
कोनो मन ज़बरदस्त,
त कोनो ज़बरदस्ती
रोत रिहिस।

नि रहिस.. ........चल दिस...
चार दिन करहीं बात.........
बस अतकेच
     मनखे के अवखाद!!!!!

बेटा बने असन फोटू बनवाही,
आगु में अगरबत्ती जलाही ,
मोंगरा फूल के माला होही...
अखबार म अश्रुपूरित श्रद्धांजली होही.........
बाद म ओही फोटू के,
जाला  ल करही कोन हर साफ़...
बस अतकेच
    मनखे के अवखाद !!!!!!

जिनगी भर,
मोर- मोर- मोर करेंव....
अपन बर कम ,
अपन मन बर जादा जीयेंव...
कोई नि देवय साथ...
जाबोन खाली हाथ....
का फूटी कौड़ी घलो लेगे के
हवय हमार अवखाद ???

  "एही हमार अवखाद"
रे संगी
"एही हमार अवखाद"।।।

न्यू २

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