"एही हमार अवखाद"।।।
रचना:- पं.खेमेस्वर पुरी गोस्वामी
"छत्तीसगढ़िया राजा"
मुंगेली-छत्तीसगढ़©-८१२००३२८३४
एक डब्बी के कांड़ी,
एक घीव के लोटा,
लकड़ी-छेना के उपर म
कुछ घण्टा म राख.....
बस अतकेच
मनखे के अवखाद!!!
एक डोकरा बबा संझा कुन मर गिस ,
अपन पुरा ज़िन्गानी,
परिवार के नाम कर दिस,
कोनो कति रो के सुगबुगावंय ,
त कोनो डहर फुसफुसावंय ....
अरे जल्दी लेगव ऐला
कोन रखहि पुरा रात...
बस अतकेच
मनखे के अवखाद!!!!
मरे के बाद तरी डहन देखिस ,
नज़ारा नज़र आवत रिहिस,
मोर मरना म.....
कोनो मन ज़बरदस्त,
त कोनो ज़बरदस्ती
रोत रिहिस।
नि रहिस.. ........चल दिस...
चार दिन करहीं बात.........
बस अतकेच
मनखे के अवखाद!!!!!
बेटा बने असन फोटू बनवाही,
आगु में अगरबत्ती जलाही ,
मोंगरा फूल के माला होही...
अखबार म अश्रुपूरित श्रद्धांजली होही.........
बाद म ओही फोटू के,
जाला ल करही कोन हर साफ़...
बस अतकेच
मनखे के अवखाद !!!!!!
जिनगी भर,
मोर- मोर- मोर करेंव....
अपन बर कम ,
अपन मन बर जादा जीयेंव...
कोई नि देवय साथ...
जाबोन खाली हाथ....
का फूटी कौड़ी घलो लेगे के
हवय हमार अवखाद ???
"एही हमार अवखाद"
रे संगी
"एही हमार अवखाद"।।।