🌹धुंआ दर्द बयाॅ करता है और राख कहानियां छोड़ जाती है........
कुछ की बातों में भी दम नहीं होता और कुछ की खामोशियां भी निशानियां छोड़ जाती हैं........🌹
🌹☕ *सुप्रभात* ☕🌹
🌹धुंआ दर्द बयाॅ करता है और राख कहानियां छोड़ जाती है........
कुछ की बातों में भी दम नहीं होता और कुछ की खामोशियां भी निशानियां छोड़ जाती हैं........🌹
🌹☕ *सुप्रभात* ☕🌹
*नमस्कार*
*मुस्कान मानव हृदय की मधुरता को दर्शाता है*
*और शांति बुद्धि की परिपक्वता को*
*और दोनों का ही होना*
*मनुष्य की संपूर्णता को बताता है...*
*सुप्रभात*
।।। *जय सियाराम* ।।।
*आपका दिन शुभ एवं मंगलमय हो...*
*🙏🌹जय श्री श्याम जी🌹🙏*
. *मदद करना सीखिये*
. *फायदे के बगैर.*
. *मिलना जुलना सीखिये*
. *मतलब के बगैर.*
. *जिन्दगी जीना सीखिये*
. *दिखावे के बगैर.*
*अंधेरा वहां नहीं है, जहां तन गरीब है !*
*अंधेरा वहां है, जहां मन गरीब है..!!*
✨✨✨
*🙏🌹जय जय श्री राधे🌹🙏। 🌞सु--प्रभातम🌞*
*🌹🍃🍂सुप्रभात🍂🍃🌹*
*जीवन बहुत छोटा है, उसे खूबसूरती से जीयो.*
*प्रेम दुर्लभ है, उसे पकड़ कर रखो.*
*क्रोध बहुत खराब है, उसे दबा कर रखो.*
*भय बहुत भयानक है, उसका सामना करो.*
*स्मृतियां बहुत सुखद हैं, उन्हें संजो कर रखो.*
*अगर आपके पास मन की*
*शांति है तो.....*
*समझ लेना आपसे अधिक*
*भाग्यशाली कोई नहीं है.!!*
🙏शुभ प्रभात।🙏
प्रभु को समझने की चेष्टा मत करिए ,समझा बुद्धि से किया जाता है, प्रभु बुद्धि का विषय नहीं हैं।।
प्रभु प्रेम का विषय है, प्रेम हृदय से किया जाते हैं।
प्रेम से ही उन्हें एहसास किया जा सकते हैं।।🙏🏻🏵🙇🏻
*🏵🙏🏻जय जय श्री राधे🙏🏻🏵*
*तुलसी कौन थी⁉⁉⁉*
तुलसी (पौधा) पूर्व जन्म में एक लड़की थी जिस का नाम वृंदा था, राक्षस कुल में उसका जन्म हुआ था बचपन से ही भगवान विष्णु की भक्त थी; बड़े ही प्रेम से भगवान की सेवा, पूजा किया करती थी, जब वह बड़ी हुई तो उनका विवाह राक्षस कुल में दानव राज जलंधर से हो गया, जलंधर समुद्र से उत्पन्न हुआ था।
वृंदा बड़ी ही पतिव्रता स्त्री थी सदा अपने पति की सेवा किया करती थी।
एक बार देवताओं और दानवों में युद्ध हुआ जब जलंधर युद्ध पर जाने लगे तो वृंदा ने कहा- स्वामी आप युद्ध पर जा रहे हैं आप जब तक युद्ध में रहेंगे मैं पूजा में बैठ कर आपकी जीत के लिये अनुष्ठान करुंगी, और जब तक आप वापस नहीं आ जाते, मैं अपना संकल्प नहीं छोडूंगी; जलंधर तो युद्ध में चले गये, और वृंदा व्रत का संकल्प लेकर पूजा में बैठ गयी, उनके व्रत के प्रभाव से देवता भी जलंधर को ना जीत सके, सारे देवता जब हारने लगे तो विष्णु जी के पास गये; सबने भगवान से प्रार्थना की तो भगवान कहने लगे कि– वृंदा मेरी परम भक्त है मैं उसके साथ छल नहीं कर सकता *..*..
फिर देवता बोले- भगवान दूसरा कोई उपाय भी तो नहीं है अब आप ही हमारी मदद कर सकते है।
भगवान ने जलंधर का ही रूप रखा और वृंदा के महल में पँहुच गये जैसे ही वृंदा ने अपने पति को देखा, वे तुरन्त पूजा में से उठ गई और उनके चरणों को छू लिए, जैसे ही उनका संकल्प टूटा, युद्ध में देवताओं ने जलंधर को मार दिया और उसका सिर काट कर अलग कर दिया, उनका सिर वृंदा के महल में गिरा जब वृंदा ने देखा कि मेरे पति का सिर तो कटा पडा है तो फिर ये जो मेरे सामने खड़े है ये कौन है? उन्होंने पूँछा- आप कौन हो जिसका स्पर्श मैने किया, तब भगवान अपने रूप में आ गये पर वे कुछ ना बोल सके, वृंदा सारी बात समझ गई, उन्होंने भगवान को श्राप दे दिया आप पत्थर के हो जाओ, और भगवान तुरन्त पत्थर के हो गये।
सभी देवता हाहाकार करने लगे लक्ष्मी जी रोने लगे और प्रार्थना करने लगी तब वृंदा जी ने भगवान को वापस वैसा ही कर दिया और अपने पति का सिर लेकर वे
सती हो गयी।
उनकी राख से एक पौधा निकला तब भगवान विष्णु जी ने कहा– आज से इनका नाम तुलसी है, और मेरा एक रूप इस पत्थर के रूप में रहेगा जिसे शालिग्राम के नाम से तुलसी जी के साथ ही पूजा जायेगा और मैं बिना तुलसी जी के भोग स्वीकार नहीं करुगा।
तब से तुलसी जी कि पूजा सभी करने लगे और तुलसी जी का विवाह शालिग्राम जी के साथ कार्तिक मास में किया जाता है; *देव-उठावनी एकादशी के दिन इसे तुलसी विवाह के रूप में मनाया जाता है।*
🕉🐚⚔🚩🌞🇮🇳⚔🌷🙏🏻
प्रस्तुति
"पं.खेमेश्वर पुरी गोस्वामी"
धार्मिक प्रवक्ता-ओज कवि
प्रदेश संगठन मंत्री एवं प्रवक्ता
अंतरराष्ट्रीय युवा हिंदू वाहिनी छत्तीसगढ़
८१२००३२८३४-/-७८२८६५७०५७
*अध्यात्म क्या है⁉⁉⁉*
अध्यात्म एक दर्शन है, चिंतन-धारा है, विद्या है, हमारी संस्कृति की परम्परागत विरासत है; ऋषियों, मनीषियों के चिंतन का निचोड़ है, उपनिषदों का दिव्य प्रसाद है; आत्मा, परमात्मा, जीव, माया, जन्म-मृत्यु, पुनर्जन्म, सृजन-प्रलय की *अबूझ पहेलियों को सुलझाने का प्रयत्न है अध्यात्म ..*..
अध्यात्म का अर्थ है अपने भीतर के चेतन तत्व को जानना, और दर्शन करना अर्थात अपने आप के बारे में जानना या आत्मप्रज्ञ होना, गीता के आठवें अध्याय में अपने स्वरुप अर्थात जीवात्मा को अध्यात्म कहा गया है, *परमं स्वभावोऽध्यात्म मुच्यते* आत्मा परमात्मा का अंश है *यह तो सर्वविदित है ..*..
जब इस सम्बन्ध में शंका या संशय, अविश्वास की स्थिति अधिक क्रियामाण होती है तभी हमारी दूरी बढ़ती जाती है, और हम विभिन्न रूपों से अपने को सफल बनाने का निरर्थक प्रयास करते रहते हैं जिसका परिणाम नाकारात्मक ही होता है, ये तो असंभव सा जान पड़ता है, मिट्टी के बर्तन, मिट्टी से अलग पहचान बनाने की कोशिश करें तो कोई क्या कहे? *यह विषय विचारणीय है ..*..
अध्यात्म की अनुभूति सभी प्राणियों में सामान रूप से निरन्तर होती रहती है, स्वयं की खोज तो सभी कर रहे हैं, परोक्ष व अपरोक्ष रूप से, परमात्मा के असीम प्रेम की एक बूँद मानव में पायी जाती है जिसके कारण हम उनसे संयुक्त होते हैं किन्तु कुछ समय बाद इसका लोप हो जाता है और हम निराश हो जाते हैं *..*..
सांसारिक बन्धनों में आनंद ढूंढते ही रह जाते हैं परन्तु क्षणिक ही ख़ुशी पाते हैं, जब हम क्षणिक संबंधों, क्षणिक वस्तुओं को अपना जान कर उससे आनंद मनाते हैं, जबकि हर पल साथ रहने वाला शरीर भी हमें अपना ही गुलाम बना देता है, हमारी इन्द्रियां अपने आप से अलग कर देती है यह इतनी सूक्ष्मता से करती है कि हमें महसूस भी नहीं होता की हमने यह काम किया है?
जब हमें सत्य की समझ आती है तो, जीवन का अंतिम पड़ाव आ जाता है व पश्चात्ताप के सिवाय कुछ हाथ नहीं लग पाता, ऐसी स्थिति का हमें पहले ही ज्ञान हो जाये तो शायद हम अपने जीवन में पूर्ण आनंद की अनुभूति के अधिकारी बन सकते हैं, हमारा इहलोक तथा परलोक भी सुधर सकता है *..*..
तो सज्जनों! अब प्रश्न उठता है की यह ज्ञान क्या हम अभी प्राप्त कर सकते हैं? हाँ, हम अभी जान सकते हैं की अंत समय में किसकी स्मृति होगी, हमारा भाव क्या होगा? हम फिर अपने भाव में अपेक्षित सुधार कर सकेंगे *..*..
*यंयंवापि स्मरन्भावं त्यजत्यन्ते कलेवरम्।*
*तं तमेवैति कौन्तेय सदा तद्भाव भावितः।।*
सज्जनों! सभी अपनी अपनी आखें बंद कर यह स्मरण करें की सुबह अपनी आखें खोलने से पहले हमारी जो चेतना सर्वप्रथम जगती है उस क्षण हमें किसका स्मरण होता है? बस उसी का स्मरण अंत समय में भी होगा, अगर किसी को *भगवान* के अतिरिक्त किसी अन्य चीज़ का स्मरण होता है तो अभी से वे अपने को सुधार लें *..*..
और निश्चित कर लें की हमारी आँखें खुलने से पहले हम अपने चेतन मन में *भगवान* का ही स्मरण करेंगे, बस हमारा काम बन जायेगा नहीं तो हम जीती बाज़ी भी हार जायेंगे, कदाचित अगर किसी की बीमारी के कारण या अन्य कारण से बेहोशी की अवस्था में मृत्यु हो जाती है *..*..
तो दीनबंधु भगवान उसके नित्य प्रति किये गए इस छोटे से प्रयास को ध्यान में रखकर उन्हें स्मरण करेंगे और उनका उद्धार हो जायेगा, *क्योंकि परमात्मा परम दयालु हैं जो हमारे छोटे से छोटे प्रयास से द्रवीभूत हो जाते हैं, ये विचार मानव-मात्र के कल्याण के लिए समर्पित है ..*!!
*जय श्री कृष्ण*
🕉🐚⚔🚩🌞🇮🇳⚔🌷🙏🏻
प्रस्तुति
"पं.खेमेश्वर पुरी गोस्वामी"
धार्मिक प्रवक्ता-ओज कवि
प्रदेश संगठन मंत्री एवं प्रवक्ता
अंतरराष्ट्रीय युवा हिंदू वाहिनी छत्तीसगढ़
८१२००३२८३४-/-७८२८६५७०५७
प्रति मां. मुख्यमंत्री श्री भूपेश बघेल जी रायपुर , छत्तीसगढ़ शासन विषय : आर्थिक सहायता,आवास, तथा आवासीय पट्टा दिलाने बाबत् आदरणीय महोदय, ...