।। राम-राम ।।
*"सांसारिक पुण्य और भगवत्सम्बन्धी पुण्य का फल"*
*परिशिष्ट भाव -* सांसारिक पुण्य तो पाप की अपेक्षा से ( द्वन्द्ववाला )
है, पर भगवान् के सम्बन्ध ( सत्संग,
भजन आदि ) - से होनेवाला पुण्य
( योग्यता, सामर्थ्य ) विलक्षण है ।
इसलिये सांसारिक पुण्य मनुष्य को भगवान् में नहीं लगाता, पर भगवत्सम्बन्धी पुण्य मनुष्य को भगवान् में ही लगाता है। यह पुण्य फल देकर नष्ट नहीं होता (२ । ४०)।
सांसारिक कामनाओं का त्याग करना
और भगवान् की तरफ लगना - दोनों ही भगवत्सम्बन्धी पुण्य है।
सभी भगवत्प्रेमियों को आज दिवस की *"मंगलमय कामना"*----🙏🏻🙏🏻🌹
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आपका अपना
"पं.खेमेश्वर पुरी गोस्वामी"
धार्मिक प्रवक्ता-ओज कवि
मुंगेली छत्तीसगढ़
८१२००३२८३४-/-७८२८६५७०५७
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