*सोमनाथ मन्दिर का 'बाणस्तम्भ'*
इतिहास बड़ा चमत्कारी विषय है, इसको खोजते खोजते हमारा सामना ऐसे स्थिति से होता है कि हम आश्चर्य में पड़ जाते हैं, पहले हम स्वयं से पूछते हैं, यह कैसे संभव हैै..? डेढ़ हजार वर्ष पहले इतना उन्नत और अत्याधुनिक ज्ञान हम भारतीयों के पास था, इस पर विश्वास ही नहीं होता *..*!!
गुजरात के सोमनाथ मंदिर में आकर कुछ ऐसी ही स्थिति होती हैं, वैसे भी सोमनाथ मंदिर का इतिहास बड़ा ही विलक्षण और गौरवशाली रहा हैं, *१२* ज्योतिर्लिंगों में से पहला ज्योतिर्लिंग है सोमनाथ..! इस मंदिर के प्रांगण में एक स्तंभ (खंबा) है, यह *बाणस्तंभ* नाम से जाना जाता हैै, यह स्तंभ कब से वहां पर है बता पाना कठिन हैं; लगभग छठी शताब्दी से इस बाणस्तंभ का इतिहास में नाम आता है, लेकिन इसका अर्थ यह नहीं कि बाणस्तंभ का निर्माण छठे शतक में हुआ है, उस के सैकड़ों वर्ष पहले इसका निर्माण हुआ होगा यह एक दिशादर्शक स्तंभ है जिस पर समुद्र की ओर इंगित करता एक बाण है, इस *बाणस्तंभ* पर लिखा है–
*आसमुद्रांत दक्षिण ध्रुव पर्यंत*
*अबाधित ज्योतिरमार्ग ..*.
इसका अर्थ यह हुआ *इस बिंदु से दक्षिण ध्रुव तक सीधी रेखा में एक भी अवरोध या बाधा नहीं हैं* अर्थात *इस समूची दूरी में जमीन का एक भी टुकड़ा नहीं हैं ..*!!
संस्कृत में लिखे हुए इस पंक्ति के अर्थ में अनेक गूढ़ अर्थ समाहित हैं, इस पंक्ति का सरल अर्थ यह है कि *सोमनाथ मंदिर के उस बिंदु से लेकर दक्षिण ध्रुव तक (अर्थात 'अंटार्टिका' तक) एक सीधी रेखा खिंची जाए तो बीच में एक भी भूखंड नहीं आता हैैं, क्या यह सच है..? आज के इस तंत्रविज्ञान के युग में यह ढूँढना संभव तो है लेकिन उतना आसान नहीं ..*!!
गूगल मैप में ढूंढने के बाद भूखंड नहीं दिखता हैं, लेकिन वह बड़ा भूखंड, छोटे छोटे भूखंडों को देखने के लिए मैप को *एनलार्ज* (ज़ूम) करते हुए आगे जाना पड़ता है, वैसे तो यह बड़ा ही *बोरिंग* सा काम हैं, लेकिन धीरज रख कर धीरे-धीरे देखते गए तो रास्ते में एक भी भूखंड (अर्थात 10 किलोमीटर X 10 किलोमीटर से बड़ा भूखंड उससे छोटा पकड़ में) नहीं आता है, अर्थात हम मान कर चले कि उस *संस्कृत श्लोक में सत्यता है*, किन्तु फिर भी मूल प्रश्न वैसा ही रहता हैं अगर मान कर भी चलते हैं कि सन् ६०० में इस बाणस्तंभ का निर्माण हुआ था, तो भी उस जमाने में पृथ्वी का दक्षिणी ध्रुव हैै यह ज्ञान हमारे पुरखों के पास कहां से आया..? अच्छा, दक्षिण ध्रुव ज्ञात था यह मान भी लिया तो भी सोमनाथ मंदिर से दक्षिण ध्रुव तक सीधी रेखा में एक भी भूखंड नहीं आता हैै यह *मैपिंग* किसने किया..? कैसे किया..? *सब कुछ अद्भुत ..*!!
इसका अर्थ यह है कि *बाणस्तंभ* के निर्माण काल में भारतीयों को पृथ्वी गोल है इसका ज्ञान था इतना ही नहीं, पृथ्वी का दक्षिण ध्रुव है (अर्थात उत्तर ध्रुव भी है) यह भी ज्ञान था, यह कैसे संभव हुआ..? इसके लिए पृथ्वी का *एरिअल व्यू* लेने का कोई साधन उपलब्ध था..? अथवा पृथ्वी का विकसित नक्शा बना था..?
नक़्शे बनाने का एक शास्त्र होता है, अंग्रेजी में इसे कार्टोग्राफी (यह मूलतः फ्रेंच शब्द है) कहते हैं, यह प्राचीन शास्त्र है, ईसा से छह से आठ हजार वर्ष पूर्व की गुफाओं में आकाश के ग्रह तारों के नक़्शे मिले थे; परन्तु पृथ्वी का पहला नक्शा किसने बनाया इस पर एकमत नहीं हैं, हमारे भारतीय ज्ञान का कोई सबूत न मिलने के कारण यह सम्मान *एनेक्झिमेंडर* इस ग्रीक वैज्ञानिक को दिया जाता है, इनका कालखंड ईसा पूर्व ६११ से ५४६ वर्ष था, किन्तु यह नक्शा अत्यन्त प्राथमिक अवस्था में था, उस कालखंड में जहां जहां मनुष्यों की बसाहट का ज्ञान था, बस वही हिस्सा नक़्शे में दिखाया गया हैै इस लिए उस नक़्शे में उत्तर और दक्षिण ध्रुव दिखने का कोई कारण ही नहीं था *..*..
आज की दुनिया के वास्तविक रूप के करीब जाने वाला नक्शा *हेनरिक्स मार्टेलस* ने साधारणतः सन् १४९० के आसपास तैयार किया था, ऐसा माना जाता है कि कोलंबस ने इसी नक़्शे के आधार पर अपना समुद्री सफर तय किया था, *पृथ्वी गोल है* इस प्रकार का विचार यूरोप के कुछ वैज्ञानिकों ने व्यक्त किया था, *एनेक्सिमेंडर* ईसा पूर्व ६०० वर्ष पृथ्वी को सिलेंडर के रूप में माना था, *एरिस्टोटल* (ईसा पूर्व ३८४ – ईसा पूर्व ३२२) ने भी पृथ्वी को गोल माना था, लेकिन भारत में यह ज्ञान बहुत प्राचीन समय से था, जिसके प्रमाण भी मिलते हैं; इसी ज्ञान के आधार पर आगे चलकर *आर्यभट्ट ने सन् ५०० के आस पास इस गोल पृथ्वी का व्यास ४,९६७ योजन है* (अर्थात नए मापदंडों के अनुसार ३९,९६८ किलोमीटर है) यह भी दृढ़तापूर्वक बताया, आज की अत्याधुनिक तकनीकी सहायता से पृथ्वी का व्यास ४०,०७५ किलोमीटर माना गया है, इसका अर्थ यह हुआ की *आर्यभट्ट के आकलन में मात्र ०.२६% का अंतर आ रहा है*, जो नाममात्र है *.*. लगभग डेढ़ हजार वर्ष पहले आर्यभट्ट के पास यह ज्ञान कहां से आया..?
सन् २००८ में जर्मनी के विख्यात इतिहासविद जोसेफ श्वार्ट्सबर्ग ने यह साबित कर दिया कि ईसा पूर्व दो-ढाई हजार वर्ष, भारत में नकाशा शास्त्र अत्यन्त विकसित था, नगर रचना के नक्शे उस समय उपलब्ध तो थे ही, परन्तु नौकायन के लिए आवश्यक नक्शे भी उपलब्ध थे *..*..
भारत में नौकायन शास्त्र प्राचीन काल से विकसित था, सम्पूर्ण दक्षिण एशिया में जिस प्रकार से हिन्दू संस्कृति के चिह्न पग पग पर दिखते हैं, उससे यह ज्ञात होता है कि भारत के जहाज पूर्व दिशा में जावा, सुमात्रा, यवद्वीप को पार कर के जापान तक प्रवास कर के आते थे, सन् १९५५ में गुजरात के *लोथल* में ढाई हजार वर्ष पूर्व के अवशेष मिले हैं इसमें भारत के प्रगत नौकायन के अनेक प्रमाण मिलते हैं *..*..
सोमनाथ मंदिर के निर्माण काल में दक्षिण ध्रुव तक दिशा दर्शन उस समय के भारतीयों को था यह निश्चित है, लेकिन सबसे महत्वपूर्ण प्रश्न सामने आता है कि *दक्षिण ध्रुव तक सीधी रेखा में समुद्र में कोई अवरोध नहीं हैं*, ऐसा बाद में खोज निकाला, या दक्षिण ध्रुव से भारत के पश्चिम तट पर, बिना अवरोध के सीधी रेखा जहां मिलती है वहां पहला ज्योतिर्लिंग स्थापित किया..?
उस बाण स्तंभ पर लिखी गयी उन पंक्तियों में, *(आसमुद्रांत दक्षिण ध्रुव पर्यंत ; अबाधित ज्योतिरमार्ग ..)*
जिसका उल्लेख किया गया है, वह *ज्योतिर्'मार्ग* क्या है..?
*यह आज भी प्रश्न ही है ..*!!
प्रस्तुति
"पं.खेमेश्वर पुरी गोस्वामी"
धार्मिक प्रवक्ता-ओज कवि
प्रदेश संगठन मंत्री एवं प्रवक्ता
अंतरराष्ट्रीय युवा हिंदू वाहिनी छत्तीसगढ़
८१२००३२८३४-/-७८२८६५७०५७