Saturday, June 18, 2022

माता पिता के चरण स्पर्श से होता है संतान के संपूर्ण अमंगलों नाश

माता पिता के चरण स्पर्श से होता है संतान के संपूर्ण अमंगलों नाश : पं.खेमेश्व


माता-पिता और बच्चों के बीच का रिश्ता हर बंधन से बढ़कर है बच्चा माता पिता का ही अंश होता है जहां मां बच्चे पर भरपूर मातृत्व बरसाती है तो वहीं पिता बच्चे को समाज में एक सुरक्षित वातावरण और उनकी जरूरतों को पूरा करने का हर मुमकिन प्रयास करता है
माता पिता अपने बच्चों से बहुत प्यार करते हैं वैसे तो दुनिया में कई सारे रिलेशनशिप होते हैं लेकिन माता पिता से रिश्ता किसी कारण से नहीं होता न ही माता पिता अपने बच्चे से किसी चीज की चाह रखते हैं अगर वह कोई उम्मीद रखते भी हैं तो वह सिर्फ बच्चों के भविष्य को सुरक्षित रखने की उम्मीद है

हालांकि आज के दौर में बच्चे बड़े होने के साथ माता पिता के प्यार बलिदान परिश्रम को भूल जाते हैं वह ज्यादातर अपने कामों,दोस्तों और भविष्य को लेकर इतना व्यस्त हो जाते हैं कि उन्हें बाहरी दुनियाँ और दोस्तों के कारण वह माता पिता की परवाह ही नहीं करते उनके साथ बैठना उनसे बातें करना उनके बारे मे कुछ जानना ये सब उन्हें अच्छा नहीं लगता
अगर माता पिता के साथ बैठना भी पड़ जाये तों उनकी सुनने के लियॆ नहीं केवल अपनी सुनाने के लियॆ बैठते है अपनी जरूरतों को पूरी करने के लियॆ बैठते है

बच्चों के लिए कभी कभी अपने माता पिता के निस्वार्थ प्रेम और उनके समर्पण बलिदान की सराहना भी करनी चाहियॆ इससे उनको आत्मबल मिलता है आपके अंदर एक अच्छे संस्कारों जन्म होता है और इससे आपके आने बाला कल और आपका भविष्य भी उज्जवल होता है

अगर आप ज्यादा कुछ नहीं कर सकते तों कम से कम श्रधा पूर्वक सुबह शाम उनके पैर छूकर बहुत सारे शुभ आशीर्वाद तों आप उनसे ले ही सकते हो ना उनके लियॆ इतना काफी है

माता पिता के लियॆ आपके प्यार के दो शब्द काफी है उन्हें आपके धन दौलत कि इतनी उन्हें आवश्यकता नहीं होती जितना आप उनके बारे मे सोचते इस गलत फ़ैमि को आप दिल से दूर करें और अपना थोड़ा कीमती समय भी उनके साथ बैठकर गुजारने का कष्ट करें यही उनके लियॆ पर्याप्त

इसलिये रोज श्रधा पूर्वक अपने माता पिता अपने गुरुजनों को अपने बड़ों को प्रणाम करे इससे आपके जीवन शुभ संस्कार जागृत होते है जीवन कि बहुत सारी मुसीबतें स्वतः ही नष्ट होने लगती है आपके संपूर्ण अमंगलों का नाश होता है और आपके जीवन मे सर्वत्र मंगल ही मंगल होने लगता है

मित्रों जब आप अपनी किसी भी समस्या का समाधान कराते हुये पूरी तरह से थक चुके हो और आपको भविष्य मैं कही भी कोई रास्ता नजर नहीं आ रहा हो तभी आप हमसें संपर्क करें अन्यथा आप भूलकर भी हमसें बिल्कुल संपर्क ना करें।


 पं.खेमेश्वरपुरी गोस्वामी
धार्मिक प्रवक्ता - ओज कवि
राष्ट्रीय प्रवक्ता
राष्ट्र भाषा प्रचार मंच-भारत
डिंडोरी,मुंगेली,छत्तीसगढ़

Wednesday, May 25, 2022

सनातन धर्म में पीपल का महत्व

पीपल का सनातन धर्म में महत्व

पीपल को वृक्षों का राजा कहते है। इसकी वंदना में एक श्लोक देखिए:-
मूलम् ब्रह्मा, त्वचा विष्णु,
सखा शंकरमेवच ।
पत्रे-पत्रेका सर्वदेवानाम,
वृक्षराज नमोस्तुते ।।

सनातन धर्म में पीपल के पेड़ का बहुत महत्व माना गया है। शास्त्रों के अनुसार इस वृक्ष में सभी देवी-देवताओं और हमारे पितरों का वास भी माना गया है।

पीपल वस्तुत: भगवान विष्णु का जीवन्त और पूर्णत:मूर्तिमान स्वरूप ही है। भगवान श्रीकृष्ण ने भी कहा है की वृक्षों में मैं पीपल हूँ।

पुराणो में उल्लेखित है कि

मूलतः ब्रह्म रूपाय मध्यतो विष्णु रुपिणः।
 अग्रतः शिव रुपाय अश्वत्त्थाय नमो नमः।। 
अर्थात इसके मूल में भगवान ब्रह्म, मध्य में भगवान श्री विष्णु तथा अग्रभाग में भगवान शिव का वास होता है।

शास्त्रों के अनुसार पीपल की विधि पूर्वक पूजा-अर्चना करने से समस्त देवता स्वयं ही पूजित हो जाते हैं।
कहते है पीपल से बड़ा मित्र कोई भी नहीं है, जब आपके सभी रास्ते बंद हो जाएँ, आप चारो ओर से अपने को परेशानियों से घिरा हुआ समझे, आपकी परछांई भी आपका साथ ना दे, हर काम बिगड़ रहे हो तो 
आप पीपल के शरण में चले जाएँ, उनकी पूजा अर्चना करे , उनसे मदद की याचना करें  निसंदेह कुछ ही समय में आपके घोर से घोर कष्ट दूर जो जायेंगे।

धर्म शास्त्रों के अनुसार हर व्यक्ति को जीवन में पीपल का पेड़ अवश्य ही लगाना चाहिए । पीपल का पौधा लगाने वाले व्यक्ति को जीवन में किसी भी प्रकार संकट नहीं रहता है। पीपल का पौधा लगाने के बाद उसे रविवार को छोड़कर नियमित रूप से जल भी अवश्य ही अर्पित करना चाहिए। जैसे-जैसे यह वृक्ष बढ़ेगा आपके घर में सुख-समृद्धि भी बढ़ती जाएगी।  पीपल का पेड़ लगाने के बाद बड़े होने तक इसका पूरा ध्यान भी अवश्य ही रखना चाहिए, लेकिन ध्यान रहे कि पीपल को आप अपने घर से दूर लगाएं, घर पर पीपल की छाया भी नहीं पड़नी चाहिए।

मान्यता है कि यदि कोई व्यक्ति पीपल के वृक्ष के नीचे शिवलिंग स्थापित करता है तो उसके जीवन से बड़ी से बड़ी परेशानियां भी दूर हो जाती है। पीपल के नीचे शिवलिंग स्थापित करके उसकी नित्य पूजा भी अवश्य ही करनी चाहिए। इस उपाय से जातक को सभी भौतिक सुख सुविधाओं की प्राप्ति होती है।

सावन मास की अमवस्या की समाप्ति और सावन के सभी शनिवार को पीपल की विधि पूर्वक पूजा करके इसके नीचे भगवान हनुमान जी की पूजा अर्चना / आराधना करने से घोर से घोर संकट भी दूर हो जाते है।

यदि पीपल के वृक्ष के नीचे बैठकर रविवार को छोड़कर नित्य हनुमान चालीसा का पाठ किया जाए तो यह चमत्कारी फल प्रदान करने वाला उपाय है।

पीपल के नीचे बैठकर पीपल के 11 पत्ते तोड़ें और उन पर चन्दन से भगवान श्रीराम का नाम लिखें। फिर इन पत्तों की माला बनाकर उसे प्रभु हनुमानजी को अर्पित करें, सारे संकटो से रक्षा होगी।

पीपल के चमत्कारी उपाय

शास्त्रानुसार प्रत्येक पूर्णिमा पर प्रातः 10 बजे पीपल वृक्ष पर मां लक्ष्मी का फेरा लगता है। इसलिए जो व्यक्ति आर्थिक रूप से मजबूत होना चाहते है वो इस समय पीपल के वृक्ष पर फल, फूल, मिष्ठान चढ़ाते हुए धूप अगरबती जलाकर मां लक्ष्मी की उपासना करें, और माता लक्ष्मी के किसी भी मंत्र की एक माला भी जपे । इससे जातक को अपने किये गए कार्यों के सर्वश्रेष्ठ फल मिलते है और वह धीरे धीरे आर्थिक रूप से सक्षम हो जाता है ।

पीपल को विष्णु भगवान से वरदान प्राप्त है कि जो व्यक्ति शनिवार को पीपल की पूजा करेगा, उस पर लक्ष्मी की अपार कृपा रहेगी और उसके घर का ऐश्वर्य कभी नष्ट नहीं होगा। 

व्यापार में वृद्धि हेतु प्रत्येक शनिवार को एक पीपल का पत्ता लेकर उस पर चन्दन से स्वस्तिक बना कर उसे अपने व्यापारिक स्थल की अपनी गद्दी / बैठने के स्थान के नीचे रखे । इसे हर शनिवार को बदल कर अलग रखते रहे । ऐसा 7 शनिवार तक लगातार करें फिर 8वें शनिवार को इन सभी पत्तों को किसी सुनसान जगह पर डाल दें और मन ही मन अपनी आर्थिक समृद्धि के लिए प्रार्थना करते रहे, शीघ्र पीपल की कृपा से आपके व्यापार में बरकत होनी शुरू हो जाएगी ।

जो मनुष्य पीपल के वृक्ष को देखकर प्रणाम करता है, उसकी आयु बढ़ती है 
जो इसके नीचे बैठकर धर्म-कर्म करता है, उसका कार्य पूर्ण हो जाता है।

पीपल के वृक्ष को काटना 

जो मूर्ख मनुष्य पीपल के वृक्ष को काटता है, उसे इससे होने वाले पाप से छूटने का कोई उपाय नहीं है। (पद्म पुराण, खंड 7 अ 12)

हर रविवार पीपल के नीचे देवताओं का वास न होकर दरिद्रा का वास होता है। अत: इस दिन पीपल की पूजा वर्जित मानी जाती है
यदि पीपल के वृक्ष को काटना बहुत जरूरी हो तो उसे रविवार को ही काटा जा सकता है।

शनि दोष में पीपल 

शनि की साढ़ेसाती और ढय्या के बुरे प्रभावों को दूर कर,शुभ प्रभावों को प्राप्त करने के लिए हर जातक को प्रति शनिवार को पीपल की पूजा करना श्रेष्ठ उपाय है। 

यदि रोज (रविवार को छोड़कर) पीपल पर पश्चिममुखी होकर जल चढ़ाया जाए तो शनि दोष की शांति होती है l

शनिवार की सुबह गुड़, मिश्रित जल चढ़ाकर, धूप अगरबत्ती जलाकर उसकी सात परिक्रमा करनी चाहिए, एवं संध्या के समय पीपल के वृक्ष के नीचे कड़वे तेल का दीपक भी अवश्य ही जलाना चाहिए। इस नियम का पालन करने से पीपल की अदृश्य शक्तियां उस जातक की सदैव मदद करती है।

ब्रह्म पुराण' के 118 वें अध्याय में शनिदेव कहते हैं- 'मेरे दिन अर्थात् शनिवार को जो मनुष्य नियमित रूप से पीपल के वृक्ष का स्पर्श करेंगे, उनके सब कार्य सिद्ध होंगे तथा  उन्हें ग्रहजन्य पीड़ा नहीं होगी।'

शनिवार के दिन पीपल के वृक्ष का दोनों हाथों से स्पर्श करते हुए 'ॐ नमः शिवाय।' का 108 बार जप करने से दुःख, कठिनाई एवं ग्रहदोषों का प्रभाव शांत हो जाता है।

हर शनिवार को पीपल की जड़ में जल चढ़ाने और दीपक जलाने से अनेक प्रकार के कष्टों का निवारण होता है ।

 ग्रहों के दोषों में पीपल

ज्योतिष शास्त्र में पीपल से जुड़े हुए कई आसान किन्तु अचूक उपाय बताए गए हैं, जो हमारे समस्त ग्रहों के दोषों को दूर करते हैं। जो किसी भी राशि के लोग आसानी से कर सकते हैं। इन उपायों को करने के लिए हमको अपनी किसी ज्योतिष से कुंडली का अध्ययन करवाने की भी आवश्यकता नहीं है।

पीपल का पेड़ रोपने और उसकी सेवा करने से पितृ दोष में कमी होती है । शास्त्रों के अनुसार पीपल के पेड़ की सेवा मात्र से ही न केवल पितृ दोष वरन जीवन के सभी परेशानियाँ स्वत: कम होती जाती है

पीपल में प्रतिदिन (रविवार को छोड़कर) जल अर्पित करने से कुंडली के समस्त अशुभ ग्रह योगों का प्रभाव समाप्त हो जाता है। पीपल की परिक्रमा से कालसर्प जैसे ग्रह योग के बुरे प्रभावों से भी छुटकारा मिल जाता है। (पद्म पुराण)

असाध्य रोगो में पीपल

पीपल की सेवा से असाध्य से असाध्य रोगो में भी चमत्कारी लाभ होता देखा गया है ।
 
यदि कोई व्यक्ति किसी भी रोग से ग्रसित है
 वह नित्य पीपल की सेवा करके अपने बाएं हाथ से उसकी जड़ छूकर उनसे अपने रोगो को दूर करने की प्रार्थना करें तो जातक के रोग शीघ्र ही दूर होते है। उस पर दवाइयों का जल्दी / तेज असर होता है । 

यदि किसी बीमार व्यक्ति का रोग ठीक ना हो रहा हो तो उसके तकिये के नीचे पीपल की जड़ रखने से बीमारी जल्दी ठीक होती है ।

निसंतान दंपती संतान प्राप्ति हेतु पीपल के एक पत्ते को प्रतिदिन सुबह लगभग एक घंटे पानी में रखे, बाद में उस पत्ते को पानी से निकालकर किसी पेड़ के नीचे रख दें और पति पत्नी उस जल का सेवन करें तो शीघ्र संतान प्राप्त होती है । ऐसा लगभग 2-3 माह तक लगातार करना चाहिए ।

पं.खेमेश्वर पुरी गोस्वामी
धार्मिक प्रवक्ता ओज कवि
राष्ट्रीय प्रवक्ता
राष्ट्र भाषा प्रचार मंच-भारत
डिंडोरी मुंगेली छत्तीसगढ़

Saturday, January 22, 2022

विधानसभा चुनाव भविष्यवाणी 2022

*यूपी में भाजपा की फिर वापसी, पंजाब में छीन जाएगी कांग्रेस से सत्ता*
मुंगेली के ज्योतिष पं.खेमेश्वर पुरी गोस्वामी की भविष्यवाणी

मुंगेली- कालसर्प योग के बीच देश के पांच राज्यों (पंजाब, उत्तराखंड, गोवा, मणिपुर, उत्तर प्रदेश ) में विधानसभा चुनाव के ऐलान के साथ राजनीतिक दलों की मतदाताओं को लुभाने के साथ ही जोर आजमाइश शुरू हो चुकी है!
इन्हीं राजनीतिक दंगल को लेकर छत्तीसगढ़ के मुंगेली जिले के डिंडोरी गांव के राजर्षि वंश के पं.खेमेश्वर पुरी गोस्वामी पिता पं. श्री परदेशी पुरी गोस्वामी ने इन पांच राज्यों में किस दल की सरकार बनेगी,कौन सा दल भारी पड़ेगा इसकी भविष्यवाणी की है ।
ज्योतिष पं.गोस्वामी के अनुसार इन पांच राज्यों के विधानसभा चुनावों में जहां पीएम मोदी और यूपी के सीएम योगी का राजनैतिक कद बढ़ेगा वहीं कांग्रेस भी उभरेगी। ज्योतिष पं.गोस्वामी के अनुसार इन चुनावों पर राहु केतु और शनि ग्रह का प्रभाव होगा।

इस कारण अनेक कद्दावर नेता दल-बदल करेंगे।इस दल-बदल के कारण कई नेताओं की किस्मत चमकेगी और कई नेता अपने गुमनामी में जाकर अपने भाई के साथ कुठाराघात करेंगे।इसी के साथ ही इन चुनावों में नेताओं के द्वारा भाषा की मर्यादाओं को लांघते हुए स्तरहीन भाषा तक का  उपयोग कर एक दूसरे पर आरोप-प्रत्यारोप लगाएंगे।इन विधानसभा चुनाव में भाजपा हिचकोले खाते हुए संघर्ष के साथ विपक्षी पार्टियों पर भारी पड़ेगी। ज्योतिष पं.गोस्वामी के अनुसार उत्तर प्रदेश व गोवा में भाजपा जीत हासिल कर सत्ता पर काबिज होगी।
वहीं उत्तराखंड और मणिपुर में भाजपा और कांग्रेस के मध्य कांटे की टक्कर रहेगी तथा पंजाब में कांग्रेस और आम आदमी पार्टी में मुकाबला होगा। शिरोमणि अकाली गठबंधन और भाजपा व अमरिंदर सिंह गठबंधन के बीच बहुगुणी मुकाबले से आम आदमी पार्टी पंजाब में सबसे बड़े दल के रूप में जीतकर उतरेगी और पंजाब में गठबंधन की सरकार बनेगी।
पं.खेमेश्वर पुरी गोस्वामी ने यह भी कहा कि उत्तर प्रदेश में मुकाबला भाजपा और समाजवादी पार्टी के बीच होगा।
ज्योतिष पं.गोस्वामी के अनुसार इन पांच राज्यों में किस दल को कितनी सीटें मिलेंगी आंकड़ा इस प्रकार है...

उत्तर प्रदेश

कुल सीटें - 403
भाजपा- 220 से 260 सीटें
सपा - 130 से 160 सीटें
बसपा - 11 से 18 सीटें
कांग्रेस - 04 से 08 सीटें
अन्य- 05 से 07 सीटें

उत्तराखंड

कुल सीटें - 70
भाजपा - 32 से 39 सीटें
कांग्रेस - 29 से 35 सीटें
आप - 01 से 03 सीटें
यहां जोड़ तोड़ की सरकार बनेगी।

गोवा

कुल सीटें - 40
भाजपा-18 से 25 सीटें
कांग्रेस-05 से 09 सीटें
आप -04 से 08 सीटें
यहां भाजपा के सरकार बनाने की योग है लेकिन यदि भाजपा असमंजस और गफलत में पड़ती है तो इसका फायदा आप पार्टी और कांग्रेस गठबंधन उठाने की कोशिश कर सकती है और सरकार बना सकती है।

मणिपुर

कुल सीटें -60
भाजपा-24 से 29 सीटें
कांग्रेस-22 से 25 सीटें
अन्य दल -05 से 08 सीटें
यहां भी गठबंधन की सरकार बनेगी और भाजपा तथा कांग्रेस दोनों ही दल अपनी अपनी जोर आजमाइश कर करामात दिखा सरकार बना सकते हैं।

पंजाब

कुल सीटें -117
आप पार्टी-50 से 55 सीटें
कांग्रेस-35 से 40 सीटें
शिरोमणि अकाली दल-18 से 24 सीटें
भाजपा गठबंधन-05 से 08 सीटें
यहां भी सरकार गठबंधन की ही बनेगी...।।

Wednesday, October 6, 2021

नवरात्रि में घट स्थापना मुहुर्त एवं पुजन विधि

*💐💐नवरात्री में घट स्थापना-मुहूर्त एवं पूजन विधि 💐💐*

*🕉️🚩सनातन धर्म में नवरात्रि का बड़ा महत्व बताया गया है।बच्चों से लेकर घर के बड़े-बुजुर्ग भी इस त्योहार को पुरे विधि-विधान से करते है। आश्विन प्रतिपदा से नवमी तक देवी के नौ रूपों का पूजन होता है। जिसे शारदीय नवरात्री के नाम से पुकारा जाता है। शास्त्रों में एक साल में चार नवरात्रि का वर्णन किया गया है।*

*⚜️🕉️शारदीय नवरात्रि का महत्व*
*शारदीय नवरात्रि का इन सभी में सबसे ज्यादा महत्व बताया गया है। इस बार शारदीय नवरात्रि की शुरुआत 7 अक्टूबर से हो रही है। नवरात्रि के दिनों में माँ दुर्गा के अलग-अलग स्वरूपों की पूजा करने से विशेष लाभ मिलता है। मान्यता है कि माँ दुर्गा अपने भक्तों के हर संकट को दूर करती है। चैत्र, आषाढ़, आश्विन और माघ महीने माँ दुर्गा के नौ रूपों की पूजा की जाती है। जिसमें आषाढ़ एवं माघ को गुप्त नवरात्र के रूप में मनाया जाता है।*

*🌺घटस्थापना का शुभ मुहूर्त-*

*🔹🌻ज्योतिषाचार्यों के अनुसार नवरात्रि में घट स्थापना या कलश स्थापना का विशेष महत्व होता है। शारदीय नवरात्रि में घटस्थापना का शुभ समय*
*१👉सुबह 06 बजकर 17 मिनट से सुबह 07 बजकर 07 मिनट तक है।*
*२👉सुबह 9:33 से 11:31 तक*
*३👉अभिजित मुहूर्त- 11:46से 12:32 तक।*
*४👉दोपहर 3:33 से शाम 5:05 तक*

*कलश स्थापना नवरात्रि के पहले दिन यानी 07 अक्टूबर, गुरुवार को ही की जाएगी।*

*♦️नवरात्र तिथि*
〰️〰️🔸〰️〰️
*शारदीय नवरात्रि २०२० की महत्वपूर्ण तारीखें*

*१👉 ७अक्टूबर- प्रतिपदा - पहला दिन, घट या कलश स्थापना। इस दिन माता दुर्गा के शैलपुत्री स्वरूप की पूजा होगी।*

*२👉८अक्टूबर- द्वितीया - दूसरा दिन। इस दिन माता के ब्रह्मचारिणी स्वरूप की पूजा की जाती है।*

*३,४👉९अक्टूबर- तृतीया - चतुर्थी★तीसरा दिन। चौथा दिन। माता दुर्गा के कुष्मांडा स्वरुप की पूजा-अर्चना होगी।इस दिन दुर्गा जी के चंद्रघंटा स्वरूप की पूजा की जाएगी।*
*🔹दोनो दिनों की पूजा एक ही दिन होगी।*

*५👉१०अक्टूबर- पंचमी - पांचवां दिन- इस दिन मां भगवती के स्कंदमाता स्वरूप की पूजा की जाती है।*

*६👉११अक्टूबर- षष्ठी- छठा दिन- इस दिन माता दुर्गा के कात्यायनी स्वरूप की पूजा होती है।*

*७👉१२अक्टूबर- सप्तमी- सातवां दिन- इस दिन माता दुर्गा के कालरात्रि स्वरूप की आराधना की जाती है।*

*८👉१३अक्टूबर- अष्टमी - आठवां दिन- दुर्गा अष्टमी, नवमी पूजन। इस दिन माता दुर्गा के महागौरी स्वरूप की पूजा अर्चना की जाती है।*

*९👉१४अक्टूबर- नवमी - नौवां दिन- नवमी हवन, नवरात्रि पारण।*

*१०👉१५अक्टूबर- दशमी के दिन जिन लोगों ने माता दुर्गा की प्रतिमाओं की स्थापना की होगी, वे विधि विधान से माता का विसर्जन करेंगे।*

*⚜️घट स्थापना एवं दुर्गा पूजन की सामग्री*
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*👉 जौ बोने के लिए मिट्टी का पात्र। यह वेदी कहलाती है।*
*👉 जौ बोने के लिए शुद्ध साफ़ की हुई मिटटी जिसमे कंकर आदि ना हो।*
*👉 पात्र में बोने के लिए जौ ( गेहूं भी ले सकते है )*
*👉 घट स्थापना के लिए मिट्टी का कलश ( सोने, चांदी या तांबे का कलश भी ले सकते है )*
*👉 कलश में भरने के लिए शुद्ध जल*
*👉 नर्मदा या गंगाजल या फिर अन्य साफ जल*
*👉 रोली , मौली*
*👉 इत्र, सुपारी, दूर्वा, कलश में रखने के लिए सिक्का ( किसी भी प्रकार का कुछ लोग चांदी या सोने का सिक्का भी रखते है )*
*👉 पंचरत्न ( हीरा , नीलम , पन्ना , माणक और मोती )*
*👉 पीपल , बरगद , जामुन , अशोक और आम के पत्ते (🔹 सभी ना मिल पायें तो कोई भी एक प्रकार के पत्ते ले सकते है )*
*👉 कलश ढकने के लिए ढक्कन ( मिट्टी का या तांबे का )*
*👉 ढक्कन में रखने के लिए साबुत चावल*
*👉 नारियल, लाल कपडा, फूल माला,फल तथा मिठाई, दीपक , धूप , अगरबत्ती।*

*♦️दुर्गा पूजन सामग्री*
〰〰〰〰〰
*पंचमेवा पंच​मिठाई रूई कलावा, रोली, सिंदूर, अक्षत, लाल वस्त्र , फूल, ५ सुपारी, लौंग,  पान के पत्ते ५ , घी, कलश, कलश हेतु आम का पल्लव, चौकी, समिधा, हवन कुण्ड, हवन सामग्री, कमल गट्टे, पंचामृत ( दूध, दही, घी, शहद, शर्करा ), फल, बताशे, मिठाईयां, पूजा में बैठने हेतु आसन, हल्दी की गांठ , अगरबत्ती, कुमकुम, इत्र, दीपक, , आरती की थाली. कुशा, रक्त चंदन, श्रीखंड चंदन, जौ, ​तिल, माँ की प्रतिमा, आभूषण व श्रृंगार का सामान, फूल माला।*

*🌼भगवती मंडल स्थापना विधि*
〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️
*जिस जगह पुजन करना है उसे एक दिन पहले ही साफ सुथरा कर लें। गौमुत्र गंगाजल का छिड़काव कर पवित्र कर लें। सबसे पहले गौरी〰️गणेश जी का पुजन करें।*

*भगवती का चित्र बीच में उनके दाहिने ओर हनुमान जी और बायीं ओर बटुक भैरव को स्थापित करें। भैरव जी के सामने शिवलिंग और हनुमान जी के बगल में रामदरबार या लक्ष्मीनारायण को रखें। गौरी गणेश चावल के पुंज पर भगवती के समक्ष स्थान दें।*

*आसन बिछाकर गणपति एवं दुर्गा माता की मूर्ति के सम्मुख बैठ जाएं. इसके बाद अपने आपको तथा आसन को इस मंत्र से शुद्धि करें।*

*"ॐ अपवित्र : पवित्रोवा सर्वावस्थां गतोऽपिवा। य: स्मरेत् पुण्डरीकाक्षं स बाह्याभ्यन्तर: शुचि :॥"*
*पुण्डरीकाक्ष पुनातु(३बार बोले)*
इन मंत्रों से अपने ऊपर तथा आसन पर ३-३बार कुशा या पुष्पादि से छींटें लगायें फिर आचमन करें - 
*ॐ केशवाय नम: ॐ नारायणाय नम:, ॐ माधवाय नम:,*
*फिर ॐ हृषिकेशायनमः,ॐ गो​विन्दाय नम: बोलकर मुँह पोंछे*
*🥀फिर हाथ धोएं, पुन: आसन शुद्धि मंत्र बोलें :-*

ॐ पृथ्वी त्वयाधृता लोका देवि त्यवं विष्णुनाधृता। 

त्वं च धारयमां देवि पवित्रं कुरु चासनम्॥ 
*शुद्धि और आचमन के बाद चंदन लगाना चाहिए. अनामिका उंगली से श्रीखंड चंदन लगाते हुए यह मंत्र बोलें-*

चन्दनस्य महत्पुण्यम् पवित्रं पापनाशनम्,
आपदां हरते नित्यम् लक्ष्मी तिष्ठतु सर्वदा।  

*दुर्गा पूजन हेतु संकल्प*
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🌼🥀पंचोपचार करने बाद किसी भी पूजन को आरम्भ करने से पहले पूजा की पूर्ण सफलता के लिये संकल्प करना चाहिए. संकल्प में पुष्प, फल, सुपारी, पान, चांदी का सिक्का, नारियल (पानी वाला), मिठाई, मेवा, आदि सभी सामग्री थोड़ी-थोड़ी मात्रा में लेकर संकल्प मंत्र बोलें :

*🕉️ॐ विष्णुर्विष्णुर्विष्णु:, ॐ अद्य  ब्रह्मणोऽह्नि द्वितीय परार्धे श्री श्वेतवाराहकल्पे वैवस्वतमन्वन्तरे, अष्टाविंशतितमे कलियुगे, कलिप्रथम चरणे जम्बूद्वीपे भरतखण्डे भारतवर्षे पुण्य (अपने नगर/गांव का नाम लें) क्षेत्रे बौद्धावतारे वीर विक्रमादित्यनृपते : २०७८, तमेऽब्दे प्रमादी नाम संवत्सरे दक्षिणायने शरद ऋतो महामंगल्यप्रदे मासानां मासोत्तमे द्वितीय आश्विन मासे शुक्ल पक्षे प्र​तिपदायां तिथौ गुरु वासरे (गोत्र का नाम लें) गोत्रोत्पन्नोऽहं अमुकनामा (अपना नाम लें) सकलपापक्षयपूर्वकं सर्वारिष्ट शांतिनिमित्तं सर्वमंगलकामनया- श्रुतिस्मृत्योक्तफलप्राप्त्यर्थं मनेप्सित कार्य सिद्धयर्थं श्री दुर्गा पूजनं च अहं करिष्ये। तत्पूर्वागंत्वेन ​निर्विघ्नतापूर्वक कार्य ​सिद्धयर्थं यथा​मिलितोपचारे गणप​ति पूजनं क​रिष्ये।*

*गणपति पूजन विधि*
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*किसी भी पूजा में सर्वप्रथम गणेश जी की पूजा की जाती है। हाथ में पुष्प लेकर गणपति का ध्यान करें।*

गजाननम्भूतगणादिसेवितं कपित्थ जम्बू फलचारुभक्षणम्। 
उमासुतं शोक विनाशकारकं नमामि विघ्नेश्वरपादपंकजम्।

*आवाहन: हाथ में अक्षत लेकर*
आगच्छ देव देवेश, गौरीपुत्र ​विनायक।
तवपूजा करोमद्य, अत्रतिष्ठ परमेश्वर॥

*ॐ श्री ​सिद्धि ​विनायकाय नमः इहागच्छ इह तिष्ठ कहकर अक्षत गणेश जी पर चढा़ दें।*

हाथ में फूल लेकर ॐ श्री ​सिद्धि ​विनायकाय नमः आसनं समर्पया​मि, 

*👉अर्घा में जल लेकर बोलें*
ॐ श्री ​सिद्धि ​विनायकाय नमः अर्घ्यं समर्पया​मि, 

*👉आचमनीय-स्नानीयं (आचमन और स्नान)*
ॐ श्री ​सिद्धि ​विनायकाय नमः आचमनीयं समर्पया​मि 

*👉वस्त्र*
वस्त्र लेकर ॐ श्री ​सिद्धि ​विनायकाय नमः वस्त्रं समर्पया​मि, 

*👉जनेऊ*
यज्ञोपवीत-ॐ श्री ​सिद्धि ​विनायकाय नमः यज्ञोपवीतं समर्पया​मि,
 
*👉आचमन*
पुनराचमनीयम्, ॐ श्री ​सिद्धि ​विनायकाय नमः  

*👉चंदनरक्त चंदन लगाएं:*
इदम रक्त चंदनम् लेपनम्  ॐ श्री ​सिद्धि ​विनायकाय नमः , 

*👉श्रीखंड चंदन*
इसी प्रकार श्रीखंड चंदन बोलकर श्रीखंड चंदन लगाएं. 

*👉इसके पश्चात सिन्दूर चढ़ाएं*
"इदं सिन्दूराभरणं लेपनम् ॐ श्री ​सिद्धि ​विनायकाय नमः, 

*👉दूर्वा और विल्बपत्र भी गणेश जी को चढ़ाएं।*

*पूजन के बाद गणेश जी को प्रसाद अर्पित करें:*

*मिष्टान अर्पित करने के लिए मंत्र-*

शर्करा खण्ड खाद्या​नि द​धि क्षीर घृता​नि च,
आहारो भक्ष्य भोज्यं गृह्यतां गणनायक। 

ॐ श्री ​सिद्धि ​विनायकाय नमः इदं नानाविधि नैवेद्यानि समर्पयामि, 

*प्रसाद अर्पित करने के बाद आचमन करायें।*
 इदं आचमनीयं ॐ श्री ​सिद्धि ​विनायकाय नमः 

*👉इसके बाद पान सुपारी चढ़ायें-*

ॐ श्री ​सिद्धि ​विनायकाय नमः ताम्बूलं समर्पयामि 

*👉अब फल लेकर गणपति पर चढ़ाएं*
ॐ श्री ​सिद्धि ​विनायकाय नमः फलं समर्पया​मि, 

*👉अब दक्षिणा चढ़ाए*
ॐ श्री ​सिद्धि ​विनायकाय नमः द्रव्य द​क्षिणां समर्पया​मि, 

*🌺⚜️अब ​विषम संख्या में दीपक जलाकर ​निराजन करें और भगवान की आरती गायें। हाथ में फूल लेकर गणेश जी को अ​र्पित करें,  ​फिर तीन प्रद​क्षिणा करें। इसी प्रकार से अन्य सभी देवताओं की पूजा करें. जिस देवता की पूजा करनी हो गणेश के स्थान पर उस देवता का नाम लें।*

*🪔घट स्थापना एवं दुर्गा पूजन की विधि*
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*🌹🌻सबसे पहले जौ बोने के लिए एक ऐसा पात्र लें जिसमे कलश रखने के बाद भी आस पास जगह रहे। यह पात्र मिट्टी की थाली जैसा कुछ हो तो श्रेष्ठ होता है। इस पात्र में जौ उगाने के लिए मिट्टी की एक परत बिछा दें। मिट्टी शुद्ध होनी चाहिए । पात्र के बीच में कलश रखने की जगह छोड़कर बीज डाल दें। फिर एक परत मिटटी की बिछा दें। एक बार फिर जौ डालें। फिर से मिट्टी की परत बिछाएं। अब इस पर जल का छिड़काव करें।*

*🍁↪️कलश तैयार करें। कलश पर स्वस्तिक बनायें। कलश के गले में मौली बांधें। अब कलश को थोड़े गंगा जल और शुद्ध जल से पूरा भर दें। कलश में साबुत सुपारी , फूल और दूर्वा डालें। कलश में इत्र , पंचरत्न तथा सिक्का डालें। अब कलश में पांचों प्रकार के पत्ते डालें। कुछ पत्ते  थोड़े बाहर दिखाई दें इस प्रकार लगाएँ। चारों तरफ पत्ते लगाकर ढ़क्कन लगा दें। इस ढ़क्कन में अक्षत यानि साबुत चावल भर दें।*

*🔹🌷नारियल तैयार करें। नारियल को लाल कपड़े में लपेट कर मौली बांध दें। इस नारियल को कलश पर रखें। नारियल का मुँह आपकी तरफ होना चाहिए। यदि नारियल का मुँह ऊपर की तरफ हो तो उसे रोग बढ़ाने वाला माना जाता है। नीचे की तरफ हो तो शत्रु बढ़ाने वाला मानते है , पूर्व की और हो तो धन को नष्ट करने वाला मानते है। नारियल का मुंह वह होता है जहाँ से वह पेड़ से जुड़ा होता है। अब यह कलश जौ उगाने के लिए तैयार किये गये पात्र के बीच में रख दें। अब देवी देवताओं का आह्वान करते हुए प्रार्थना करें कि ” हे समस्त देवी देवता आप सभी नौ दिन के लिए कृपया कलश में विराजमान हों “।*

*आह्वान करने के बाद ये मानते हुए कि सभी देवता गण कलश में विराजमान है। कलश की पूजा करें। कलश को टीका करें , अक्षत चढ़ाएं , फूल माला अर्पित करें , इत्र अर्पित करें , नैवेद्य यानि फल मिठाई आदि अर्पित करें। घट स्थापना या कलश स्थापना के बाद दुर्गा पूजन शुरू करने से पूर्व चौकी को धोकर माता की चौकी सजायें।*

*♦️दुर्गा पूजन विधि*
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*सबसे पहले माता दुर्गा का ध्यान करें-*

सर्व मंगल मागंल्ये ​शिवे सर्वार्थ सा​धिके ।
शरण्येत्रयम्बिके गौरी नारायणी नमोस्तुते ॥
*आवाहन👉 श्रीजगदम्बायै दुर्गादेव्यै नम:। दुर्गादेवीमावाहया​मि॥*

*आसन👉 श्रीजगदम्बायै दुर्गादेव्यै नम:। आसानार्थे पुष्पाणि समर्पया​मि॥*

*अर्घ्य👉  श्रीजगदम्बायै दुर्गादेव्यै नम:। हस्तयो: अर्घ्यं समर्पया​मि॥*

*आचमन👉 श्रीजगदम्बायै दुर्गादेव्यै नम:। आचमनं समर्पया​मि॥*

*स्नान👉 श्रीजगदम्बायै दुर्गादेव्यै नम:। स्नानार्थं जलं समर्पया​मि॥*
स्नानांग आचमन- स्नानान्ते पुनराचमनीयं जलं समर्पया​मि।
स्नान कराने के बाद पात्र में आचमन के लिये जल छोड़े।

*पंचामृत स्नान👉 श्रीजगदम्बायै दुर्गादेव्यै नम:। पंचामृतस्नानं समर्पया​मि॥*

पंचामृत स्नान कराने के बाद पात्र में आचमन के लिये जल छोड़े।

*गन्धोदक-स्नान👉 श्रीजगदम्बायै दुर्गादेव्यै नम:। गन्धोदकस्नानं समर्पया​मि॥*

गंधोदक स्नान (रोली चंदन मिश्रित जल) से कराने के बाद पात्र में आचमन के लिये जल छोड़े।

*शुद्धोदक स्नान👉 श्रीजगदम्बायै दुर्गादेव्यै नम:। शुद्धोदकस्नानं समर्पया​मि॥*
*आचमन- शुद्धोदकस्नानान्ते आचमनीयं जलं समर्पया​मि।*
शुद्धोदक स्नान कराने के बाद पात्र में आचमन के लिये जल छोड़े।

*वस्त्र👉 श्रीजगदम्बायै दुर्गादेव्यै नम:। वस्त्रं समर्पया​मि ॥*
वस्त्रान्ते आचमनीयं जलं समर्पया​मि। 
वस्त्र पहनने के बाद पात्र में आचमन के लिये जल छोड़े।

*सौभाग्य सू़त्र👉 श्रीजगदम्बायै दुर्गादेव्यै नम:। सौभाग्य सूत्रं समर्पया​मि ॥*
मंगलसूत्र या हार पहनाए।

*चन्दन👉  श्रीजगदम्बायै दुर्गादेव्यै नम:। चन्दनं समर्पया​मि ॥*
चंदन लगाए

*ह​रिद्राचूर्ण👉 श्रीजगदम्बायै दुर्गादेव्यै नम:। ह​रिद्रां समर्पया​मि ॥*
हल्दी अर्पण करें।

*कुंकुम👉 श्रीजगदम्बायै दुर्गादेव्यै नम:। कुंकुम समर्पया​मि ॥*
कुमकुम अर्पण करें।

*​सिन्दूर👉  श्रीजगदम्बायै दुर्गादेव्यै नम:। ​सिन्दूरं समर्पया​मि ॥*
सिंदूर अर्पण करें।

*कज्जल👉 श्रीजगदम्बायै दुर्गादेव्यै नम:। कज्जलं समर्पया​मि ॥*
काजल अर्पण करें।

*दूर्वाकुंर👉  श्रीजगदम्बायै दुर्गादेव्यै नम:। दूर्वाकुंरा​नि समर्पया​मि ॥*
दूर्वा चढ़ाए।

*आभूषण👉 श्रीजगदम्बायै दुर्गादेव्यै नम:। आभूषणा​नि समर्पया​मि ॥*
यथासामर्थ्य आभूषण पहनाए।

*पुष्पमाला👉  श्रीजगदम्बायै दुर्गादेव्यै नम:। पुष्पमाला समर्पया​मि ॥*
फूल माला पहनाए।

*धूप👉 श्रीजगदम्बायै दुर्गादेव्यै नम:। धूपमाघ्रापया​मि॥*
धूप दिखाए।

*दीप👉 श्रीजगदम्बायै दुर्गादेव्यै नम:। दीपं दर्शया​मि।।*
दीप दिखाए।
दीप दिखाने के बाद हाथ धो लें।

*नैवेद्य👉 श्रीजगदम्बायै दुर्गादेव्यै नम:। नैवेद्यं ​निवेदया​मि॥*
नैवेद्यान्ते ​त्रिबारं आचमनीय जलं समर्पया​मि।
मिष्ठान भोग लगाएं इसके बाद पात्र में ३ बार आचमन के लिये जल छोड़े।

*फल👉 श्रीजगदम्बायै दुर्गादेव्यै नम:। फला​नि समर्पया​मि॥*
फल अर्पण करें। इसके बाद एक बार आचमन हेतु जल छोड़े 

*ताम्बूल👉 श्रीजगदम्बायै दुर्गादेव्यै नम:। ताम्बूलं समर्पया​मि॥*
लवंग सुपारी इलाइची सहित पान अर्पण करें।

*द​क्षिणा👉 श्रीजगदम्बायै दुर्गादेव्यै नम:। द​क्षिणां समर्पया​मि॥*
यथा सामर्थ्य मनोकामना पूर्ति हेतु माँ को दक्षिणा अर्पण करें कामना करें माँ ये सब आपका ही है आप ही हमें देती है हम इस योग्य नहीं आपको कुछ दे सकें।

*आरती👉 माँ की आरती करें*

*आरती के नियम*
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प्रत्येक व्यक्ति जानकारी के अभाव में अपनी मन मर्जी आरती उतारता रहता है। विशेष ध्यान देने योग्य बात है कि देवताओं के सम्मुख चौदह बार आरती उतारना चाहिए। चार बार चरणो पर से, दो बार नाभि पर से, एकबार मुख पर से तथा सात बार पूरे शरीर पर से। आरती की बत्तियाँ १, ५, ७ अर्थात विषम संख्या में ही बत्तियाँ बनाकर आरती की जानी चाहिए।

*माँ दुर्गा जी की आरती*
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जय अंबे गौरी, मैया जय श्यामा गौरी ।
तुमको निशदिन ध्यावत, हरि ब्रह्मा शिवरी ॥ ॐ जय…

मांग सिंदूर विराजत, टीको मृगमद को ।
उज्ज्वल से दोउ नैना, चंद्रवदन नीको ॥ ॐ जय…

कनक समान कलेवर, रक्तांबर राजै ।
रक्तपुष्प गल माला, कंठन पर साजै ॥ ॐ जय…

केहरि वाहन राजत, खड्ग खप्पर धारी ।
सुर-नर-मुनिजन सेवत, तिनके दुखहारी ॥ ॐ जय…

कानन कुण्डल शोभित, नासाग्रे मोती ।
कोटिक चंद्र दिवाकर, राजत सम ज्योती ॥ ॐ जय…

शुंभ-निशुंभ बिदारे, महिषासुर घाती ।
धूम्र विलोचन नैना, निशदिन मदमाती ॥ॐ जय…

चण्ड-मुण्ड संहारे, शोणित बीज हरे ।
मधु-कैटभ दोउ मारे, सुर भय दूर करे ॥ॐ जय…

ब्रह्माणी, रूद्राणी, तुम कमला रानी ।
आगम निगम बखानी, तुम शिव पटरानी ॥ॐ जय…

चौंसठ योगिनी गावत, नृत्य करत भैंरू ।
बाजत ताल मृदंगा, अरू बाजत डमरू ॥ॐ जय…

तुम ही जग की माता, तुम ही हो भरता ।
भक्तन की दुख हरता, सुख संपति करता ॥ॐ जय…

भुजा चार अति शोभित, वरमुद्रा धारी ।
मनवांछित फल पावत, सेवत नर नारी ॥ॐ जय…

कंचन थाल विराजत, अगर कपूर बाती ।
श्रीमालकेतु में राजत, कोटि रतन ज्योती ॥ॐ जय…

श्री अंबेजी की आरति, जो कोइ नर गावे ।
कहत शिवानंद स्वामी, सुख-संपति पावे ॥ॐ जय…

श्रीजगदम्बायै दुर्गादेव्यै नम:। आरा​र्तिकं समर्पया​मि॥
*आरती के बाद आरती पर चारो तरफ जल फिराये। और इसके बाद हाथ जोड़कर प्रदक्षिणा (परिक्रमा) करें।*

*प्रदक्षिणा मंत्र*
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यानि कानि च पापानि जन्मांतर कृतानि च।
तानि सवार्णि नश्यन्तु प्रदक्षिणे पदे-पदे।।

मंत्र का अर्थ – हमारे द्वारा जाने-अनजाने में किए गए और पूर्वजन्मों के भी सारे पाप  प्रदक्षिणा में बढ़ते कदमो के साथ साथ नष्ट हो जाए।

इसके बाद भूल चुक के लिए क्षमा प्रार्थना करें।

*क्षमा प्रार्थना मंत्र*
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न मंत्रं नोयंत्रं तदपि च न जाने स्तुतिमहो
न चाह्वानं ध्यानं तदपि च न जाने स्तुतिकथाः ।
न जाने मुद्रास्ते तदपि च न जाने विलपनं
परं जाने मातस्त्वदनुसरणं क्लेशहरणम् ॥ 

विधेरज्ञानेन द्रविणविरहेणालसतया
विधेयाशक्यत्वात्तव चरणयोर्या च्युतिरभूत् ।
तदेतत्क्षतव्यं जननि सकलोद्धारिणि शिवे
कुपुत्रो जायेत क्वचिदपि कुमाता न भवति ॥
                        
पृथिव्यां पुत्रास्ते जननि बहवः सन्ति सरलाः
परं तेषां मध्ये विरलतरलोऽहं तव सुतः ।
मदीयोऽयंत्यागः समुचितमिदं नो तव शिवे
कुपुत्रो जायेत् क्वचिदपि कुमाता न भवति ॥
                        
जगन्मातर्मातस्तव चरणसेवा न रचिता
न वा दत्तं देवि द्रविणमपि भूयस्तव मया ।
तथापित्वं स्नेहं मयि निरुपमं यत्प्रकुरुषे
कुपुत्रो जायेत क्वचिदप कुमाता न भवति ॥
                       
परित्यक्तादेवा विविध​विधिसेवाकुलतया
मया पंचाशीतेरधिकमपनीते तु वयसि ।
इदानीं चेन्मातस्तव कृपा नापि भविता
निरालम्बो लम्बोदर जननि कं यामि शरण् ॥
            
श्वपाको जल्पाको भवति मधुपाकोपमगिरा
निरातंको रंको विहरति चिरं कोटिकनकैः ।
तवापर्णे कर्णे विशति मनुवर्णे फलमिदं
जनः को जानीते जननि जपनीयं जपविधौ ॥  
                    
चिताभस्मालेपो गरलमशनं दिक्पटधरो
जटाधारी कण्ठे भुजगपतहारी पशुपतिः ।
कपाली भूतेशो भजति जगदीशैकपदवीं
भवानि त्वत्पाणिग्रहणपरिपाटीफलमिदम् ॥
                         
न मोक्षस्याकांक्षा भवविभव वांछापिचनमे
न विज्ञानापेक्षा शशिमुखि सुखेच्छापि न पुनः ।
अतस्त्वां संयाचे जननि जननं यातु मम वै
मृडाणी रुद्राणी शिवशिव भवानीति जपतः ॥
                        
नाराधितासि विधिना विविधोपचारैः
किं रूक्षचिंतन परैर्नकृतं वचोभिः ।
श्यामे त्वमेव यदि किंचन मय्यनाथे
धत्से कृपामुचितमम्ब परं तवैव ॥
                                    
आपत्सु मग्नः स्मरणं त्वदीयं
करोमि दुर्गे करुणार्णवेशि ।
नैतच्छठत्वं मम भावयेथाः
क्षुधातृषार्ता जननीं स्मरन्ति ॥
                                      
जगदंब विचित्रमत्र किं परिपूर्ण करुणास्ति चिन्मयि ।
अपराधपरंपरावृतं नहि मातासमुपेक्षते सुतम् ॥
                                                    
मत्समः पातकी नास्तिपापघ्नी त्वत्समा नहि ।
एवं ज्ञात्वा महादेवियथायोग्यं तथा कुरु  ॥

*इसके बाद सभी लोग माँ को शाष्टांग प्रणाम कर घर मे सुख समृद्धि की कामना करें प्रशाद बांटें।*
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                    *आपका अपना*
             *"पं.खेमेश्वरपुरी गोस्वामी"*
        *धार्मिक प्रवक्ता-ओज-व्यंग्य कवि*
    *श्रीराम कथा, श्रीमद्भागवत ,शिव कथा*
        *जाप-पाठ, वैदिक यज्ञ अनुष्ठान*
                    *राष्ट्रीय प्रवक्ता*
           *राष्ट्र भाषा प्रचार मंच-भारत* 
             *डिंडोरी-मुंगेली-छत्तीसगढ़*
       *8120032834/7828657057*
             *🙇‍♂ जय माता दी 🙇‍♂*
     *🌼🙏🏻🌞 शुभ रात्रि🌞🙏🏻🌼*

Monday, August 9, 2021

श्रीमद्भागवत कथा,श्रीमद्देवीभागवत कथा संक्षिप्त सामाग्री

                 अथ मंडप विधान
1-16हाथ का वर्गाकार तृण मण्डप या पट पण्डप।
2-तोरण पताका,अशोकपत्र,केला स्तम्भ सुसज्जित।
3-सर्वतोभद्र मण्डल (प्रधान वेदी)।
4-नवग्रह वेदी,64 योगिनी।
5-दशदिक्पाल वेदी,64योगिनी।
6-हवन वेदी, शान्ति कलश।
7-व्यासवेदी तथा अन्यान्य आसन।

               मंगलपांड्ग सामग्री
1-पंच पल्लव।             8-पूजन सामग्री।
2-पंचगव्य।                 9-वरण सामग्री।
3-पंचामृत।                 10-दान सामग्री।
4-पंचरत्न।                 11-हवन सामग्री।
5-नवरत्न।                 12-नवग्रह समिधा (लकड़ी)।
6-सप्तमृतिका।           13-विविध पुष्प,फल, वस्त्र        7-सप्तधान्य।                              विभूषण आदि।
कलश 2 घड़ा ,10मेटा ,पुरवा,ढकनी, दीया,पत्तल,दोना,प्रधान कलश तांबे का,गुण्डी।

                   श्री पूजन सामग्री
अक्षत, सुपारी,छूटा पान,केशर, कस्तुरी,अतर,रोली,अबीर,गुलाल,हल्दी पाउडर, मेहंदी पाउडर,सिंदूर,नारा,सवौषधि,कपूर,रुई,माचिस, धूपबत्ती,कुश,दुर्वा (दुब), बिल्वपत्र, तुलसी दल,विविध पुष्प मालाएं,, पंचमेवा,पंचरंग,कच्चा सूत (कुंवारी धागा),शहद,गो घृत,बतासा,पेड़ा, लड्डू,शक्कर, गुड़,जव,तिल (सफेद व काला),उरद, दूध, ऋतुफल,दही,पीली सरसों,गरी गोला, धूप-दीप, नारियल, अगरबत्ती,आरती,जायफल,कुशासनी-7, कमण्डलु,गुलाबजल, गंगाजल,तीर्थजल,कांसे की कटोरी,थाली, कटोरी,लोटा गिलास,पंचपात्र, यज्ञोपवीत (जनेऊ),विविध प्रकार वस्त्र आभूषण,लवंग,लाइची, पूर्णपात्र, अष्टगंध, अष्टधातु, रुद्राक्ष माला,शंख,घंटा।

              वरण सामग्री-व्यास के लिए
धोती, पीताम्बरी धोती,गमछा भगवा,चादर (सिल्क), पगड़ी,कुरता, यज्ञोपवीत, आसनी, जयमाला, जलपान,लघुपात्र,भोजनपात्र।
                       आचार्यादि वरण
 धोती,गमछा,चादर, यज्ञोपवीत, आसनी, पंचपात्र।

                        प्रधान वेदी पर 
 ताम्र कलश, रेशमी साड़ी, चुनरी, लहंगा,लाल वस्त्र, आभूषण, गोपाल जी की प्रतिमा (श्रीमद्भागवत)/देवी की स्वर्ण या कांसे की प्रतिमा (श्रीमद्देवीभागवत)!

                           शय्या दान
पलंग, तोषक,कटोरी,कड़ाही, तकिया,चादर,सड़सी,कलछी,दरी,गलैचा, बाल्टी,दुलाई,चिमटा, धोती,चम्मच,गमछा, तस्तरी,बड़ली २,मिर्जई,चादर, लोहे का चुल्हा,छाता,तावा,पदत्राण (खड़ऊ),चौकी,बेलना,भोजन पात्र,अन्न, वस्त्र,लोटा गिलास,फल व्यंजन आदि।

                            हवन द्रव्य
धूम्र चूर्ण,श्वेत चंदन,चंदन धुरा,रक्त चंदन,देवदारू, भोजपत्र,चांवल,अगर,तगर,जव,तिल,तेजपत्र, गुड़,कवलगट्टा,गुग्गुल, पंचमेवा, जटामासी,तालमखाना,करायत, जावित्री,छडीला,गो घृत आदि।
                          भोग प्रसाद इत्यादि
भोग                               फल प्राप्ति
गो घृत-                          आरोग्य प्राप्ति
शक्कर-                          दीर्घायु
दुध-                               दुध की निवृत्ति
मालपुआ-                       निर्णय की विकास
केला-                             बुद्धि का विकास
शहद-                             आकर्षण, सुंदरता
गुड़ -                              रोग से मुक्ति
नारियल-                         हर प्रकार की पीड़ा समाप्त
पान-                              लोक परलोक शुद्धि
कालि तिल-                     पर लोक से मुक्ति


                    *आपका अपना*
             *"पं.खेमेश्वरपुरी गोस्वामी"*
        *धार्मिक प्रवक्ता-ओज-व्यंग्य कवि*
    *श्रीराम कथा, श्रीमद्भागवत ,शिव कथा*
        *जाप-पाठ, वैदिक यज्ञ अनुष्ठान*
                    *राष्ट्रीय प्रवक्ता*
           *राष्ट्र भाषा प्रचार मंच-भारत* 
             *डिंडोरी-मुंगेली-छत्तीसगढ़*
       *8120032834/7828657057*
             *🙇‍♂ जय श्री राम 🙇‍♂*

Sunday, August 8, 2021

पूजा पाठ

*हमसे व श्री गौरकापा मठ श्री सिद्धेश्वर महादेव मंदिर/श्री शनिदेव मंदिर/दुर्गा मंदिर में पूजन हवन अनुष्ठान रुद्राभिषेक साढ़े साती ग्रह शांति इत्यादि स्वयं के लिए अथवा अपने प्रियजनों के लिए करवाने के लिए निम्नलिखित जानकारी दें ।(यदि आप स्वयं उपस्थित हो सकें तो अधिक उत्तम है ।यदि किसी कारण स्वयं उपस्थित न हो सके तो निम्नलिखित जानकारी दें ।)* *1, आपका पता - मकान न०, गली न०, मोहल्ला,शहर, ज़िला, राज्य आदि । (आपको प्रसाद इसी पते पर भिजवाया जाएगा 2, आपका गोत्र । 3, आपका नाम तथा आपके परिवार के अन्य सदस्यों के नाम ।4, आपका whatsapp नम्बर । 5, आपकी जन्म कुंडली या जन्म समय, जन्म तारीख, जन्म स्थान । 6, आपकी फोटो । 
 1.कालसर्प दोष:- 3100 से 11000 2.पितृदोष एवं नागबलि नारायनबली:- 3100 से 21000 3.मंगल दोष व भात पूजन :- 5100 4.लघुरुद्राभिषेक 5 से 11 पण्डित :- 15000 5.महारुद्राभिषेक 51 से 101 पण्डित :- 1 लाख से 5 लाख तक 6.महामृत्युंजय सवालक्ष महाकाल मंदिर :- 51000 7. नवग्रह जाप :- 5100 8. बगलामुखी पाठ हवन :- 11000 से 51000 9. विक्रांत भेरव पाठ हवन :- 11000 से 2 लाख 10. राजनीति, उच्चाटन,स्थम्भन, वशीकरण व अन्य :- 11000 से 5 लाख तक 11. काली हल्दी ओरजीनल :- 10 ग्राम के 2 लाख  12. शनि ग्रह शांति - 5100 से 11000 13.वास्तु दोष निवारण -2100 से 5100 14.पार्थिव पूजन -5100 से 11000 15. मंदिर स्थापना प्राण प्रतिष्ठा -11000 से 51000 16.सत्यनारायण कथा -1100 से 3100 17. समस्त पुराण हवन व पाठ मात्र -5100 से 31000 18. श्रीमद्भागवत कथा सप्ताह यज्ञ,शिव पुराण कथा सप्ताह यज्ञ,श्री राम कथा तीन दिवसीय -11000 से 31000 19. समस्त प्रकार यज्ञ अनुष्ठान, रूद्र महायज्ञ, चंडी,सतचंडी यज्ञ , लक्ष्मीनारायण यज्ञ, गायत्री यज्ञ, मानस यज्ञ अनुष्ठान,महाकाली यज्ञ विशेष अनुष्ठान, अश्वमेध यज्ञ- 51000 से 5लाख 20.दैवीय प्रकोप शांति -21000 से 1लाख 51000 व समस्त वैदिक कर्मकाण्ड जाप पाठ यज्ञ अनुष्ठान वास्तु-ग्रह दोष निवारण व शांति पाठ हेतु नि: संकोच संपर्क करें, दक्षिणा कम ले सकते हैं जिसमें आप भी संतुष्ट रहें नियत दक्षिणा नहीं है सिर्फ एक अनुमान है,व श्रीमद्भागवत कथा नि: शुल्क सिर्फ चढ़ोतरी स्वेच्छा दान दक्षिणा मात्र से किया जाएगा सार नही विस्तार भी कथा कही जाएगी।
                    *आपका अपना*
             *"पं.खेमेश्वरपुरी गोस्वामी"*
        *धार्मिक प्रवक्ता-ओज-व्यंग्य कवि*
    *श्रीराम कथा, श्रीमद्भागवत ,शिव कथा*
        *जाप-पाठ, वैदिक यज्ञ अनुष्ठान*
                    *राष्ट्रीय प्रवक्ता*
           *राष्ट्र भाषा प्रचार मंच-भारत* 
             *डिंडोरी-मुंगेली-छत्तीसगढ़*
       *8120032834/7828657057*

Saturday, August 7, 2021

सुंदर काण्ड के पाठ के अद्भुत लाभ

*👉सुंदरकांड के पाठ के अद्भुत लाभ✍️*
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*सकल सुमंगल दायक रघुनायक गुन गान।*
*सादर सुनहिं ते तरहिं भव सिंधु बिना जल जान॥*

भावार्थ:-श्री रघुनाथजी का गुणगान संपूर्ण सुंदर मंगलों का देने वाला है। जो इसे आदर सहित सुनेंगे, वे बिना किसी जहाज (अन्य साधन) के ही भवसागर को तर जाएँगे॥

*1.* सुन्दरकाण्ड का पाठ ऐसी मान्यता है कि हनुमान जी से जुड़ा कोई भी मंत्र या पाठ अन्य किसी भी मंत्र से अधिक शक्तिशाली होता है। हनुमान जी अपने भक्तों को उनकी उपासना के फल में बल और शक्ति प्रदान करते हैं।

*2.* सुन्दरकाण्ड के लाभ लेकिन आज हम विशेष रूप से सुंदरकांड पाठ के महत्व और उससे मिलने वाले लाभ पर बात करेंगे। भक्तों द्वारा हनुमान जी को प्रसन्न करने के लिए अमूमन हनुमान चालीसा का पाठ किया जाता है। हनुमान चालीसा बड़े-बूढ़ों से लेकर बच्चों तक को जल्दी याद हो जाता है।

*3.* हनुमान चालीसा लेकिन हनुमान चालीसा के अलावा यदि आप सुंदरकांड पाठ के लाभ जान लेंगे तो इसे रोजाना करना पसंद करेंगे। हिन्दू धर्म की प्रसिद्ध मान्यता के अनुसार सुंदरकांड का पाठ करने वाले भक्त की मनोकामना जल्द पूर्ण हो जाती है।

*4.* सुंदरकांड अध्याय सुंदरकांड, गोस्वामी तुलसीदास द्वारा लिखी गई रामचरितमानस के सात अध्यायों में से पांचवा अध्याय है। रामचरित मानस के सभी अध्याय भगवान की भक्ति के लिए हैं, लेकिन सुंदरकांड का महत्व अधिक बताया गया है।

*5.* सुंदरकांड पाठ का महत्व जहां एक ओर पूर्ण रामचरितमानस में भगवान के गुणों को दर्शाया गया है, उनकी महिमा बताई गई है लेकिन दूसरी ओर रामचरितमानस के सुंदरकांड की कथा सबसे अलग है। इसमें भगवान राम के गुणों की नहीं बल्कि उनके भक्त के गुणों और उसकी विजय की बात बताई गई है।

*6.* हनुमान पाठ के लाभ सुंदरकांड का पाठ करने वाले भक्त को हनुमान जी बल प्रदान करते हैं। उसके आसपास भी नकारात्मक शक्ति भटक नहीं सकती, इस तरह की शक्ति प्राप्त करता है वह भक्त। यह भी माना जाता है कि जब भक्त का आत्मविश्वास कम हो जाए या जीवन में कोई काम ना बन रहा हो, तो सुंदरकांड का पाठ करने से सभी काम अपने आप ही बनने लगते हैं।

*7.* शास्त्रीय मान्यताएं किंतु केवल शास्त्रीय मान्यताओं ने ही नहीं, विज्ञान ने भी सुंदरकांड के पाठ के महत्व को समझाया है। विभिन्न मनोवैज्ञानिकों की राय में सुंदरकांड का पाठ भक्त के आत्मविश्वास और इच्छाशक्ति को बढ़ाता है।

*8.* सुंदराकांड पाठ का अर्थ इस पाठ की एक-एक पंक्ति और उससे जुड़ा अर्थ, भक्त को जीवन में कभी ना हार मानने की सीख प्रदान करता है। मनोवैज्ञानिकों के अनुसार किसी बड़ी परीक्षा में सफल होना हो तो परीक्षा से पहले सुंदरकांड का पाठ अवश्य करना चाहिए।

*9.* सुंदराकांड पाठ का महत्व यदि संभव हो तो विद्यार्थियों को सुंदरकांड का पाठ करना चाहिए। यह पाठ उनके भीतर आत्मविश्वास को जगाएगा और उन्हें सफलता के और करीब ले जाएगा।

*10.* सफलता के सूत्र आपको शायद मालूम ना हो, लेकिन यदि आप सुंदरकांड के पाठ की पंक्तियों के अर्थ जानेंगे तो आपको यह मालूम होगा कि इसमें जीवन की सफलता के सूत्र भी बताए गए हैं।

*11.* सफल जीवन के मंत्र यह सूत्र यदि व्यक्ति अपने जीवन पर अमल कर ले तो उसे सफल होने से कोई नहीं रोक सकता। इसलिए यह राय दी जाती है कि यदि रामचरित्मानस का पूर्ण पाठ कोई ना कर पाए, तो कम से कम सुंदरकांड का पाठ अवश्य कर लेना चाहिए।

*12.* इस समय करें सुंदराकांड का पाठ -

यहां तक कि यह भी कहा जाता है कि जब घर पर रामायण पाठ रखा जाए तो उस पूर्ण पाठ में से सुंदरकांड का पाठ घर के किसी सदस्य को ही करना चाहिए। इससे घर में सकारात्मक शक्तियों का प्रवाह होता है।

*13.* ज्योतिष के लाभ ज्योतिष के नजरिये से यदि देखा जाए तो यह पाठ घर के सभी सदस्यों के ऊपर मंडरा रहे अशुभ ग्रहों छुटकारा दिलाता है। यदि स्वयं यह पाठ ना कर सकें, तो कम से कम घर के सभी सदस्यों को यह पाठ सुनना जरूर चाहिए। अशुभ ग्रहों का दोष दूर करने में लाभकारी है सुंदरकांड का पाठ।

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