छत्तीसगढ़ में नंदावत हे
रचना:- पं. खेमेस्वर पुरी गोस्वामी (छत्तीसगढ़िया राजा)
कभू-कभू मोर मन मं,
ये खियाल आवत हे।
इडली-दोसा ह संगी,
सबो झन ल मिठावत हे।
चिला-फरा ह काबर,
कोनो ल नइ भावत हे।
छत्तीसगढ़ी बियंजन ह,
छत्तीसगढ़ मं नदावत हे।
दूसर के रंग मं संगी,
खुद ल रंगावत हे।
बासी-चटनी बोजइया,
पुलाव ल पकावत हे।
पताल के झोझो नदागे,
मटर-पनीर सुहावत हे।
छत्तीसगढ़ी बियंजन ह,
छत्तीसगढ़ मं नदावत हे।
अंगाकर के पूछइया,
पिज्जा म हट जावत हे।
बोबरा-चौसेला ल छोर के,
सांभर-बड़ा सोरियावत हे।
भुलागे खीर बनाय बर,
लइका ल मैगी खवावत हे।
छत्तीसगढ़ी बियंजन ह,
छत्तीसगढ़ मं नदावत हे।
तिहार मं नइये संगी,
ठेठरी-खुरमी के खवइया।
आजकल के बहू भइया,
नवा-नवा रोटी बनइया।
अइरसा-पोपची भुला के,
नमकीन-गुजिया बनावत हे।
छत्तीसगढ़ी बियंजन ह,
छत्तीसगढ़ मं नदावत हे।
अपन भाषा,अपन बोली,
बचावव नारा लगावत हे।
जेने ह नरियावत हे,
तेने ह मिटावत हे।
छोर के हमर भाषा,
अंग्रेजी मं गोठियावत हे।
छत्तीसगढ़ी भाषा ह,
छत्तीसगढ़ मं नदावत हे।
अपन ल छोड़ के ,
सबे ल अपनावत हे।
अरे भई,
जेने नइ तेने जगा तो ठगावत हे।
रोटी भाखा के का कबे,
छत्तीसगढ म खुद छत्तीसगढ़िया नदावत हे ।
अब तो बाहरी मन,
छत्तीसगढ़िया बन जावत हे ।
बाहरीच मन बर तो,
सब ले बढि़या कहावत हे?
छत्तीसगढ़ मं खुद छत्तीसगढ़िया नंदावत हे!!
छत्तीसगढ़िया नंदावत हे......!!
जय जोहार, जय छत्तीसगढ़।
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