ऐ कलयुग के भीष्म पितामह,
आस तुझसे कर गलती कर दी है।
सिंहासन पर बिठा के गंगा ने,
खुद की धारा को उल्टा कर दी है।।
था सही ओ अंधा मौनी राजा,
कम-से-कम नारी सुरक्षा सेवा दी है।
तु बैठे देखता द्रोपदी चीरहरण,
मानो जुएं में जीत तुझे मेवा दी है।।
सोचा था तु बनेगा मेरा कान्हा,
पर दुर्योधन सा हद तुने कर दी है।
दुस्शासन रोज यहां जन्म लेता,
सहनशीलता तुने अमर कर दी है।।
अग्निपरीक्षा रोज देती सीता तो,
फिर भी मर्यादा रक्षा तुने तज दी है।
याद कर वो सत्ता पहले की वादें,
सुरक्षा की सुदर्शन कहां धर दी है।।
अब लाज नहीं आती क्यों तुझे,
नाम हजार बार रणछोर कर ली है।
क्या घड़े नहीं भरें शिशुपाल के,
शिश छोड़ सुदर्शन कहां धर दी है।।
©✍पं.खेमेश्वर पुरी गोस्वामी✍®
युवा ओज-व्यंग्य कवि
मुंगेली - छत्तीसगढ़
७८२८६५७०५७
No comments:
Post a Comment