Thursday, October 31, 2019

साधना

*सनातन धर्म में किसी भी यथेष्ट को प्राप्त करने के लिए कुछ साधन बताए गए जिन्हें साधना का नाम दिया गया है | किसी भी साधना के पूर्ण होने या अवरोधित होने में सबसे बड़ा चरित्र मनुष्य के मन का होता है | क्योंकि लिखा है कि :- "मन: एव मनुष्याणां कारणं बन्ध मोक्षयो:" मन ही मनुष्य के मोक्ष एवं बन्धन का कारण होता है | मनुष्य का मन बड़ा चंचल होता है यदि मनुष्य ने अपने मन को बस में कर लिया तो उसकी साधना पूर्ण हो जाती है , और यदि मन भटक जाता है तो साधना अवरुद्ध हो जाती है | मन का सहज स्वभाव व कामना होती है :- सुख एवं विषयोंन्मुखता | मन सदैव सांसारिक सुखों की तलाश में रहता है , मन का अस्तित्व ही इसी पर टिका हुआ है | मन की चंचलता सर्वविदित है , सांसारिक सुख की मृग मरीचिका के पीछे भागना भटकते मन का स्वभाव होता है | मन की हालत उस बंदर की तरह होती है जिसका स्वभाव ही चंचल होता है और उस चंचलता पर उसे मदिरा पिला दी जाए और फिर कोई बिच्छू स्कोर डंक मार दे इन सब से वह सम्भल भी नहीं पाता नहीं कि उस पर एक दानव सवार हो जाता है | ठीक उसी प्रकार यह मन वासना रूपी मदिरा पीकर उन्मत्त हो जाता है और उस पर ईर्ष्या रूपी बिच्छू का डंक उसे और पागल कर देता है इसके बाद उसके ऊपर अहंकार रूपी दानव जब सवार हो जाता है तो यह मन किसी को भी कुछ नहीं समझता है | ऐसी अवस्था में मन का निग्रह दुष्कर हो जाता है , इसलिए प्रत्येक मनुष्य को मन की विपरीत विचारों से सावधान रहने एवं उसको अनुशासित करने की आवश्यकता होती है , क्योंकि मन को अनुशासित किए बिना कोई भी साधना कभी भी सफल नहीं हो सकती |* 

*आज का परिवेश इतना दूषित हो गया है कि प्रत्येक मनुष्य अपने मन की विसंगतियों से स्वयं को बचा ही नहीं पा रहा है | साधना करना तो दूर की बात है आज मनुष्य कुछ क्षण बैठकर ध्यान कर पाने में भी असफल हो रहा है | ऐसा नहीं है कि आज ध्यान व साधना करने वाले महापुरुष नहीं है ! आज भी साधनायें हो रही हैं और होती रहेंगी , परंतु आज जिस प्रकार समाज में अनाचार , कदाचार , भ्रष्टाचार एवं आत्महत्या जैसे कुकृत्य हो रहे हैं तो उसका मुख्य कारण मन की चंचलता व अवसाद ही है | मैं "आचार्य अर्जुन तिवारी" आज समाज को देखते हुए यह कह सकता हूँ कि आज स्वयं के मन को साधने वालों की संख्या अल्प रह गयी है | छोटी - छोटी बात पर मन उद्विग्न हो जाता है और मनुष्य आत्महत्या जैसी कायरता करने को प्रेरित होकर यह कार्य कर डालता है | मनुष्य के सुख एवं दुख का कारण मनुष्य के मन को ही कहा गया है | आज का मनुष्य सुख की अपेक्षा दुख का अनुभव अधिक करता है , मनुष्य के दुख का कारण बनती हैं सांसारिक उपभोग की वस्तुओं का अभाव | सांसारिक वस्तुओं से मनुष्य का मन कभी भरता ही नहीं है | कुछ न कुछ रिक्तता मनुष्य के जीवन में सदैव बनी रहती है उसी रिक्तता को पूर्ण करने के उद्योग में मनुष्य व्यस्त रहता है और उसकी पूर्ति न होने पर दुखी हो जाता है | जबकि इस संसार में पूर्ण कोई भी नहीं है ! समस्त ब्रह्माण्ड में परमात्मा के अतिरिक्त कोई भी पूर्ण नहीं है , यह सभी जानते भी हैं परंतु चंचल मन मानता नहीं और विषयोपभोग की कामना से इधर से उधर भटका करता है | मन को संतोष कभी नहीं होता , जिसके मन में संतोष हो गया समझ लो उसने सबकुछ प्राप्त कर लिया | मन को ही साध लेना सबसे बड़ी साधना कहा गया है |* 

*मानव मन की गति अपार है , यह मनुष्य को कभी बैठने नहीं देता | इस संसार में किसी को भी जीतने की अपेक्षा सर्वप्रथम अपने मन पर विजयप्राप्त करने वाला ही दिग्विजयी होता है |*                                         

                        प्रस्तुति
             "पं.खेमेश्वर पुरी गोस्वामी"
            धार्मिक प्रवक्ता-ओज कवि
          प्रदेश संगठन मंत्री एवं प्रवक्ता
   अंतरराष्ट्रीय युवा हिंदू वाहिनी छत्तीसगढ़
      ८१२००३२८३४-/-७८२८६५७०५७,

No comments:

Post a Comment

न्यू २

प्रति मां. मुख्यमंत्री श्री भूपेश बघेल जी रायपुर , छत्तीसगढ़ शासन विषय : आर्थिक सहायता,आवास, तथा आवासीय पट्टा दिलाने बाबत् आदरणीय महोदय,   ...