समझ आई न जिसको भी हमारे प्यार की भाषा ।।
सुनाई फिर उसे हमनें तनें हथियार की भाषा ।।(1)
बढ़ें जब हाथ गर्दन को उठे दस्तार पर उँगली,
हमारा फ़र्ज़ बनता है लिखें अंगार की भाषा ।।(2)
परिंदों पर निसाना साधकर बैठे कफ़स डाले,
दरिंदों को समझ आती नहीं लाचार की भाषा ।।(3)
गुलों से पूछियेगा दर्द की तासीर क्या होती,
बतायेंगे वही तुमको चुभन की खार की भाषा ।।(4)
निभाओ फ़र्ज़ अपना सब रहो ईमान पे कायम,
मगर भूलो नहीं अपनें कभी अधिकार की भाषा ।।(5)
निभाता कौन है वादे मियाँ अब के ज़माने में,
करो तुम ताजपोशी फिर सुनो सरकार की भाषा ।।(6)
युवा पीढी नपुंसकता वरण करनें लगे जब भी,
उठाओ लेखनी अपनी लिखो तलवार की भाषा ।।(7)
बढाया हाथ हमनें है हमेशा मित्रता का पर,
इज़ाफ़े में मिली उससे हमें इनकार की भाषा ।।(8)
सभी की आँख का तारा बना है खेमेश्वर जी,
हमेशा बोलता है एक ज़िम्मेदार की भाषा ।।(9)
©"पं.खेमेश्वर पुरी गोस्वामी"®
धार्मिक प्रवक्ता-ओज कवि
डिंडोरी-मुंगेली-छत्तीसगढ़
8120032834/7828657057
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