Monday, July 20, 2020

कर्मण्येवाधिकारस्ते

🗣️  ⛳ *श्लोक* ⛳

*कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन।*
*मा कर्मफलहेतुर्भूर्मा ते सङ्गोऽस्त्वकर्मणि।।* ४७

*योगस्थः कुरु कर्माणि सङ्गं त्यक्त्वा धनञ्जय।*
*सिद्ध्यसिद्ध्योः समो भूत्वा समत्वं योग उच्यते।।* ४८
 
*📝 ⛳भावार्थ-*⛳

 *कर्म करने मात्र में तुम्हारा अधिकार है ,फल में कभी नहीं। तुम कर्म फल के हेतु वाले मत होना और अकर्म में भी तुम्हारी आसक्ति न हो।।*

*हे धनञ्जय ! तू आसक्ति का त्याग करके सिद्धि-असिद्धि में सम होकर योग में स्थित हुआ कर्मों को कर; क्योंकि समत्व ही योग कहा जाता है।*

*✍🏻 ⛳विवेचना-*⛳

भगवद्गीता की सर्वश्रेष्ठ शिक्षाओं में से एक और सबसे प्रसिद्ध श्लोक है यह- *कर्मण्येवाधिकारस्ते.......*
 _मानव जीवन को सुर दुर्लभ इसीलिए कहा गया है क्योंकि इसमें कर्म करने का अधिकार है।परंतु हमारे प्रयत्न, पुरुषार्थ का परिणाम क्या और कितना होगा ये हम नहीं जानते। *जहाँ आशा है वहीँ निराशा भी होती है। अतः यहाँ एक बात स्पष्ट करने की आवश्यकता है कि बिना परिणाम पर विचार किये तो कोई कार्य नहीं हो सकता , विचार कर ही कोई कार्य करना भी चाहिए परंतु उसका परिणाम हमारी अपेक्षा के अनुरूप न आये तो उससे हताश निराश न होकर हमें समत्व भाव से उसे स्वीकार भी करना चाहिए।* जिस प्रकार प्रत्येक विद्यार्थी परीक्षा में अच्छे नंबरों के आने की उम्मीद कर परीक्षा देता है परंतु परीक्षक उसका मूल्यांकन कर उचित अंक प्रदान करता है। परिणामस्वरूप कोई प्रथम, कोई द्वितीय, कोई तृतीय श्रेणी में उत्तीर्ण होता है तो कोई फेल भी हो जाता है। *भगवान श्रीराम जी को जब राजतिलक की सूचना दी गयी, और अगले ही दिन 14 वर्ष वनवास का आदेश हुआ। दोनों ही स्थितियों में उनके ह्रदय में और चेहरे पर समान भाव थे यही समत्व योग है।* साथ ही हमारे हृदय में यह पूर्ण विश्वास बने रहना चाहिए कि वह परमात्मा सर्वव्यापी, समदर्शी और न्यायकारी होने के कारण हमारे द्वारा किये गए प्रयत्न, पुरुषार्थ का निश्चित और उचित फल भी देगा। किसी कवि ने लिखा है:-- *कर्म किये जा फल की चिंता मत कर ओ इंसान,जैसा कर्म करेगा वैसा फल देगा भगवान,ये है गीता का ज्ञान,* ये है गीता का ज्ञान।_
*श्रीभगवद्गीता जी के इन दो श्लोकों को ही जिनमें समत्व भाव से कर्म करने की बात भगवान श्रीकृष्ण ने कही हैं इसी को श्रीरामचरित मानस में भगवान राम ने शबरी को भक्ति की सर्वोच्च अवस्था बतलाया है:--*
🗣️
*आठवाँ जथा लाभ संतोषा,सपनेहुँ नहिं देखइ पर दोषा ।*
*नवम सरल सब सन् छल हीना,मम भरोस हिय हरष न दीना ।*

_अर्थात ईश्वर की कर्मफल व्यवस्था में पूर्ण विश्वास रखते हुए , हमारे प्रयत्न पुरुषार्थ का जो कुछ भी परिणाम प्राप्त हो उस पर संतोष करते हुए ना तो विपरीत परिणाम के लिए किसी की आलोचना करना चाहिए और न ही मनोनुकूल फल प्राप्त होने पर ख़ुशी से पागल हो जाना चाहिए।_

📝  ⛳ *निष्कर्ष:--*⛳

_हम सभी को *अपने जीवन में , ईश्वर पर पूर्ण विश्वास रखते हुए, निष्काम और समत्व भाव से कर्म करते रहना चाहिए।यह निष्काम भाव, समत्व भाव एक दिन में नहीं आएगा परंतु निरंतर मनन, चिंतन, अभ्यास करने से धीरे धीरे हम मानव जीवन कीपूर्णता और सर्वोच्च अवस्था तक जा पहुंचेंगे।*
🙏🏻
*सभी भगवत्प्रेमियों को आज दिवस की शुभ मंगल कामना 🏵️🌼🙏🌼🏵️*

                   आपका अपना
             "पं.खेमेश्वरपुरी गोस्वामी"
        धार्मिक प्रवक्ता-ओज-व्यंग्य कवि
                    राष्ट्रीय प्रवक्ता
           राष्ट्र भाषा प्रचार मंच-भारत
             डिंडोरी-मुंगेली-छत्तीसगढ़
       8120032834/7828657057

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