भाद्रपद शुक्ल , पंचमी :- *ऋषि पंचमी*
हिंदू धर्म में त्योहार की दृष्टि से भादो का माह काफी महत्वपूर्ण है। जन्माष्टमी, हरतालिका तीज और गणेश चतुर्थी जैसे मुख्य त्योहार भी इसी माह में पड़ते हैं इसी तरह भाद्रपद के शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि को ऋषि पंचमी का पर्व मनाया जाता है। धार्मिक दृष्टि से यह त्योहार काफी महत्वपूर्ण होता है। इस साल यह 3 सिंतबर यानी आज मनाया जाएगा। धार्मिक मान्यतानुसार, ऋषि पंचमी का अवसर मुख्य रूप से सप्तर्षि के रूप में प्रसिद्ध सात महान ऋषियों को समर्पित है। साधारणतया यह पर्व गणेश चतुर्थी के एक दिन बाद और हरतालिका तीज के दो दिन बाद पड़ता है। ऋषि पंचमी के दिन पूरे विधि-विधान के साथ ऋषियों के पूजन के बाद कथापाठ और व्रत रखा जाता है। तो चलिए हम आपको इसके महत्व,कथा और पूजाविधि के बारे में बताएंगे।
मानवता और ज्ञान के पालन के लिए मनाते हैं ऋषि पंचमी
ऋषि पंचमी का पवित्र दिन महान भारतीय सप्तऋषियों की स्मृति में मनाते हैं। ऋषि पंचमी का त्योहार मनाने के पीछे धार्मिक मान्यता है कि पंचमी शब्द पांचवें दिन का प्रतिनिधित्व करने के साथ ऋषि का भी प्रतीक माना गया है इसलिए, ऋषि पंचमी का पावन त्योहार श्रद्धा के साथ मनाया जाता है। सप्तर्षि से जुड़े हुए सात ऋषियों के बारे में कहा जाता है कि उन्होंने पृथ्वी से बुराई को खत्म करने के लिए स्वयं के जीवन का त्याग किया और मानव जाति के सुधार के लिए काम किया था। हिंदू मान्यताओं और शास्त्रों में भी इसके बारे में बताया गया है ये संत अपने शिष्यों को अपने ज्ञान और बुद्धि से शिक्षित करते थे जिससे प्रेरित होकर प्रत्येक मनुष्य दान, मानवता और ज्ञान के मार्ग का पालन कर सके।
पहले यह व्रत सभी वर्णों के पुरुषों के लिए बताया गया था लेकिन समय के साथ आए बदलाव के बाद अब यह व्रत अधिकतर महिलाएं ही करती है। इस दिन पवित्र नदियों में स्नान का भी खास महत्व होता है। ऋषि पंचमी की पूजा के लिए सप्तऋषियों की प्रतिमाओं की स्थापना कर उन्हें पंचामृत स्नान देना चाहिए इसके बाद उन पर चंदन का लेप लगाते हुए फूलों एवं सुगंधित पदार्थों और दीप-धूप आदि अर्पण करना चाहिए इसके साथ ही सफेद वस्त्रों, यज्ञोपवीत और नैवेद्य से पूजा और मंत्र का जाप करने से इस दिन विशेष कृपा प्राप्त होती है।
ऋषि पंचमी व्रत की कथा
काफी समय पहले विदर्भ नामक एक ब्राह्मण अपने परिवार के साथ रहते थे, उनके परिवार में एक पत्नी, पुत्र और एक पुत्री थी। ब्राह्मण ने अपनी पुत्री का विवाह एक अच्छे ब्राह्मण कुल में किया लेकिन दुर्भाग्यवश उसकी पुत्री के पति की अकाल मृत्यु हो गई, जिसके बाद उसकी विधवा बेटी अपने घर वापस आकर रहने लगी। एक दिन अचानक से मध्यरात्रि में विधवा के शरीर में कीड़े पड़ने लगे जिसके चलते उसका स्वास्थ्य गिरने लगा। पुत्री को ऐसे हाल में देखकर ब्राह्मण उसे एक ऋषि के पास ले गए। ऋषि ने बताया कि कन्या पूर्व जन्म में ब्राह्मणी थी और इसने एक बार रजस्वला होने पर भी घर के बर्तन छू लिए और काम करने लगी। बस इसी पाप की वजह से इसके शरीर में कीड़े पड़ गए हैं।
चूंकि शास्त्रों में रजस्वला स्त्री का कार्य करना वर्जित होता है लेकिन ब्राह्मण की पुत्री ने इस बात का पालन नहीं किया जिस कारण उसे इस जन्म में दंड भोगना पड़ रहा है। ऋषि कहते हैं कि अगर वह कन्या ऋषि पंचमी का पूजा-व्रत पूरे श्रद्धा भाव के साथ करते हुए क्षमा प्रार्थना करें तो उसे अपने पापों से मुक्ति मिल जाएगी। कन्या ने ऋषि के कहे अनुसार विधिविधान से पूजा और व्रत किया तब उसे अपने पूर्वजन्म के पापों से छुटकारा मिला। इस प्रकार विधवा कन्या के समान ऋषि पंचमी का व्रत करने से समस्त पापों का नाश होता है।
ऋषि पंचमी व्रत की विधि – इस दिन व्रत रखने वाली महिलाओं को सुबह सूरज निकलने से पहले उठकर स्नान कर साफ वस्त्र पहन लेने चाहिए। इसके बाद घर को गोबर से लिपा जाता है। फिर सप्तऋषि और देवी अरुंधती की प्रतिमा बनाई जाती है। इसके बाद उस प्रतिमा और कलश की स्थापना कर सप्तऋषि की कथा सुनी जाती है। इस दिन महिलाएं बोया हुआ अनाज न खाकर पसई धान के चावल खाती हैं।
प्रस्तुति
"पं.खेमेश्वर पुरी गोस्वामी"
धार्मिक प्रवक्ता-ओज कवि
प्रदेश संगठन मंत्री एवं प्रवक्ता
अंतरराष्ट्रीय युवा हिंदू वाहिनी छत्तीसगढ़
८१२००३२८३४-/-७८२८६५७०५७