Wednesday, October 2, 2019

सिन्धु सभ्यता की लिपि को नहीं पढ़ा जाना बड़ी साजिश


*सिन्धु सभ्यता की लिपि को नहीं पढ़ा जाना बड़ी साजिश*

जेनेटिक साइंस *गुणसूत्र विज्ञान* के विविध अनुसंधानों से अब जब यह सिद्ध हो चुका है कि सिन्धु घाटी सभ्यता वास्तव में वैदिक आर्यों की ही एक पुरानी सभ्यता थी और *भारत भूमि ही आर्यों की उद्गम भूमि रही है* तब उसके अवशेषों में उपलब्ध लिखित सामग्रियों की लिपि को अब तक नहीं पढ़ा जाना एक गहरे साजिश का परिणाम प्रतीत हो रहा है।

इजिप्ट, चीनी, फोनेशियाई, आर्मेनिक तथा सुमेरियाई और मेसोपोटामियाई सभ्यताओं की लिपियां जब पढ़ ली गई हैं, तब सिन्धु सभ्यता के अवशेषों को आखिर अब तक क्यों नहीं पढ़ा जा सका है? जबकि, *जेनेटिक साइंस एवं कम्प्यूटर टेक्नोलॉजी से प्राचीन लिपियों का पढ़ा जाना पहले की तुलना में अब ज्यादा आसान हो गया है।*

भारत के इतिहास को सही दिशा में सुव्यवस्थित करने के निमित्त इसका पढ़ा जाना आवश्यक है; पहले इस सभ्यता का विस्तार पंजाब, सिंध, गुजरात एवं राजस्थान तक बताया जाता था, किन्तु *नवीन वैज्ञानिक विश्लेषणों के आधार पर अब इसका विस्तार तमिलनाडु से वैशाली (बिहार) तक समूचा भारत, पाकिस्तान, अफगानिस्तान तथा ईरान तक बताया जा रहा है।*

कालक्रम भी अब 7000 वर्ष ईसापूर्व तक आंका जाने लगा है, इतनी महत्वपूर्ण सभ्यता के लिखित अवशेषों को अब तक नहीं पढ़ा जाना और बिना पढ़े ही उसके बारे में भ्रम पैदा करने वाली अटकलें लगाते रहना, स्वयं की जड़ों पर स्वयं ही कुल्हाड़ी मारने के समान है।

पश्चिम के एक प्रसिद्ध इतिहासकार *अर्नाल्ड जे टायनबी ने ठीक ही कहा है कि विश्व में अगर किसी देश के इतिहास के साथ सर्वाधिक छेड़छाड़ किया गया है, तो वह भारत का इतिहास है;* दरअसल, हुआ यह कि ऐतिहासिक विरासतों-अवशेषों का संरक्षण-विश्लेषण करने वाली हमारी संस्था *भारतीय इतिहास अनुसंधान परिषद* आरम्भ से ही उस अंग्रेजी शासन के कब्जे में रही है, जो ईसाइयत को श्रेष्ठत्तम व प्राचीनत्तम सिद्ध करने की दृष्टि के तहत काम करता रहा।

अपनी इसी नीति के तहत अंग्रेजी औपनिवेशिक इतिहासकारों ने यह कहानी गढ़ रखी है कि आर्य लोग भारत के मूल निवासी नहीं, बल्कि बाहर के आक्रमणकारी थे, उनके आक्रमण से ही सिन्धु घाटी सभ्यता नष्ट हो गई; अंग्रेजी शासन की समाप्ति के बाद से लेकर आज तक *भारतीय इतिहास अनुसंधान परिषद* पर उन्हीं के झण्डाबरदार वामपंथियों का कब्जा रहा है, जो उनकी छद्म योजनाओं को आकार देते रहे।

इसी कारण इस प्राचीन सभ्यता के अवशेषों में उपलब्ध बर्तनों, पत्थरों, पट्टियों आदि पर विद्यमान लिखावटों को आज तक नहीं पढ़ा गया, बहाना यह बनाया जाता रहा कि उन लिखावटों की लिपि को पढ़ना सम्भव नहीं है; जबकि, सच यह है कि किसी भी प्राचीन लिपि के अक्षरों की आवृति का विश्लेषण करने की *‘मार्कोव विधि’* से उसका पढ़ना अब सरल हो गया है।

दरअसल, भारतीय इतिहास अनुसंधान परिषद पर कब्जा जमाये वामपंथी इतिहासकार दूसरे कारणों से इस लिपि की पठनीयता को अपठनीय बताते रहे हैं, सबसे बड़ा कारण यह है कि *इसे पढ़ लिये जाने से उनकी झूठी ऐतिहासिक स्थापनाएं ध्वस्त हो जाएंगी;* मसलन यह कि तब सिन्धु सभ्यता की प्राचीनता मिस्र (इजिप्ट), चीन, रोम, ग्रीस, मेसोपोटामिया व सुमेर की सभ्यता से भी अधिक पुरानी सिद्ध हो जाएगी; उन्हें यह *भय है कि सिन्धु सभ्यता की लिपि को पढ़ लिए जाने से वह वैदिक सभ्यता साबित हो जाएगी;* इससे आर्य-द्रविड़ संघर्ष की उनकी गढ़ी हुई कहानी तात-तार हो जाएगी।

ईसाई विस्तारवादी औपनिवेशिक अंग्रेजों की यह जो आधारहीन स्थापना है कि आर्य लोग अभारतीय बाहरी आक्रमणकारी हैं, उन्होंने भारत के मूल निवासियों अर्थात सिन्धु घाटी के लोगों को दक्षिण में खदेड़ दिया, जहाँ वे आदिवासी के तौर पर जंगलों में छिपकर रहने लगे और वे लोग द्रविड़ हैं, यह गलत साबित हो जाएगा।

यही कारण है कि औपनिवेशिक वामपंथी इतिहासकारों में से कुछ लोग सिन्धु घाटी सभ्यता की लिपि को सुमेरियन भाषा से जोड़कर पढ़ने का प्रयास करते रहे तो कुछ लोग इसे चीनी भाषा के नजदीक ले जाते हैं; उन्हीं इतिहासकारों में से कुछ इसे मुंडा आदिवासियों की भाषा बताते हैं तो कुछ इसे ईस्टर द्वीप के आदिवासियों की भाषा से जोड़कर पढ़ने की वकालत करते हैं।

जबकि सच यह है कि सिन्धु घाटी सभ्यता की लिपि *‘ब्राम्ही’* लिपि से मिलती-जुलती हुई है, जिसे पूर्व ब्राम्ही लिपि कहा जा सकता है; उसमें लगभग 400 प्रकार के अक्षर चिह्न और 39 अक्षर हैं, ठीक वैसे ही जैसे रोमन में 26 और देवनागरी में 52 प्रकार के अक्षर हैं; *ब्राम्ही लिपि भारत की प्राचीनतम लिपियों में से एक है ..*..

जो वैदिक काल से लेकर गुप्त काल तक प्रचलन में रही, इसी लिपि से पाली, प्राकृत व संस्कृत की कई लिपियों का निर्माण हुआ है।

सम्राट अशोक ने गौतम बुद्ध के *‘धम्म’* का प्रचार-प्रसार इसी लिपि में कराया था, उसके सारे शिलालेख इसी लिपि में हैं; सिन्धु घाटी सभ्यता के लेखों की लिपि और ब्राम्ही लिपि में अनेक समानताएं पाई गई हैं ब्राम्ही की तरह वह लिपि भी बाएं से दाएं लिखी पायी गई है; जिसमें स्वर, व्यंजन एवं उनके मात्रा चिह्नों सहित लगभग 400 अक्षर चिह्न हैं।

पुरातात्विक सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार *सिन्धु घाटी सभ्यता के अवशेषों में से लगभग 3000 लेख प्राप्त हुए हैं;* जिन्हें पढ़ने की आधी-अधूरी कोशिश हुई भी है तो अभारतीय लिपियों के आधार पर हुई है, ब्राम्ही लिपि के आधार पर इसे पढ़ने की कोशिश करने वाले इतिहासकारों के अनुसार इसके 400 अक्षर चिह्नों में 39 अक्षरों का व्यवहार सर्वाधिक 80 प्रतिशत बार हुआ है; *ब्राम्ही लिपि के आधार पर इसे पढ़ने से संस्कृत के ऐसे कई शब्द बनते हैं, जो उन अवशेषों के संदर्भों से मेल खाते हैं ..*..

जैसे- श्री, अगस्त्य, मृग, हस्त, वरुण, क्षमा, कामदेव, महादेव, मूषक, अग्नि, गृह, यज्ञ, इंद्र, मित्र, कामधेनु आदि; बावजूद इसके उसे पढ़ने की दिशा को भारत से सुदूर देशों की लिपि अथवा असंस्कृत भाषाओं की लिपि की तरफ मोड़ने की चेष्टा होती रही है।

सिन्धु सभ्यता की लिपि को पढ़ने में एकमात्र कठिनाई यह है कि उसकी लिखावट की शैली में अनेक भिन्नताएं हैं, जिसे सम्यक दृष्टि से सुलझाया जा सकता है; ब्राम्ही लिपि के आधार पर उस प्राचीन भारतीय सभ्यता के लेखों को पढ़ने से यह स्पष्ट हो जाएगा कि उस काल की भाषा वही थी जो वेदों की भाषा है, अर्थात *सिन्धु घाटी सभ्यता के लोग उस वैदिक धर्म व वैदिक संस्कृति से ही सम्बद्ध थे, जिससे आज का सनातन हिन्दू समाज सम्बद्ध है;* साथ ही, यह भी कि आर्य और द्रविड़ कोई अलग-अलग जातियां नहीं थीं, यह सत्य स्थापित हो जाने से आर्य-द्रविड़ विभेद का दरार स्वतः समाप्त हो जाएगा; जिसे ईसाई विस्तारवादी इतिहासकारों ने ईसाइयत के विस्तार और भारत राष्ट्र व हिन्दू समाज में विखण्डन की अपनी कुटिल कूटनीति के तहत कायम किया हुआ है, *जिसकी वजह से दक्षिण भारत में भाषिक-सांस्कृति अलगाव पनप रहा है।*

ऐसे में एक साजिश के तहत *सिन्धु घाटी सभ्यता के लेखों को भारतीय दृष्टि से भारतीय लिपि के आधार पर नहीं पढ़ा जाना एक राष्ट्रीय त्रासदी से कम नहीं है;* इसी कारण भारत के इतिहास को वास्तविक स्वरुप नहीं मिल पा रहा है और इसके प्रति तरह-तरह के भ्रम कायम हैं।
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                        प्रस्तुति
             "पं.खेमेश्वर पुरी गोस्वामी"
            धार्मिक प्रवक्ता-ओज कवि
          प्रदेश संगठन मंत्री एवं प्रवक्ता
   अंतरराष्ट्रीय युवा हिंदू वाहिनी छत्तीसगढ़
      ८१२००३२८३४-/-७८२८६५७०५७

तिलक (चंदन)


*तिलक*

तिलक का अर्थ है भारत में पूजा के बाद माथे पर लगाया जाने वाला निशान; तिलक स्वयं नहीँ लगाने से विनाश सुनिश्चित है, तिलक अन्य व्यक्ति द्वारा ही ग्रहण करना चाहिए।

शास्त्रानुसार यदि द्विज (ब्राह्मण, क्षत्रीय, वैश्य) तिलक नहीं लगाते हैं तो उन्हें *चाण्डाल* कहते हैं, तिलक हमेंशा दोनों भौहों के बीच *आज्ञाचक्र* पर भ्रुकुटी पर किया जाता है *इसे चेतना केंद्र भी कहते हैं।*

पर्वताग्रे नदीतीरे रामक्षेत्रे विशेषतः।
सिन्धुतिरे च वल्मिके तुलसीमूलमाश्रीताः।।
मृदएतास्तु संपाद्या वर्जयेदन्यमृत्तिका।
द्वारवत्युद्भवाद्गोपी चंदनादुर्धपुण्ड्रकम्।।

चंदन हमेशा पर्वत के नोक का, नदी तट की मिट्टी का, पुण्य तीर्थ का, सिंधु नदी के तट का, चिंटी की बाँबी व तुलसी के मूल की मिट्टी का या चंदन वही उत्तम चंदन है।

तिलक हमेशा चंदन या कुमकुम का ही करना चाहिए, कुमकुम हल्दी से बना हो तो उत्तम होता हैं।

*मूल*

स्नाने दाने जपे होमो देवता पितृकर्म च।
तत्सर्वं निष्फलं यान्ति ललाटे तिलकं विना।।

तिलक के बिना ही यदि तीर्थ स्नान, जप कर्म, दान कर्म, यग्य होमादि, पितर हेतु श्राध्धादि कर्म तथा देवों का पुजनार्चन कर्म ये सभी कर्म तिलक न करने से कर्म निष्फल होता है।

पुरुष को चंदन व स्त्री को कुंकुंम भाल में लगाना मंगल कारक होता है।

तिलक स्थान पर धन्नजय प्राण का रहता है, उसको जागृत करने तिलक लगाना ही चाहीए; जो हमें आध्यात्मिक मार्ग की ओर बढ़ाता है।

नित्य तिलक करने वालो को सिरपीड़ा नहीं होती *.*. व ब्राह्मणो में तिलक के बिना लिए शुकुन को भी अशुभ मानते हैै *.*. शिखा, धोती, भस्म, तिलकादि चीजों में भी भारत की गरीमा विद्यमान है *..*!!

*तिलक* हिंदू संस्कृति में एक पहचान चिन्ह का काम करता है, तिलक केवल धार्मिक मान्यता नहीं है बल्कि कई वैज्ञानिक कारण भी हैं इसके पीछे, तिलक केवल एक तरह से नहीं लगाया जाता; हिंदू धर्म में जितने संतों के मत हैं, जितने पंथ है, संप्रदाय हैं उन सबके अपने अलग-अलग तिलक होते हैं।

आइए जानते हैं कितनी तरह के होते हैं तिलक; सनातन धर्म में शैव, शाक्त, वैष्णव और अन्य मतों के अलग-अलग तिलक होते हैं *..*..

*शैव*- शैव परम्परा में ललाट पर चंदन की आड़ी रेखा या त्रिपुंड लगाया जाता है।

*शाक्त*- शाक्त सिंदूर का तिलक लगाते हैं, सिंदूर उग्रता का प्रतीक है; यह साधक की शक्ति या तेज बढ़ाने में सहायक माना जाता है।

*वैष्णव*- वैष्णव परम्परा में चौंसठ प्रकार के तिलक बताए गए हैं *..*..

*इनमें प्रमुख हैं*

*लालश्री तिलक*- इसमें आसपास चंदन की व बीच में कुंकुम या हल्दी की खड़ी रेखा बनी होती है।

*विष्णुस्वामी तिलक*- यह तिलक माथे पर दो चौड़ी खड़ी रेखाओं से बनता है, यह तिलक संकरा होते हुए भोहों के बीच तक आता है।

*रामानंद तिलक*- विष्णुस्वामी तिलक के बीच में कुंकुम से खड़ी रेखा देने से रामानंदी तिलक बनता है।

*श्यामश्री तिलक*- इसे कृष्ण उपासक वैष्णव लगाते हैं, इसमें आसपास गोपीचंदन की तथा बीच में काले रंग की मोटी खड़ी रेखा होती है।

*अन्य तिलक*- गाणपत्य, तांत्रिक, कापालिक आदि के भिन्न तिलक होते हैं, साधु व संन्यासी भस्म का तिलक लगाते हैं।

*चंदन का तिलक*- चंदन का तिलक लगाने से पापों का नाश होता है, व्यक्ति संकटों से बचता है, उस पर लक्ष्मी की कृपा हमेशा बनी रहती है, ज्ञानतंतु संयमित व सक्रिय रहते हैं; चंदन का तिलक ताजगी लाता है और ज्ञान तंतुओं की क्रियाशीलता बढ़ाता है *..*..

*चन्दन के प्रकार* : हरि चंदन, गोपी चंदन, सफेद चंदन, लाल चंदन, गोमती और गोकुल चंदन। 

*कुमकुम का तिलक*- कुमकुम का तिलक तेजस्विता प्रदान करता है।

*मिट्टी का तिलक*- विशुद्ध मिट्टी के तिलक से बुद्धि-वृद्धि और पुण्य फल की प्राप्ति होती है।

*केसर का तिलक*-  केसर का तिलक लगाने से सात्विक गुणों और सदाचार की भावना बढ़ती है, इससे बृहस्पति ग्रह का बल भी बढ़ जाता है और भाग्यवृद्धि होती है।

*हल्दी का तिलक*- हल्दी से युक्त तिलक लगाने से त्वचा शुद्ध होती है।

*दही का तिलक*- दही का तिलक लगाने से चंद्र बल बढ़ता है और मन-मस्तिष्क में शीतलता प्रदान होती है।

*इत्र का तिलक*- इत्र कई प्रकार के होते हैं, अलग अलग इत्र के अलग अलग फायदे होते हैं; इत्र का तिलक लगाने से शुक्र बल बढ़ता हैं और व्यक्ति के मन-मस्तिष्क में शांति और प्रसन्नता रहती है।

*तिलकों का मिश्रण*-
अष्टगन्ध में आठ पदार्थ होते हैं- कुंकुम, अगर, कस्तुरी, चन्द्रभाग, त्रिपुरा, गोरोचन, तमाल, जल आदि *..*..

पंचगंध में गोरोचन, चंदन, केसर, कस्तूरी और देशी कपूर मिलाया जाता है।

गंधत्रय में सिंदूर, हल्दी और कुमकुम मिलाया जाता है।

यक्षकर्दम में अगर, केसर, कपूर, कस्तूरी, चंदन, गोरोचन, हिंगुल, रतांजनी, अम्बर, स्वर्णपत्र, मिर्च और कंकोल सम्मिलित होते हैं।

*गोरोचन*- गोरोचन आज के जमाने में एक दुर्लभ वस्तु हो गई है, गोरोचन गाय के शरीर से प्राप्त होता है; कुछ विद्वान का मत है कि यह गाय के मस्तक में पाया जाता है, किंतु वस्तुतः इसका नाम *गोपित्त* है, यानी कि गाय का पित्त *.*. हल्की लालिमायुक्त पीले रंग का यह एक अति सुगंधित पदार्थ है, जो मोम की तरह जमा हुआ सा होता है *..*..

अनेक औषधियों में इसका प्रयोग होता है; यंत्र लेखन, तंत्र साधना तथा सामान्य पूजा में भी अष्टगंध-चंदन निर्माण में गोरोचन की अहम भूमिका है *.*. गोरोचन का नियमित तिलक लगाने से समस्त ग्रहदोष नष्ट होते हैं।

*आध्यात्मिक साधनाओं के लिए गारोचन बहुत लाभदायी है।*
🕉🐚⚔🚩🌞🇮🇳⚔🌷🙏🏻

                        प्रस्तुति
             "पं.खेमेश्वर पुरी गोस्वामी"
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Tuesday, October 1, 2019

आज का संदेश

*🙏🙏🌴राधे राधे जी🌴🙏🙏*

*✍🏻...इंसान‘ की सोच भी ‘अज़ीब‘ है ‘कामयाबी‘ मिले तो अपनी ‘अक्ल‘ पर खुश होता है...!!!*

*और जब ‘परेशानी‘ आये तो अपने ‘नसीब‘ को दोष देता है...!!!*

💐😊 *मुस्कुराते रहिये*😊💐
              
          🙏 *जय श्री कृष्णा* 🙏

२ अक्टूबर जयंती विशेष २०१९

आज दो महापुरुषों,महाराजितिज्ञों का जन्म दिवस है जिसे हम जयंती के रूप में मनाते हैं,गतरात्रि मैं दोनों पर कविताएं लिखने का प्रयास कर रहा था लेकिन वह अधूरी है, भविष्य में किसी मंच से प्रस्तुत करूंगा लेकिन अपना विचार रख रहा हूं,
सबसे पहले मैं उस महापुरुष को नमन करता हूं, जिन्होंने , "जय जवान जय किसान" का नारा दिया और अन्न दाता और देश के सीमा पर तैनात जान हथेली पर रखकर सेवा देने वालों को इतना बड़ा सम्मान दिया, उन्होंने एक अच्छे राजनेता होने का परिचय और प्रेरणा दिया, उनके जीवन की कई घटनाएं भावविभोर कर देती हैं, निस्वार्थ भाव से देश सेवा करने वाले नेता बने हमारे देश के गौरव और वर्तमान राजनेताओं को जिनके जीवनी से प्रेरणा लेने की आवश्यकता है ऐसे महान नेता भारत रत्न द्वितीय प्रधानमंत्री श्री लाल बहादुर शास्त्री जी को सत सत नमन 💐💐💐
दूसरे महान राजनीतिज्ञ श्री मोहनदास करमचंद गांधी जी को मैं साधुवाद देना चाहूंगा,सौ करोड़ राष्ट्र भक्तों की ओर से सादर आभार व्यक्त करता हूं कि आपने वह कर दिखाया जो कोई और नहीं कर सकता था, (एक प्रसंग:-एक बड़े महल में एक अच्छा और फायदेमंद कुत्ता था, जो उस महल के दिवार में लगी खूंटी से बंधा हुआ था,वह महल से बाहर जाने वाले बच्चे, महिला पुरुष, लगभग सभी को काटने दौड़ता था,था तो पालतू,मगर था फालतू. लेकिन वह काट नहीं पाता था और नाखूनों से नोचता था, राजा भी परेशान था और मंत्री गण भी और कोई शत्रु पक्ष का जो कि उन कुत्तों का सरदार बनने का मंसूबा पाले हुआ था,वह चाहता था कि कुत्ता उनके साथ रहे,अब राजा ने वह कुत्ता पाला था ओ भी बड़े प्यार से, उसे मार तो सकता न था,और वह राज्य का अंग भी था लेकिन प्रजा उस कुत्ते से परेशान थे, सभी चाहते थे कि वह कुत्ता हमारे राज्य में न रहें क्योंकि अगर वह काट भी लेगा तो हम उसे मार नहीं सकते, सिर्फ माफ कर सकते हैं ज्यादा से एक दो दिन बिना खाने के रखेंगे लेकिन फिर से वही प्यार देने होंगे, मंत्रणा हुआ तो किसी महात्मा से सलाह लेने का निष्कर्ष निकाला गया, इधर ओ कुत्तों का सरदार,मौका देखकर अपने एक पहचान के जो कि बड़े ही अहिंसा वादी संत थे उनके पास जाकर अपने मन की बात कही और संत ने फिर जब प्रजा व राजा की इच्छा जानी तब राजा से कहा कि आप कुत्ते को मारें भी न और नजरों से दूर भी नहीं होगा आपकी प्रजा भी सुरक्षित रहेगी और आपका प्रेम भी बना रहेगा,तब राजा ने उस दिवार के खूंटी में से उस कुत्ते को अलग किया और उस सरदार को दे दिया, अब कुछ दिनों पश्चात एक व्यक्ति सामने आया जो कि उन्हीं प्रजा में से ही एक थे जो कि अपने राष्ट्र से बहुत प्रेम करता था और दयावान भी थे ,ओ उस कुत्ते के साथियों को सर्दी में कंबल, बरसात में कोई छाया और खाने के लिए रोटियों का इंतजाम करते थे जो कि उस सरदार के यहां से राजा के राज में आते थे, और जो कुत्ता महल में से अलग हुआ वह सभी कुत्तों के लिए फिर राज्य में घूसकर बच्चों से खाना छिनकर ले जाने लगे, तब उस संत को राजसभा में बुलाया गया व सलाह लिया गया तब उस संत ने उन कुत्तों को कुछ जमीन के टुकड़े व खाने पीने व रहने के लिए राज्य से लगा हुआ एक छोटा सा उनके लिए जो अच्छा रहेगा भूखंड देने का राजा से निवेदन किया,जो कि पहले ही उन कुत्तों के सरदार से डील की जा चुकी थी, अब प्रजा भी सुरक्षित थे,और ओ कुत्तों के सरदार भी मजे में थे, लेकिन राजा का व राजपरिवार तथा उनसे जुड़े लोगों का प्रेम बराबर बना हुआ था क्योंकि अगर किसी ने उनके राजकाज में बाधा उत्पन्न करने का प्रयास किया तो ओ कुत्तों को उन पर छोड़ सके और उनका राजकाज हमेशा बना रहे,ओ राजसिंहासन के चक्कर में भले ही कुत्ते को अलग किया था लेकिन था प्रजा के खून चूसने वाले और प्रजा कहीं खिलाफ न हो जाएं इसलिए ओ प्रजा के हित में भी काम करते थे, पर अचानक कुछ समय पश्चात कुछ कुत्ते देश में से और भूखंड मांगने का प्रयास करने करने लगे और शायद उस संत से संपर्क करते इतने व राष्ट्रवादी व्यक्ति ने मौका देखकर एक प्रजामिलन की सभा में उस संत की हत्या कर दिया, लेकिन वह मूर्ख था क्योंकि संत ने कोई सलाह दिया था ही नहीं हो सकता था कि वह कुत्तों के सरदार को इसपर मना कर देते या राजा के अंदर से उनके खिलाफ प्रेम भावना जो उनमें थी उसे समाप्त कर देते,राजा ने उस हत्यारे को फांसी दे दी..और उस संत को राष्ट्र संत की उपाधि दी गई हालांकि उन्हें सभा में प्रजा के बीच घोषित किया गया तब कोई लेख या नियम नहीं बनाया गया..! समय बितता गया, राजपरिवार पीढ़ी दर पीढ़ी उस संत की पूजा करते रहे और उन्होंने कोई विशेष निर्णय तो नहीं लिया लेकिन उन कुत्तों के वंशजों के प्रति भी प्यार बना रहा फिर कुछ राष्ट्र वादी विचार के मंत्री व सेनापति उनके राज में शामिल हुए जिनके विचार उनके तरह थे जब वह राजा और उनका राज्य किसी का गुलाम थे तब जिन्होंने आजादी दिलाई थी, फिर उस कुत्तों के भूखंड से कुछ कुत्ते देश में घूसकर प्रजा को काटने लगे तब उन्होंने उन कुत्तों को बंदी बनाया और लेकिन राजपरिवार के प्रेम के कारण घर पहूंचाकर छोड़ आना पड़ता रहा, फिर समय बितता गया, कुछ राष्ट्र वादियों का संगठन विस्तार हुआ और ओ उस संत के हत्यारे को अपना एक अच्छा हितकर समझकर चवते थे राजपाट उनके हाथ आया और पूर्ण व्यवस्था बदल गया,और ए राष्ट्रवादी आज भी उस संत को पूर्ण रूप से नहीं मानते थे, लेकिन है तो राज के महान संत तो नमन भी करते हैं, अब कुत्तों को मारा जाने लगा,और राजपरिवार के सिंहासन मे न होने के बावजूद भी विरोध करने पर भी नहीं माना गया तो उनके राष्ट्र वादी विचार को भी श्वेत आतंक का नाम दे दिया गया..और फिर राज इसी तरह चलता रहा कुछ कुत्ते हमला करते हैं मारे जाते हैं लेकिन उस राजपरिवार व उनके चाहने वाले आज भी उन्हें सहयोग करते हैं और इन गद्दारों को कुछ बंधनों के कारण माफ करना पड़ता है, उस राज्य में कवि भी हुआ और उन्होंने फिर खुद राष्ट्र वादी विचार के होते हुए भी उस संत को महान कहा और विचार व्यक्त किया कि कुत्ते अपने नहीं है अब इसलिए मार तो सकते हो नहीं तो हर गलती माफ करनी पड़ती साहब जी...)
बस इसी तहर गांधी जी ने भी पाकिस्तान के आतंक रूपी कुत्तों को हमसे अलग करने में बहुत बड़ा योगदान दिया नहीं तो जिन्हें हम आज आतंकवादी घोषित कर एनकाउंटर कर देते हैं उन्हें गद्दार घोषित कर कुछ दिन कारागार में डाल कर मुफ्त की रोटी खिलाकर माफ करते रहते हैं, अगर गांधी जी नहीं होते तो ए अब तक लगभग आधे भारत को आतंकवादी बना चुके होते,और किसे के मन में हमारे सीमा या भीतर के सैनिकों का भय नहीं होता,और आज हम जिस "जैस-ए-मोहम्मद" को आतंकी संगठन कहते हैं, कोई सामाजिक संगठन के रूप जानते होते, मैं इस नेक कार्य के लिए आजीवन गांधी जी आपका आभारी रहूंगा क्योंकि हो न हो उनमें से कोई मेरे आस-पास होता तो उनके संगत में आज मेरे अंदर भी एक राष्ट्र द्रोह का विचार पनप रहा होता गांधी जी ने उससे मुक्त कर मुझे राष्ट्रहित व राष्ट्रप्रेम का मौका दिया है...आपकी जयंती पर सादर नमन 💐💐💐💐
और आपका हत्यारा #नाथूराम_गोडसे महान नहीं थे
वो एक मामूली व्यक्ति थे। उनके पास महान बनने का ऑप्शन नहीं था। उनपर महान बनने की सनक भी सवार नहीं थी
नाथूराम गोडसे जी में अगर कोई सनक थी तो राष्ट्रवाद की सनक थी। पागलों की तरह पाकिस्तान से आए एक-एक शरणार्थीयों के लिए दो रोटी और कम्बल जुटाते फिरते थे। उन्हें शायद कोई भ्रम हुआ था कि आप देश के खिलाफ निर्णय ले सकते हैं,और उन्होंने आपकी हत्या कर दी.. उनके विचार पर ओ भले सही थे,उस सभय शायद उनके आसपास का माहौल और समझ ही वैसी रही होगी...तब अपने स्थान पर ओ भी सही रहे होंगे... लेकिन आपने जो भारत के लिए किया वह अतुलनीय है....आप महान थे सत्य और अहिंसा के पुजारी के रूप में एक महान प्रणेता रहे हैं, लेकिन इस प्रकार आप राष्ट्र के सच्चे सपूत थे, न कि राष्ट्र के पिता 💐🚩🙏🏵🇮🇳🏵🏵🙏🚩💐
🇮🇳🇮🇳🇮🇳 जय हिन्द वन्दे मातरम्  🇮🇳🇮🇳🇮🇳
आप दोनों महापुरुषों के जयंती पर सादर नमन 💐💐💐💐💐
{ प्रसंग को समझने के लिए कुछ हिंट इस प्रकार है:- राज्य=भारत, महल= वर्तमान भारत का सीमा, दिवार टर खूंटी से बंधा हुआ कुत्ता व लगा हुआ भूखंड = पाकिस्तान,संत को महात्मा गांधी जी के स्थान पर और उनके हत्यारे को गोड़से का स्थान देकर भी समझा जा सकता है बाकी को आप स्वयं ही समझें}

                      पं.खेमेश्वरपुरी गोस्वामी
                     ओज-व्यंग्य कवि,लेखक
                 प्रदेश संगठन मंत्री एवं प्रवक्ता
          अंतर.युवा हिंदू वाहिनी एवं गौ रक्षा दल
                   डिंडोरी,मुंगेली - छत्तीसगढ़
              ७८२८६५७०५७-८१२००३२८३४

न्यू २

प्रति मां. मुख्यमंत्री श्री भूपेश बघेल जी रायपुर , छत्तीसगढ़ शासन विषय : आर्थिक सहायता,आवास, तथा आवासीय पट्टा दिलाने बाबत् आदरणीय महोदय,   ...