Friday, October 4, 2019

आज का सुविचार

*अच्छा वक़्त सिर्फ उसीका   होता है,​.*
*..​जो कभी किसी का बुरा नहीं सोचते !!​*
*​सुख दुख तो अतिथि है,​.*
.   *​बारी बारी से आयेंगे चले जायेंगे..​*
*​यदि वो नहीं आयेंगे तो हम​*
       *​अनुभव कहां से लायेंगे।​*
*जिन्दगी को खुश रहकर जिओ*
*क्योकि रोज शाम सिर्फ सूरज ही नही ढलता आपकी अनमोल जिन्दगी भी ढलती है*
🌺💐🙏🏻🙏🏼🌹🌺
        *महासप्तमी की हार्दिक शुभकामनाए*
*🙏🏻🚩🌼शुभ प्रभात🌼🚩🙏🏻*

आज का संदेश

.          """" *लक्ष्मी*""""
                   *अगर*
         *मेहनत से मिलती, तो*
.               *मजदूरों*
           *के पास क्यों नही..?*
           *बुद्धि से मिलती तो,*
       *चालाक और चतुरों*
           *के पास क्यों नही..?*
          *ताकत से मिलती तो,*
               *पहलवानों*
         *के पास क्यों नही...*
*लक्ष्मी सिर्फ "पुण्य"  से मिलती है और पुण्य केवल "धर्म" "कर्म" "निःस्वार्थ सेवा"से ही मिलता है.*

शल्य चिकित्सा के पितामह आचार्य सुश्रुत

शल्य चिकित्सा के पितामह : *आचार्य सुश्रुत*

शल्य चिकित्सा (सर्जरी) के पितामह और सुश्रुतसंहिता के प्रणेता आचार्य सुश्रुत का जन्म छठी शताब्दी ईसा पूर्व काशी में हुआ था, सुश्रुत का जन्म विश्वामित्र के वंश में हुआ था, इन्होंने धन्वन्तरि से शिक्षा प्राप्त की थी *..*..

सुश्रुतसंहिता को भारतीय चिकित्सा पद्धति में विशेष स्थान प्राप्त है, इसमें शल्य चिकित्सा के विभिन्न पहलुओं को विस्तार से समझाया गया है; शल्य क्रिया के लिए सुश्रुत 125 तरह के उपकरणों का प्रयोग करते थे, ये उपकरण शल्य क्रिया की जटिलता को देखते हुए खोजे गए थे; इन उपकरणों में विशेष प्रकार के चाकू, सुईयां, चिमटियां आदि हैं *.*. सुश्रुत ने 300 प्रकार की ऑपरेशन प्रक्रियाओं की खोज की *..*..

आठवीं शताब्दी में सुश्रुतसंहिता का अरबी अनुवाद *किताब-इ-सुश्रुत* के रूप में हुआ, सुश्रुत ने कॉस्मेटिक सर्जरी में विशेष निपुणता हासिल कर ली थी *..*..

एक बार आधी रात के समय सुश्रुत को दरवाजे पर दस्तक सुनाई दी, उन्होंने दीपक हाथ में लिया और दरवाजा खोला; दरवाजा खोलते ही उनकी नजर एक व्यक्ति पर पड़ी, उस व्यक्ति की आंखों से अश्रु-धारा बह रही थी और नाक कटी हुई थी *.*. उसकी नाक से तीव्र रक्त-स्राव हो रहा था; व्यक्ति ने आचार्य सुश्रुत से सहायता के लिए विनती की, सुश्रुत ने उसे अन्दर आने के लिए कहा, उन्होंने उसे शांत रहने को कहा और दिलासा दिया कि सब ठीक हो जायेगा; वे अजनबी व्यक्ति को एक साफ और स्वच्छ कमरे में ले गए *..*..

कमरे की दीवार पर शल्य क्रिया के लिए आवश्यक उपकरण टंगे थे उन्होंने अजनबी के चेहरे को औषधीय रस से धोया और उसे एक आसन पर बैठाया, उसको एक गिलास में सोमरस भरकर सेवन करने को कहा और स्वयं शल्य क्रिया की तैयारी में लग गए, उन्होंने एक पत्ते द्वारा जख्मी व्यक्ति की नाक का नाप लिया और दीवार से एक चाकू व चिमटी उतारी, चाकू और चिमटी की मदद से व्यक्ति के गाल से एक मांस का टुकड़ा काटकर उसे उसकी नाक पर प्रत्यारोपित कर दिया; इस क्रिया में व्यक्ति को हुए दर्द का सोमरस ने महसूस नहीं होने दिया *.*. इसके बाद उन्होंने नाक पर टांके लगाकर औषधियों का लेप कर दिया *..*..

व्यक्ति को नियमित रूप से औषाधियां लेने का निर्देश देकर सुश्रुत ने उसे घर जाने के लिए कहा *..*..

सुश्रुत नेत्र शल्य चिकित्सा भी करते थे, सुश्रुतसंहिता में मोतियाबिंद के ऑपरेशन करने की विधि को विस्तार से बताया है, उन्हें शल्य क्रिया द्वारा प्रसव कराने का भी ज्ञान था, सुश्रुत को टूटी हुई हड्डी का पता लगाने और उनको जोड़ने में विशेषज्ञता प्राप्त थी; शल्य क्रिया के दौरान होने वाले दर्द को कम करने के लिए वे मद्यपान या विशेष औषधियां देते थे, सुश्रुत श्रेष्ठ शल्य चिकित्सक होने के साथ-साथ श्रेष्ठ शिक्षक भी थे *..*..

उन्होंने अपने शिष्यों को शल्य चिकित्सा के सिद्धांत बताये और शल्य क्रिया का अभ्यास कराया; प्रारंभिक अवस्था में शल्य क्रिया के अभ्यास के लिए फलों, सब्जियों और मोम के पुतलों का उपयोग करते थे, मानव शरीर की अंदरूनी रचना को समझाने के लिए सुश्रुत शव के ऊपर शल्य क्रिया करके अपने शिष्यों को समझाते थे; सुश्रुत ने शल्य चिकित्सा में अद्भुत कौशल अर्जित किया तथा इसका ज्ञान अन्य लोगों को कराया, उन्होंने शल्य चिकित्सा के साथ-साथ आयुर्वेद के अन्य पक्षों जैसे शरीर संरचना, काया-चिकित्सा, बाल रोग, स्त्री रोग, मनोरोग आदि की जानकारी भी दी, कई लोग प्लास्टिक सर्जरी को अपेक्षाकृत एक नई विधा के रूप में मानते हैं, *प्लास्टिक सर्जरी की उत्पत्ति की जड़ें भारत की सिंधु नदी सभ्यता से 4000 से अधिक साल से जुड़ी हैं ..*..

इस सभ्यता से जुड़े श्लोकों को 3000 और 1000 ई.पूर्व के बीच संस्कृत भाषा में वेदों के रूप में संकलित किया गया है, जो हिन्दू धर्म की सबसे पुरानी पवित्र पुस्तकों में से हैं; इस युग को भारतीय इतिहास में वैदिक काल के रूप में जाना जाता है, जिस अवधि के दौरान चारों वेदों अर्थात् ऋग्वेद, सामवेद, यजुर्वेद और अथर्ववेद को संकलित किया गया *.*. चारों वेद श्लोक, छंद, मंत्र के रूप में संस्कृत भाषा में संकलित किए गए हैं और सुश्रुत संहिता को अथर्ववेद का एक हिस्सा माना जाता है *..*..

सुश्रुत संहिता, जो भारतीय चिकित्सा में सर्जरी की प्राचीन परंपरा का वर्णन करता है, उसे भारतीय चिकित्सा साहित्य के सबसे शानदार रत्नों में से एक के रूप में माना जाता है, इस ग्रंथ में महान प्राचीन सर्जन सुश्रुत की शिक्षाओं और अभ्यास का विस्तृत विवरण है, जो आज भी महत्वपूर्ण व प्रासंगिक शल्य चिकित्सा ज्ञान है *.*. प्लास्टिक सर्जरी का मतलब है- *शरीर के किसी हिस्से की रचना ठीक करना ..*..

प्लास्टिक सर्जरी में प्लास्टिक का उपयोग नहीं होता है, सर्जरी के पहले जुड़ा प्लास्टिक ग्रीक शब्द प्लास्टिको से आया है; *ग्रीक में प्लास्टिको का अर्थ होता है बनाना, रोपना या तैयार करना .*. प्लास्टिक सर्जरी में सर्जन शरीर के किसी हिस्से के उत्तकों को लेकर दूसरे हिस्से में जोड़ता है, भारत में सुश्रुत को पहला सर्जन माना जाता है; आज से करीब 2500 साल पहले युद्ध या प्राकृतिक विपदाओं में जिनकी नाक खराब हो जाती थी, आचार्य सुश्रुत उन्हें ठीक करने का काम करते थे *..*.!!
🕉🐚⚔🚩🌞🇮🇳⚔🌷🙏🏻

                         प्रस्तुति
             "पं.खेमेश्वर पुरी गोस्वामी"
            धार्मिक प्रवक्ता-ओज कवि
          प्रदेश संगठन मंत्री एवं प्रवक्ता
   अंतरराष्ट्रीय युवा हिंदू वाहिनी छत्तीसगढ़
      ८१२००३२८३४-/-७८२८६५७०५७

जन्म दिवस :- रामचन्द्र शुक्ल जी

जन्म दिवस : रामचन्द्र शुक्ल (1884)

जन्म स्थान – बस्ती जिला (अगोना)

साहित्यकार आचार्य रामचंद्र शुक्ल जी का जन्म सन् 1884 ई० में अगोना नामक गाँव में हुआ था, इनके पिता चन्द्रबली शुक्ल मिर्जापुर में कानूनगो थे, इन्होने अपनी प्रारम्भिक शिक्षा-दीक्षा अपने पिता के पास, मिर्ज़ापुर जिले की राठ तहसील में हुई और इन्होने मिशन स्कूल में दसवी की परीक्षा उत्तीर्ण की; गणित में अत्यधिक कमजोर होने के कारण ये आगे पढ़ नहीं सके ये अपनी इंटरमीडिएट की शिक्षा इलाहाबाद से की किन्तु परीक्षा से पूर्व ही इनका विद्यालय छुट गया, इसके पश्चात् इन्होने मिर्ज़ापुर के न्यायालय में नौकरी प्रारंभ कर दी यह नौकरी इनके अनकूल नहीं थी।

इन्होने कुछ दिन तक अध्यापन का कार्य सम्हाला, अध्यापन का कार्य करते हुए इन्होने अनेक प्रकार की कहानी, निबंध, कविता आदि नाटक की रचना की।

इनकी विद्वता से प्रभावित होकर इन्हे *हिंदी शब्द सागर* के सम्पादन कार्य में सहयोग के लिए श्याम सुंदर दास जी द्वारा काशी नगरी प्रचारिणी सभा में ससम्मान बुलाया गया, इन्होने 19 वर्ष तक *काशी नगरी प्रचारिणी पत्रिका* का संपादन भी किया।

स्वाभिमानी और गंभीर प्रकृति का हिंदी का यह दिग्गज साहित्यकार सन् 1941 ई० को स्वर्गवासी हो गये।

साहित्यिक परिचय –

शुक्ल जी को हिन्दी के एक प्रसिद्ध निबंधकार के रूप में जाने जाते हैं हिन्दी साहित्य के क्षेत्र में इन्होने बहुत बड़ा योगदान दिया है, शुक्ल जी ने अत्यंत खोज पूर्ण *हिन्दी साहित्य का इतिहास* लिखा, जिस पर इन्हें हिन्दुस्तानी अकादमी से 500 रुपये का पारितोषिक सम्मान मिला *..*..

इसके पश्चात् शुक्ल जी ने *काशी हिन्दू विश्वविद्यालय* में प्राध्यापक के पद पर नियुक्ति ली और कुछ ही समय के बाद वहीं पर हिन्दी विभाग के अध्यक्ष के पद पर सुशोभित हुए *.*. अपने निबंधो में आपने करुणा, क्रोध, रहस्यवाद आदि का बहुत ही अनूठा समावेश किया है *..*..

रचनायें –

शुक्ल जी एक प्रसिद्ध निबंधकार, निष्पक्ष आलोचक, श्रेष्ठ इतिहासकार और सफल संपादक थे, अपने अध्यापन काल के दौरान इन्होंने कई प्रकार के ग्रन्थों की रचना की यह एक युग प्रवर्तक एवं प्रतिभा संपन्न रचनाकार थे, शुक्ल जी अपने समय के सबसे प्रसिद्ध रचनाकार माने जाते है इनकी रचना शैली में सबसे प्रमुख *आलोचनात्मक* शैली है।

निबन्ध –

*चिंतामणि* ; *विचारवीथी*

सम्पादन –

*जायसी ग्रन्थावली*, *तुलसी ग्रन्थावली*, *भ्रमरगीत सार*, *हिन्दी शब्द-सागर* और *काशी नागरी प्रचारिणी पत्रिका*

हिंदी साहित्य पर आपके योगदान का देशवासी सदैव ऋणी रहेगा *..*।।
🕉🐚⚔🚩🌞🇮🇳⚔🌷🙏🏻

                         प्रस्तुति
             "पं.खेमेश्वर पुरी गोस्वामी"
            धार्मिक प्रवक्ता-ओज कवि
          प्रदेश संगठन मंत्री एवं प्रवक्ता
   अंतरराष्ट्रीय युवा हिंदू वाहिनी छत्तीसगढ़
      ८१२००३२८३४-/-७८२८६५७०५७

Thursday, October 3, 2019

सोमनाथ मंदिर का बाणस्तंभ

*सोमनाथ मन्दिर का 'बाणस्तम्भ'*

इतिहास बड़ा चमत्कारी विषय है, इसको खोजते खोजते हमारा सामना ऐसे स्थिति से होता है कि हम आश्चर्य में पड़ जाते हैं, पहले हम स्वयं से पूछते हैं, यह कैसे संभव हैै..? डेढ़ हजार वर्ष पहले इतना उन्नत और अत्याधुनिक ज्ञान हम भारतीयों के पास था, इस पर विश्वास ही नहीं होता *..*!!

गुजरात के सोमनाथ मंदिर में आकर कुछ ऐसी ही स्थिति होती हैं, वैसे भी सोमनाथ मंदिर का इतिहास बड़ा ही विलक्षण और गौरवशाली रहा हैं, *१२* ज्योतिर्लिंगों में से पहला ज्योतिर्लिंग है सोमनाथ..! इस मंदिर के प्रांगण में एक स्तंभ (खंबा) है, यह *बाणस्तंभ* नाम से जाना जाता हैै, यह स्तंभ कब से वहां पर है बता पाना कठिन हैं; लगभग छठी शताब्दी से इस बाणस्तंभ का इतिहास में नाम आता है, लेकिन इसका अर्थ यह नहीं कि बाणस्तंभ का निर्माण छठे शतक में हुआ है, उस के सैकड़ों वर्ष पहले इसका निर्माण हुआ होगा यह एक दिशादर्शक स्तंभ है जिस पर समुद्र की ओर इंगित करता एक बाण है, इस *बाणस्तंभ* पर लिखा है–

*आसमुद्रांत दक्षिण ध्रुव पर्यंत*

*अबाधित ज्योतिरमार्ग ..*.

इसका अर्थ यह हुआ *इस बिंदु से दक्षिण ध्रुव तक सीधी रेखा में एक भी अवरोध या बाधा नहीं हैं* अर्थात *इस समूची दूरी में जमीन का एक भी टुकड़ा नहीं हैं ..*!!

संस्कृत में लिखे हुए इस पंक्ति के अर्थ में अनेक गूढ़ अर्थ समाहित हैं, इस पंक्ति का सरल अर्थ यह है कि *सोमनाथ मंदिर के उस बिंदु से लेकर दक्षिण ध्रुव तक (अर्थात 'अंटार्टिका' तक) एक सीधी रेखा खिंची जाए तो बीच में एक भी भूखंड नहीं आता हैैं, क्या यह सच है..? आज के इस तंत्रविज्ञान के युग में यह ढूँढना संभव तो है लेकिन उतना आसान नहीं ..*!!

गूगल मैप में ढूंढने के बाद भूखंड नहीं दिखता हैं, लेकिन वह बड़ा भूखंड, छोटे छोटे भूखंडों को देखने के लिए मैप को *एनलार्ज* (ज़ूम) करते हुए आगे जाना पड़ता है, वैसे तो यह बड़ा ही *बोरिंग* सा काम हैं, लेकिन धीरज रख कर धीरे-धीरे देखते गए तो रास्ते में एक भी भूखंड (अर्थात 10 किलोमीटर X 10 किलोमीटर से बड़ा भूखंड उससे छोटा पकड़ में) नहीं आता है, अर्थात हम मान कर चले कि उस *संस्कृत श्लोक में सत्यता है*, किन्तु फिर भी मूल प्रश्न वैसा ही रहता हैं अगर मान कर भी चलते हैं कि सन् ६०० में इस बाणस्तंभ का निर्माण हुआ था, तो भी उस जमाने में पृथ्वी का दक्षिणी ध्रुव हैै यह ज्ञान हमारे पुरखों के पास कहां से आया..? अच्छा, दक्षिण ध्रुव ज्ञात था यह मान भी लिया तो भी सोमनाथ मंदिर से दक्षिण ध्रुव तक सीधी रेखा में एक भी भूखंड नहीं आता हैै यह *मैपिंग* किसने किया..? कैसे किया..? *सब कुछ अद्भुत ..*!!

इसका अर्थ यह है कि *बाणस्तंभ* के निर्माण काल में भारतीयों को पृथ्वी गोल है इसका ज्ञान था इतना ही नहीं, पृथ्वी का दक्षिण ध्रुव है (अर्थात उत्तर ध्रुव भी है) यह भी ज्ञान था, यह कैसे संभव हुआ..? इसके लिए पृथ्वी का *एरिअल व्यू* लेने का कोई साधन उपलब्ध था..? अथवा पृथ्वी का विकसित नक्शा बना था..?

नक़्शे बनाने का एक शास्त्र होता है, अंग्रेजी में इसे कार्टोग्राफी (यह मूलतः फ्रेंच शब्द है) कहते हैं, यह प्राचीन शास्त्र है, ईसा से छह से आठ हजार वर्ष पूर्व की गुफाओं में आकाश के ग्रह तारों के नक़्शे मिले थे; परन्तु पृथ्वी का पहला नक्शा किसने बनाया इस पर एकमत नहीं हैं, हमारे भारतीय ज्ञान का कोई सबूत न मिलने के कारण यह सम्मान *एनेक्झिमेंडर* इस ग्रीक वैज्ञानिक को दिया जाता है, इनका कालखंड ईसा पूर्व ६११ से ५४६ वर्ष था, किन्तु यह नक्शा अत्यन्त प्राथमिक अवस्था में था, उस कालखंड में जहां जहां मनुष्यों की बसाहट का ज्ञान था, बस वही हिस्सा नक़्शे में दिखाया गया हैै इस लिए उस नक़्शे में उत्तर और दक्षिण ध्रुव दिखने का कोई कारण ही नहीं था *..*..

आज की दुनिया के वास्तविक रूप के करीब जाने वाला नक्शा *हेनरिक्स मार्टेलस* ने साधारणतः सन् १४९० के आसपास तैयार किया था, ऐसा माना जाता है कि कोलंबस ने इसी नक़्शे के आधार पर अपना समुद्री सफर तय किया था, *पृथ्वी गोल है* इस प्रकार का विचार यूरोप के कुछ वैज्ञानिकों ने व्यक्त किया था, *एनेक्सिमेंडर* ईसा पूर्व ६०० वर्ष पृथ्वी को सिलेंडर के रूप में माना था, *एरिस्टोटल* (ईसा पूर्व ३८४ – ईसा पूर्व ३२२) ने भी पृथ्वी को गोल माना था, लेकिन भारत में यह ज्ञान बहुत प्राचीन समय से था, जिसके प्रमाण भी मिलते हैं; इसी ज्ञान के आधार पर आगे चलकर *आर्यभट्ट ने सन् ५०० के आस पास इस गोल पृथ्वी का व्यास ४,९६७ योजन है* (अर्थात नए मापदंडों के अनुसार ३९,९६८ किलोमीटर है) यह भी दृढ़तापूर्वक बताया, आज की अत्याधुनिक तकनीकी सहायता से पृथ्वी का व्यास ४०,०७५ किलोमीटर माना गया है, इसका अर्थ यह हुआ की *आर्यभट्ट के आकलन में मात्र ०.२६% का अंतर आ रहा है*, जो नाममात्र है *.*. लगभग डेढ़ हजार वर्ष पहले आर्यभट्ट के पास यह ज्ञान कहां से आया..?

सन् २००८ में जर्मनी के विख्यात इतिहासविद जोसेफ श्वार्ट्सबर्ग ने यह साबित कर दिया कि ईसा पूर्व दो-ढाई हजार वर्ष, भारत में नकाशा शास्त्र अत्यन्त विकसित था, नगर रचना के नक्शे उस समय उपलब्ध तो थे ही, परन्तु नौकायन के लिए आवश्यक नक्शे भी उपलब्ध थे *..*..

भारत में नौकायन शास्त्र प्राचीन काल से विकसित था, सम्पूर्ण दक्षिण एशिया में जिस प्रकार से हिन्दू संस्कृति के चिह्न पग पग पर दिखते हैं, उससे यह ज्ञात होता है कि भारत के जहाज पूर्व दिशा में जावा, सुमात्रा, यवद्वीप को पार कर के जापान तक प्रवास कर के आते थे, सन् १९५५ में गुजरात के *लोथल* में ढाई हजार वर्ष पूर्व के अवशेष मिले हैं इसमें भारत के प्रगत नौकायन के अनेक प्रमाण मिलते हैं *..*..

सोमनाथ मंदिर के निर्माण काल में दक्षिण ध्रुव तक दिशा दर्शन उस समय के भारतीयों को था यह निश्चित है, लेकिन सबसे महत्वपूर्ण प्रश्न सामने आता है कि *दक्षिण ध्रुव तक सीधी रेखा में समुद्र में कोई अवरोध नहीं हैं*, ऐसा बाद में खोज निकाला, या दक्षिण ध्रुव से भारत के पश्चिम तट पर, बिना अवरोध के सीधी रेखा जहां मिलती है वहां पहला ज्योतिर्लिंग स्थापित किया..?

उस बाण स्तंभ पर लिखी गयी उन पंक्तियों में, *(आसमुद्रांत दक्षिण ध्रुव पर्यंत ; अबाधित ज्योतिरमार्ग ..)*
जिसका उल्लेख किया गया है, वह *ज्योतिर्'मार्ग* क्या है..?

*यह आज भी प्रश्न ही है ..*!!

                          प्रस्तुति
             "पं.खेमेश्वर पुरी गोस्वामी"
            धार्मिक प्रवक्ता-ओज कवि
          प्रदेश संगठन मंत्री एवं प्रवक्ता
   अंतरराष्ट्रीय युवा हिंदू वाहिनी छत्तीसगढ़
      ८१२००३२८३४-/-७८२८६५७०५७

आज का संदेश

*जमीर कांपता जरुर है चाहे आप कुछ भी कहिये,*
*कभी गुनाह से पहले तो कभी गुनाह के बाद,*
*वज़न तो सिर्फ हमारी इच्छाओं का है*
*बाकी ज़िन्दगी तो बिलकुल हल्की फुलकी ही है...!!!*
😘😘😘
*सुप्रभात*
।।। *जय सियाराम* ।।।

आज का श्यामविचार

🙏 *राधे राधे*….

सुना है हमने — 🌹 *हे साँवरे ! 🌹तुम सब की परीक्षा लेते हो, हम तो आपके बिना कभी परीक्षा मे पास भी नही हो सकते है, क्योंकि मेरी जीत भी तुम से है, मेरी हार भी तुम से है, और 🌹साँवरे*🌹 *अब परीक्षा मे पास करो या फेल, क्योंकि मेरी जिन्दगी की आखिरी साँस भी तुम से है*

मेरी जिंदगी — *मेरा कान्हा* ….✍
✒… *राधे राधे* ❣ ……✍

न्यू २

प्रति मां. मुख्यमंत्री श्री भूपेश बघेल जी रायपुर , छत्तीसगढ़ शासन विषय : आर्थिक सहायता,आवास, तथा आवासीय पट्टा दिलाने बाबत् आदरणीय महोदय,   ...