Sunday, November 17, 2019

आज का सुविचार

*"अगर तुम उड़ नहीं सकते तो, दौड़ो ! अगर तुम दौड़ नहीं सकते तो, चलो !*
*अगर तुम चल नहीं सकते तो, रेंगो !*
*पर आगे बढ़ते रहो"*
अपनी सोच ओर दिशा बदलो
सफलता आपका स्वागत करेंगी... रास्ते पर कंकड़ ही कंकड़ हो तो भी एक अच्छा जूता पहनकर उस पर चला जा सकता है। लेकिन यदि एक अच्छे जूते के अंदर एक भी कंकड़ हो तो एक अच्छी सड़क पर भी कुछ कदम भी चलना मुश्किल है। 
यानी - *"बाहर की चुनौतियों से नहीं*
*हम अपनी अंदर की कमजोरियों*
*से हारते हैं"*....
_हमारे विचार ही हमारा भविष्य तय करते हैं..!

                    आपका अपना
             "पं.खेमेश्वर पुरी गोस्वामी"
            धार्मिक प्रवक्ता-ओज कवि
                  मुंगेली छत्तीसगढ़
          प्रदेश संगठन मंत्री एवं प्रवक्ता
   अंतरराष्ट्रीय युवा हिंदू वाहिनी छत्तीसगढ़
    ८१२००३२८३४-/-७८२८६५७०५७

आज का संदेश


………… 
आप मालिक मत बनिये , आप माली बनिये !
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आप किसके मालिक हॅं ? आप किसी के मालिक नहीं हॅं , मालिक तो सबका भगवान हॅ ! आप सिर्फ माली हॅं , भगवान ने अपनी बगिया की देखभाल के लिये हमे माली बना कर भेजा हॅ !
आप माली के तरीके से काम कीजिये ! आप स्त्री के मालिक नही हॅं , आप यह मत कहना कि मॅं तेरा मालिक हूं , वरना यह कहना कि मॅं तेरा माली हूं! तेरी सेहत को अच्छा रखने के लिये , तुझे खुश रखने के लिये माली की तरह खयाल रखूंगा ! बच्चों के माली , मां बाप के माली , समाज के माली , धन संपदा के माली, व्यापार के माली बनिये मालिक नहीं !
माली बनकर रहोगे तो हर चीज का बेहतरीन उपयोग करोगे ! मालिक होंगे तो जमा करेंगे , अहंकार पॅदा होगा, चिंता पॅदा होगी , ब्लड प्रॅशर होगा हार्ट अटॅक होगा ! जो जमा करोगे , उसका इस्तेमाल सही लोग नही करेगे , उसका दुरुपयोग होगा , जिसके पाप के भागिदार भी आप होंगे !
इसलिये मालिक नहीं माली बनिये !

*वन्दे मातरम्*🚩🚩
*शुभ प्रभात, आपका दिन मंगलमय हो*

                   आपका अपना
             "पं.खेमेश्वर पुरी गोस्वामी"
            धार्मिक प्रवक्ता-ओज कवि
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Saturday, November 16, 2019

वानर


*वानर …*..

राजा दक्ष के यज्ञ में जब गुप्त उष्मा या लैटेंट हीट मतलब उमा दु:खी हो सती या भस्म हुईं तो बहुत कुछ और हुआ :

तीन मुखों वाले (वीरभद्र + भद्रकाली) चरम ताप की बल व शक्ति या त्रिविध ताप प्रकट हुए-
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*आध्यात्मिक ताप =* अर्ध-आत्मा या sub atomic particles को बनाने वाले quark + anti quark का  annihilation. जहाँ विष्णु व ब्रम्हा या electron-proton भी पिघल कर लुप्त हो जाते हैं, केवल चहुँ ओर शिव गण ही रह जाते हैं!

*आधिदैविक ताप =* अर्ध-देव या sub atomic particles, जिसमें अर्ध - दानव भी छुपा है [particles + anti particles] annihilation.

*आधिभौतिक ताप=* अर्ध-भौतिक या आधा परमाणु या सिर्फ नाभिक या nuclear annihilation जिससे पूरा फिजिक्स भरा-पड़ा है!

Nuclear fission annihilation, Nuclear fusion annihilation और दोनों को मिलाने से बना Thermonuclear annihilation.

इन तीन ताप से पूरा ब्रम्हाण्ड जलने लगा जिसे वेदों में वैश्वानर अग्नि और पुराणों में वानरराज केसरी कहा गया है!

उमा ने भस्म होने से पूर्व [अग्नि+वायु] = प्लाज्मा = वानर उत्पन्न किया!

> 49 मरुत [vibration + swing] 
> 49 पवन [gaseous state] 
> 49 अग्नि fire [cold + heat] 
> 49 वानर [plasma]

*Gangsanatan.*

*वानर और बन्दर*
*में अन्तर का भी पता होना चाहिए* !!

                    आपका अपना
             "पं.खेमेश्वर पुरी गोस्वामी"
            धार्मिक प्रवक्ता-ओज कवि
                  मुंगेली छत्तीसगढ़
          प्रदेश संगठन मंत्री एवं प्रवक्ता
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आज का सुविचार


*दिवसेनैव तत् कुर्याद्*
        *येन रात्रौ सुखं वसेत् ।*
*यावज्जीवं च तत्कुर्याद्*
        *येन प्रेत्य सुखं वसेत् ॥*
               *➖विदुरनीतिः*
*भावार्थ👉*
          _दिनभर ऐसा काम कीजिए जिससे रात में चैन की नींद आ सके । और जीवनभर ऐसे ही कर्म करो जिससे मृत्यु के पश्चात् सुख अर्थात् सद्गति प्राप्त हो ।_

*शुभ प्रभात शुभ दिवस*

                   आपका अपना
             "पं.खेमेश्वर पुरी गोस्वामी"
            धार्मिक प्रवक्ता-ओज कवि
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Thursday, November 14, 2019

आज का संदेश


*🙏जय श्री राम🙏*
*विद्यार्थी सेवकः पान्थः*
*क्षुधार्तो   भयकातरः ।*
*भाण्डारी  प्रतिहारी  च*
*सप्त सुप्तान् प्रबोधयेत्।।९/६।।*
*अहिं  नृपं  च  शार्दूलं*
*बर्बटीं  बालकं तथा ।*
*परश्वानं  च  मूर्खं   च*
*सप्त सुप्तान्न बोधयेत् ।।९/७।।*                                                                                                                                          
*भावार्थ👉*
           _विद्यार्थी, सेवक, यात्री, भूख से परेशान, बहुत भयभीत, भंडार का स्वामी और पहरेदार- इन सात सोए हुए लोगों को जगा देना चाहिए। साँप, राजा, शेर, वेश्या, बच्चा, पराया कुत्ता और मूर्ख- इन सात को नहीं जगाना चाहिए।_
🌻आपका दिन *_मंगलमय_*  हो जी ।🌻

                   आपका अपना
             "पं.खेमेश्वर पुरी गोस्वामी"
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Wednesday, November 13, 2019

आज का संदेश


           🔴 *आज का  संदेश* 🔴


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                   *मानव जीवन में षट्कर्मों का विशेष स्थान है | जिस प्रकार प्रकृति की षडरितुयें , मनुष्यों के षडरिपुओं का वर्णन प्राप्त होता है उसी प्रकार मनुष्य के जीवन में षट्कर्म भी बताये गये हैं | सर्वप्रथम तो मानवमात्र के जीवन में छह व्यवस्थाओं का वर्णन बाबा जी ने किया है जिससे कोई भी नहीं बच सकता | यथा :- जन्म , मृत्यु , हानि , लाभ , यश एवं अपयश | इसके अतिरिक्त सनातन धर्म के प्रत्येक अंगों के लिए भिन्न - भिन्न षट्कर्मों का उल्लेख प्राप्त होता है | ब्राह्मणों के षट्कर्म :- अध्यापनं अध्ययन चैव , यजनं याजनं तथा ! दानं प्रतिग्रहं चैव , ब्राह्मणानां अकल्पयत् !! अर्थात :- ब्राह्मणों के मुख्य छ: कर्म पढ़ना , पढ़ाना , यज्ञ करना , यज्ञ कराना , दान लेना एवं दान देना बताया है | तांत्रिकों के षट्कर्म :- मारण , मोहन , उच्चाटन , स्तंभन , विद्वेषण एवं शांति ! योगियों के लिए जिन षट्कर्मों की व्याख्या योगशास्त्र में मिलती है उसके अनुसार :- धौति , वस्ति , नेति , नौलिक , त्राटक एवं कपाल भारती आदि हैं | इन सभी क्रियाओं से अलग प्रत्येक साधारण से साधारण मनुष्यों के लिए भी षट्कर्मों की नितान्त आवश्यकता बताई गयी है जिसे प्रत्येक सनातन धर्मी को अवश्य करनी चाहिए | ये साधारण षट्कर्म हैं :- स्नान , संध्या , तर्पण , पूजन , जप एवं होम | सनातन धर्म की यही दिव्यता है कि यहाँ यदि कठिन साधनायें बतायी गयी हैं तो मानव जीवन को धन्य बनाने के लिए सरल से सरल विधियाँ भी उपलब्ध हैं | इन्हीं विधियों के निर्देशानुसार ही हमारे देश में ब्राह्मणों , तांत्रिकों , योगियों एवं साधारण से दिखने वाले मनुष्यों ने भी समय समय पर उदाहरण प्रस्तुत करते हुए सनातन की धर्मध्वजा फहराई है | मानव जीवन में प्रत्येक वर्ग के लिए षट्कर्मों का विधान है आवश्यकता है उसे जानने की | इन्हीं विभिन्न षट्कर्मों में समस्त मानव जीवन समाहित है |*

*आज प्राय: चारों ओर यह सुनने को मिल ही जाता है कि "ब्राह्मण अपने कर्मों का त्याग कर चुका है" | आज जब पृथ्वी पर रहने वाले सभी मनुष्यों ने अपने कर्मों का त्याग कर दिया है तो मात्र ब्राह्मण को लक्ष्य करके यह टिप्पणी करना विचारणीय है | कुछ लोग तो यहाँ तक कह देते हैं कि ब्राह्मण को सिर्फ उपरवर्णित कर्म ही करना चाहिए | ब्राह्मण अध्ययन - अध्यापन करे , यज्ञ करे एवं कराये , दान ले तथा दान दे | इसके अतिरिक्त ब्राह्मण को कोई कर्म नहीं करना चाहिए | ऐसा कहने वालों को आगे जो निर्देश दिया गया है उस पर भी ध्यान देना चाहिए कि स्मृतियों में लिखा है कि आपातकाल में अपना निर्वाह करने के लिए भिक्षा व दान तो लेना ही चाहिए साथ ही कृषि , व्यापार , महाजनी (लेन देन) भी करना चाहिए | कुछ लोग ब्राह्मणों को कर्मच्युत भी कह देते हैं | यह सत्य भी कहा जा सकता है | परंतु मैं "आचार्य अर्जुन तिवारी" ऐसा कहने वाले धर्म व समाज के ठेकेदारों से पूछना चाहिए कि क्या क्षत्रिय एवं वैश्य आज अपने लिए बताये गये षट्कर्मों का पालन कर रहा है | क्षत्रियों के लिए बताये गये षटकर्मों :- शौर्यं तेजो धृतिर्दाक्ष्यं युद्धे चाप्यपलायनं ! दानमीश्वरभावश्च क्षात्रं कर्म स्वभावज: !! अर्थात :- शौर्य , तेज , धैर्य , सजगता , शत्रु को पीठ न दिखाना , दान और स्वामी भाव में से कितने का पालन क्षत्रिय समाज कर रहा है | अन्य वर्णों के लिए भी कहा गया है कि :- कृषि गौरक्ष्य वाणिज्यं वैश्य कर्म स्वभावज: ! परिचर्यात्मकं कर्म शूद्रस्यापि स्वभावजं !! अर्थात :- खेती , पशुपालन , व्यापार , बैंकिंग , कर व्यवसाय तथा शालीनता वैश्य के षट्कर्म हैं | कौन आज कितना अपने लिए निर्धारित कर्मों का पालन कर पा रहा है ?? लक्ष्य मात्र ब्राह्मणों को किया जाता है | आज समस्त मानव जाति अपने कर्मों से विमुख हो गयी है | ब्राह्मण , क्षत्रिय , वैश्य एवं शूद्र चारों ही वर्णों को अपने स्वाभाविक कर्म का ज्ञान ही नहीं रह गया है | ऐसा नहीं है कि पृथ्वी वीरों से खाली है , अभी भी चारों ही वर्णों में ऐसे व्यक्तित्व हैं जो अपने कर्मों का ज्ञान रखते हुए उसके पालन में तत्पर हैं |*

*हम क्या हैं हमारे षट्कर्म क्या होने चाहिए इसका निर्धारण स्वयं करना है | यदि किसी भी विधा का पालन न कर पाने की स्थिति हो तो साधारण मनुष्यों के लिए बताये गये षट्कर्मों का पालन अवश्य करना चाहिए |*
               *शुभ प्रभात शुभ दिवस*

                    आपका अपना
             "पं.खेमेश्वर पुरी गोस्वामी"
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Tuesday, November 12, 2019

13 नवम्बर / जन्मदिवस – वनवासियों के सच्चे मित्र भोगीलाल पण्ड्या

*13 नवम्बर / जन्मदिवस – वनवासियों के सच्चे मित्र भोगीलाल पण्ड्या* 

राजस्थान के वनवासी क्षेत्र में भोगीलाल पंड्या का नाम जन-जन के लिये एक सच्चे मित्र की भाँति सुपरिचित है. उनका जन्म 13 नवम्बर, 1904 को ग्राम सीमलवाड़ा में श्री पीताम्बर पंड्या के घर में माँ नाथीबाई की कोख से हुआ था. उनकी प्रारम्भिक शिक्षा अपने गाँव में ही हुई. इसके बाद डूँगरपुर और फिर अजमेर से उच्च-शिक्षा प्राप्त कर उन्होंने राजकीय हाईस्कूल, डूँगरपुर में अध्यापन को अपनी जीविका का आधार बनाया. 1920 में मणिबेन से विवाह कर उन्होंने गृहस्थ जीवन में प्रवेश किया.

भोगीलाल जी की रुचि छात्र जीवन से ही सामाजिक कार्यों में थी. गृहस्थ जीवन अपनाने के बाद भी उनकी सक्रियता इस दिशा में कम नहीं हुई. उनकी पत्नी ने भी हर कदम पर उनका साथ दिया. 1935 में जब गांधी जी ने देश में हरिजन उद्धार का आन्दोलन छेड़ा, तो उसकी आग राजस्थान में भी पहुँची. भोगीलाल जी इस आन्दोलन में कूद पड़े. उनका समर्पण देखकर जब डूँगरपुर में ‘हरिजन सेवक संघ’ की स्थापना की गयी, तो भोगीलाल जी को उसका संस्थापक महामन्त्री बनाया गया.

समाज सेवा के लिये एक समुचित राष्ट्रीय मंच मिल जाने से भोगीलाल जी का अधिकांश समय अब इसी में लगने लगा. धीरे-धीरे उनकी प्रसिद्धि सब ओर फैलने लगी. अतः उनका कार्यक्षेत्र भी क्रमशः बढ़ने लगा. हरिजन बन्धुओं के साथ ही जनजातीय समाज में भी उनकी व्यापक पहुँच हो गयी. वनवासी लोग उन्हें अपना सच्चा मित्र मानते थे. उनके सेवा और समर्पण भाव को देखकर लोग उन्हें देवता की तरह सम्मान देने लगे.

भोगीलाल जी का विचार था कि किसी भी व्यक्ति और समाज की स्थायी उन्नति का सबसे महत्वपूर्ण माध्यम शिक्षा है. इसलिये उन्होंने जनजातीय बहुल वागड़ अंचल में शिक्षा का व्यापक प्रचार-प्रसार किया. इससे सब ओर उनकी प्रसिद्धि ‘वागड़ के गांधी’ के रूप में हो गयी. गांधी जी द्वारा स्थापित भारतीय आदिम जाति सेवक संघ, राजस्थान हरिजन सेवक संघ आदि अनेक संस्थाओं में उन्होंने मेरुदण्ड बनकर काम किया.

भोगीलाल जी की कार्यशैली की विशेषता यह थी कि काम करते हुए उन्होंने सेवाव्रतियों की विशाल टोली भी तैयार की. इससे सेवा के नये कामों के लिये कभी लोगों की कमी नहीं पड़ी. 1942 में ‘भारत छोड़ो आन्दोलन’ के समय राजकीय सेवा से त्यागपत्र देकर वे पूरी तरह इसमें कूद पड़े. वागड़ अंचल में उनका विस्तृत परिचय और अत्यधिक सम्मान था. उन्होंने उस क्षेत्र में सघन प्रवास कर स्वतन्त्रता की अग्नि को दूर-दूर तक फैलाया.

1942 से उनका कार्यक्षेत्र मुख्यतः राजनीतिक हो गया; फिर भी प्राथमिकता वे वनवासी कल्याण के काम को ही देते थे. 1944 में उन्होंने प्रजामंडल की स्थापना की. रियासतों के विलीनीकरण के दौर में जब पूर्व राजस्थान का गठन हुआ, तो भोगीलाल जी उसके पहले मन्त्री बनाये गये. स्वतन्त्रता के बाद भी राज्य शासन में वे अनेक बार मन्त्री रहे. 1969 में उन्हें राजस्थान खादी ग्रामोद्योग बोर्ड का अध्यक्ष बनाया गया.

समाज सेवा के प्रति उनकी लगन के कारण 1976 में शासन ने उन्हें ‘पद्मभूषण’ से अलंकृत किया. 31 मार्च, 1981 को वनवासियों का यह सच्चा मित्र अनन्त की यात्रा पर चला गया.
                    प्रस्तुतकर्ता
                   आपका अपना
             "पं.खेमेश्वर पुरी गोस्वामी"
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न्यू २

प्रति मां. मुख्यमंत्री श्री भूपेश बघेल जी रायपुर , छत्तीसगढ़ शासन विषय : आर्थिक सहायता,आवास, तथा आवासीय पट्टा दिलाने बाबत् आदरणीय महोदय,   ...