कहाँ धरित्री पति सोता है,
जगती का जन जन रोता है।
मिटते जाते जनधन उपवन,
सूना घर है सुने मधुवन,
उड़ते जाते प्राणि पखेरू
सूना नंदन वन रोता है।
कहाँ ••••••••••••••••••••••||
मौतों ने श्रृंगार रचाया,
ताण्डव कर उत्पात मचाया।
विछड़ते जाते मीत जहाँ से,
आर्द्र मेरा भी मन होता है।।
कहाँ ••••••••••••••••••••••||
आर्त वेदना कृन्दित मेरी,
भक्ति पुकार रुदित अब मेरी।
उजड़ती जाती वसुदा सुन्दरि,
श्रद्धा का भी दम खोता है।।
कहाँ••••••••••••••••••••••••••||
मृत्यु अजेय हुई भूतल पर,
रुधिर माँग सज्जित नव वर।
उनको भी छोड़ती नही है,
कारण यही मदन रोता है।
कहाँ••••••••••••••••••••••••••||
श्वेत बालुका कण आधारित,
यह जीवन नश्वर अभिसारित।
पञ्च तत्व में खण्डित होकर,
जर जर यूँ ही भवन होता है।
कहाँ••••••••••••••••••••••••••||
प्रकृति रम्यता क्षय कर सारी,
मानव ने मधुरिमता क्षारी।
क्षमा सभी अपराध मनुज के,
यही इश्वरी गुण होता है।
कहाँ••••••••••••••••••••••••••||
हे!त्रिनेत्र वैश्वानर धारी,
कैलाशी प्रगल्भ मदनारी।
दया तुम्हारी बिन मृत्युञ्जय,
भू पर सकल श्रजन खोता है।
कहाँ••••••••••••••••••••••••••||
करुण कृन्दनित जगती है प्रभु,
अनुत्तरित सब देव हुए शुभ।
बिना तुम्हारी क्रोध अनल के,
कहीं मृत्यु मर्दन होता है??
कहाँ••••••••••••••••••••••••••||
हे! "खेमेश्वर" के प्राणोद्धारक,
जगत विनाशक पालन कारक।
हे!शिव ! शिवमय जग को कर दो,
नवीन युग उदयन होता है।।
कहाँ••••••••••••••••••••••••••||
©"पं.खेमेश्वर पुरी गोस्वामी"®
धार्मिक प्रवक्ता-ओज कवि
डिंडोरी-मुंगेली-छत्तीसगढ़
8120032834/7828657057