Friday, April 24, 2020

वेदना गीत

कहाँ धरित्री पति सोता है, 
जगती का जन जन रोता है।

मिटते जाते जनधन उपवन,
सूना घर है सुने मधुवन,
उड़ते जाते प्राणि पखेरू
सूना नंदन वन रोता है।
कहाँ ••••••••••••••••••••••||

मौतों ने श्रृंगार रचाया,
ताण्डव कर उत्पात मचाया।
विछड़ते जाते मीत जहाँ से,
आर्द्र मेरा भी मन होता है।।
कहाँ ••••••••••••••••••••••||

आर्त वेदना   कृन्दित  मेरी,
भक्ति पुकार  रुदित अब मेरी।
उजड़ती जाती वसुदा सुन्दरि,
श्रद्धा का भी दम खोता है।।
कहाँ••••••••••••••••••••••••••||

मृत्यु अजेय हुई भूतल पर,
रुधिर माँग सज्जित नव वर।
उनको भी छोड़ती नही है,
कारण यही मदन रोता है।
कहाँ••••••••••••••••••••••••••||

श्वेत बालुका कण आधारित,
यह जीवन नश्वर अभिसारित।
पञ्च तत्व में खण्डित होकर,
जर जर यूँ ही भवन होता है।
कहाँ••••••••••••••••••••••••••||

प्रकृति रम्यता क्षय कर सारी,
मानव ने मधुरिमता क्षारी।
क्षमा सभी अपराध मनुज के,
यही इश्वरी गुण होता है।
कहाँ••••••••••••••••••••••••••||

हे!त्रिनेत्र वैश्वानर धारी,
कैलाशी प्रगल्भ मदनारी।
दया तुम्हारी बिन मृत्युञ्जय,
भू पर सकल श्रजन खोता है।
कहाँ••••••••••••••••••••••••••||

करुण कृन्दनित जगती है प्रभु, 
अनुत्तरित सब देव हुए शुभ।
बिना तुम्हारी क्रोध अनल के,
कहीं मृत्यु मर्दन होता है??
कहाँ••••••••••••••••••••••••••||

हे! "खेमेश्वर" के प्राणोद्धारक, 
जगत विनाशक पालन कारक।
हे!शिव ! शिवमय जग को कर दो, 
नवीन युग उदयन होता है।।
कहाँ••••••••••••••••••••••••••||

          ©"पं.खेमेश्वर पुरी गोस्वामी"®
            धार्मिक प्रवक्ता-ओज कवि
             डिंडोरी-मुंगेली-छत्तीसगढ़
       8120032834/7828657057

देख के दशा दिशा अपनी मन मेरा भी रोता है |

देख के दशा दिशा अपनी मन मेरा ,,,,,,,,,,,,,,!

देख के दशा दिशा अपनी मन मेरा भी रोता है |
इधर उधर थका हारा अपना आपा ही खोता है |
देख के दशा दिशा अपनी मन मेरा ,,,,,,,,,,,,,,!

तब मन का धैर्य पास कहां हमारे कुछ होता है |
हम करते हैं कुछ अनचाहे कुछ और होता है |
जब आता है कठिन दौर तब ऐसा ही होता है | 
देख के दशा दिशा अपनी मन मेरा ,,,,,,,,,,,,,!

एक भी हल न हुईं जीवन की मेरी पहेलियां |
कामना अभिलाषा बनी होती मेरी सहेलियां |
उपर से अपना दोष अलग रंग दिखाता होता है |
देख के दशा दिशा अपनी मन मेरा ,,,,,,,,,,,,!

देख देख सबकी हालत कुछ हमको भी होता है |
खोजता मैं भी उसको हूं जाने किधर वह होता है |
देख के दशा दिशा अपनी मन मेरा ,,,,,,,,,,,,,,,!

                   
          ©"पं.खेमेश्वर पुरी गोस्वामी"®
            धार्मिक प्रवक्ता-ओज कवि
             डिंडोरी-मुंगेली-छत्तीसगढ़
       8120032834/7828657057

हमें एतबार होता है आपसे मिलकर।


फजा गुलजार होता है आपसे मिलकर!
हमें  एतबार होता है आपसे मिलकर।

नहीं मुमकिन जहां में आप बिन रहना!
जवाँ और प्यार होता है आपसे मिलकर।

रहे उल्फत सदा अपने दर्मियां अक्सर!
यही इंतजार होता है आपसे मिलकर।

थाम कर हाथ मेरा चलना हमारे संग!
दिल को करार होता है आपसे मिलकर।

कभी बिछड़े ना हम वफ़ा की राहों पर!
इश्क़ बेशुमार होता है आपसे मिलकर।

फजा गुलजार होता है आपसे मिलकर!
हमें  एतबार होता है आपसे मिलकर।

                   
           ©"पं.खेमेश्वर पुरी गोस्वामी"®
            धार्मिक प्रवक्ता-ओज कवि
             डिंडोरी-मुंगेली-छत्तीसगढ़
       8120032834/7828657057

अर्णव गोस्वामी जी के ऊपर हुए हमले के ख़िलाफ़ कविता


रोती वसुंधरा, क्या ठहरे उसके पूत्र उसके दास नहीं
ग़लती तुम्हारी नहीं अर्णव, हमें इसका आभास नहीं

क्या हुआ गर एक विदेशी से उसका पेशा पूछ लिया
राजनीतिज्ञ ठहरे तो क्या है, जनता ठहरी खास नहीं

तुम खोलो आँखें देश की सोया हुआ देश तो क्या है
जागेगा एक दिन, छोड़ना तुम कभी भी प्रयास नहीं

सच्ची पत्रकारिता अपनाके, उतारो नकाब चेहरों से
यहाँ दिल के काले नेता ठहरे लेने देंगे तुझे सांस नहीं

गुरु चाणक्य कह गये थे,विदेशी कभी हितकर नहीं
देश बेच खाने कब छोड़ेगा कभी अपने अभ्यास नहीं

पृथ्वी ने आँखें फुड़वा डाली की आँखें खुल जाएंगी
गुरु गोविंद ने दी बच्चो की कुर्बानी आई ये रास नहीं

नहीं भूल सकते हम अम्बी,जयचंद मीर जाफर यहाँ
इससे ज्यादा क्या करेंगे ये देश का ये सत्यानास नहीं

जब चाहो चैनल पर बुलवा लेना गोस्वामी तुम हमकों
हम दरबारी कवि ना ठहरे लिखते कभी बकवास नहीं

तुम देश जगाओ खेमेश्वर की कलम साथ तुम्हारे ठहरी
हमारे अलावा तुम्हें मिलेगा कोई कवि अपने पास नहीं

             "पं.खेमेश्वर पुरी गोस्वामी"
            धार्मिक प्रवक्ता-ओज कवि
             डिंडोरी-मुंगेली-छत्तीसगढ़
       8120032834/7828657057

कोरोना

विदेशी लहर से कहर छा गया है।
शहर की हवा में जहर आ गया है।।

अब गाँव की ओर लौटो सपूतों।
तज अपनी मिट्टी नगर भा गया है।।

पहचान लो कर्म अपना सुपावन।
बैलों की जोड़ी डगर पा गया है।।

मशीनीकरण ने मिटायी है मेहनत।
सुविधापरक ये मगर आ गया है।।

घर में रहकर भजो नाम हरि का।
कोरोना का संकट अगर आ गया है।।

         © "पं.खेमेश्वर पुरी गोस्वामी"®
            धार्मिक प्रवक्ता-ओज कवि
             डिंडोरी-मुंगेली-छत्तीसगढ़
       8120032834/7828657057

परसुराम के वंशज जागो,तुम्हें जगाने आया हूँ ।।

परसुराम के वंशज जागो,,
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चारों ओर कुहासा छाया,कूटनीति का डेरा है,
वेद शास्त्र व्रत नीति नियम को,काल चक्र नें घेरा है,
कितनें पंडित छोड़ जनेऊ,शिखा कटाये घूम रहे,
ब्रह्म वंश के कितनें बेटे,मदिरा पी कर झूम रहे,
नीतिशास्त्र का दिन दिन होता,क्षरण दिखाई देता है,
शान्ति और मर्यादा का नित,हरण दिखाई देता है,
मौनव्रती बनकर रहनें से,अधिकार नहीं मिल सकता,
जुगनूँ के पीछे चलनें से,उजियार नहीं मिल सकता,

निज पौरुष को पहचानों तुम,याद दिलाने आया हूँ ।।
परसुराम के वंशज जागो,तुम्हें जगाने आया हूँ ।।(1)

वेद ऋचाएँ लिखकर तुमनें,शोध जगत को बाँटे हैं,
किन्तु तुम्हारे ही गालों पर,पड़े अधर्मी चाँटे हैं,
सुख वैभव को त्यागा तुमनें,संस्कृति का सम्मान किया,
वेद ब्रह्म के ज्ञाता होकर,कभी नहीं अभिमान किया,
जिनको पाठ पढ़ाया तुमनें,भाग्य तुम्हारा जाँच रहे,
बैशाखी पर चलनें वाले,चढ़े शीश पर नाच रहे,
घात लगाये बैठे तुम पर,चौकन्ने मक्कार सभी,
अभी नहीं यदि जागे तुम तो,खो दोगे अधिकार सभी,

वर्तमान की यह सच्चाई,तुम्हें बताने आया हूँ ।।
परसुराम के वंशज जागो,तुम्हें जगाने आया हूँ ।।(2)

निज आन बान मर्यादा का,पूरा पूरा ध्यान रखो,
शीश भले कट जाये लेकिन,शीर्ष सदा अभिमान रखो,
बनों शास्त्र के मूलक लेकिन,अस्त्र शस्त्र का ज्ञान रखो,
अहंकार को पीना सीखो,पर स्वाभिमान का भान रखो,
बनों शान्ति के पथगामी पर,क्रांति पुत्र भी बनें रहो,
अनाचार के सम्मुख हर क्षण,सीना तानें तनें रहो,
वेद शास्त्र संस्कृति का तुमको,आन बचाकर रखना है,
राष्ट्र,धर्म,तप,योग व्रतों का,मान बचाकर रखना है,

कविता का इक दीप जलाकर,राह दिखानें आया हूँ ।।(3)
परसुराम के वंशज जागो,तुम्हें जगाने आया हूँ ।।

जीना मरना अटल सत्य है,मन से भय को त्यागो,
चलो सत्य के पथगामी बन,नहीं कर्म से तुम भागो,
तुमको पंगु बनानें खातिर,मानव घात लगाये हैं,
कदम कदम पर व्यवधानों के,दानव घात लगाये हैं,
कितना दमन सहोगे अब तो,शोषण का प्रतिकार करो,
विप्र वंश के बेटे हो तो,चलो उठो हुंकार भरो,
निज अधिकार छीनना सीखो,भीख किसी से मत माँगो,
सोए हुए सपूतों अब तो,कल्पित निद्रा से जागो,

बंजर होती वीर भूमि पर,शौर्य उगानें आया हूँ।।(4)
परसुराम के वंशज जागो,तुम्हें जगाने आया हूँ ।।

                   
             "पं.खेमेश्वर पुरी गोस्वामी"
            धार्मिक प्रवक्ता-ओज कवि
             डिंडोरी-मुंगेली-छत्तीसगढ़
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गहरा_ज्ञान


*⚜गहरा_ज्ञान✍️*

*एक नदी 🌊में बाढ़ आती है, छोटे से टापू में पानी भर जाता है वहां रहने वाला सीधा साधा एक चूहा🐀 कछुवे🐢 से कहता है मित्र*
*" क्या तुम मुझे नदी पार करा सकते हो मेरे बिल में पानी भर गया है ??*
*कछुवा🐢 राजी हो जाता है तथा चूहे 🐀को अपनी पीठ पर बैठा लेता है✍️*
*तभी एक बिच्छु🦂भी बिल से बाहर आता है।*
*कहता है मुझे भी पार जाना है  मुझे भी ले चलो,*

*चूहा🐀 बोला मत बिठाओ ये जहरीला है ये मुझे काट लेगा।*
*तभी समय की नजाकत को भांपकर बिच्छू🦂 बड़ी विनम्रता से कसम खाकर प्रेम प्रदर्शित करते हुए कहता है : भाई कसम से नही काटूंगा बस मुझे भी ले चलो।"*

*कछुआ🐢 चूहे🐀 और बिच्छू🦂 को ले तैरने लगता है।*
*तभी बीच रास्ते मे बिच्छु🦂 चूहे🐀 को काट लेता है।*
*चूहा🐀 चिल्लाकर कछुए🐢 से बोलता है "मित्र इसने मुझे काट लिया अब मैं नही बचूंगा।"*

*थोड़ी देर बाद उस बिच्छू🦂 ने कछुवे🐢 को भी डंक मार दिया। कछुवा🐢 मजबूर था जब तक किनारे पहुंचा चूहा🐀 मर चुका था।।*

*कछुआ🐢 बोला "मैं तो इंसानियत से मजबूर था तुम्हे बीच मे नही डुबोया"*
*मगर तुमने मुझे क्यों काट लिया ?*
*बिच्छु🦂 उसकी पीठ से उतरकर जाते जाते बोला "मूर्ख तुम जानते नही मेरा तो धर्म ही है डंक मारना चाहे कोई भी हो।"*
*गलती तुम्हारी है जो तुमने मुझ पर विश्वास किया।।*
*ठीक इसी तरह*
*कोरोना की इस बाढ़ में सरकार ने भी नदी पार करवाने के लिए कुछ बिच्छुओं🦂🦂🦂 को पीठ पर बिठा लिया है।*
*वे लगातार डंक मार रहे है और सरकार इन्सानियत की खातिर मजबूर हैं ।।*
*फलस्वरूप*
*हर रोज बेचारे निर्दोष डॉक्टर,पुलिस,और स्वास्थ्यकर्मी पिट ओर मर रहे हैं✍️🎪*

                   आपका अपना
             "पं.खेमेश्वर पुरी गोस्वामी"
            धार्मिक प्रवक्ता-ओज कवि
             डिंडोरी-मुंगेली-छत्तीसगढ़
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न्यू २

प्रति मां. मुख्यमंत्री श्री भूपेश बघेल जी रायपुर , छत्तीसगढ़ शासन विषय : आर्थिक सहायता,आवास, तथा आवासीय पट्टा दिलाने बाबत् आदरणीय महोदय,   ...