विदेशी लहर से कहर छा गया है।
शहर की हवा में जहर आ गया है।।
अब गाँव की ओर लौटो सपूतों।
तज अपनी मिट्टी नगर भा गया है।।
पहचान लो कर्म अपना सुपावन।
बैलों की जोड़ी डगर पा गया है।।
मशीनीकरण ने मिटायी है मेहनत।
सुविधापरक ये मगर आ गया है।।
घर में रहकर भजो नाम हरि का।
कोरोना का संकट अगर आ गया है।।
© "पं.खेमेश्वर पुरी गोस्वामी"®
धार्मिक प्रवक्ता-ओज कवि
डिंडोरी-मुंगेली-छत्तीसगढ़
8120032834/7828657057
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