गूँजती थीं नित फिरंगी फ़ौज की किलकारियाँ ।।
चल रही आवाम पर थीं दुश्मनों की आरियाँ ।।(1)
शीश पर था नाचता अन्याय अंग्रेजी चढा,
इस भरत के देश में थीं बढ़ रही बदकारियाँ ।।(2)
मुल्क़ अपना जी रहा था ज़िन्दगी ख़ैरात की,
दिख रही थीं दुश्मनों की चारसू मक्कारियाँ ।।(3)
ज़ुल्म का आतंक था फैला हुआ इस देश में,
जल रही थीं अम्न की मासूम धूँ धूँ क्यारियाँ ।।(4)
क्रूरता वह याद आती काँप उठता है बदन,
मर रहे थे वृद्ध बालक लुट रही थीं नारियाँ ।।
भोगते थे दण्ड वह जयचन्द भी निज पाप का,
कर रहे थे लोभ में जो मुल्क़ से गद्दारियाँ ।।(5)
नाम था व्यापार का पर नोंचते थे हिन्द को,
लूटतेे थे नीच गोरे बस बदलकर पारियाँ ।।(6)
स्वाभिमानी शूरमा कुछ देश के थे कर रहे,
मुल्क़ को आज़ाद करनें की सतत तैयारियाँ ।।(7)
बढ़ गया अन्याय हद से जब ज़ियादा मुल्क़ में,
जल उठी थीं इस धरा पर क्रान्ति की चिंगारियाँ ।।(8)
बज उठा था फिर बिगुल आज़ाद होना था हमें,
"खेमेश्वर" कबतक और सहते हम यहाँ दुश्वारियाँ ।।(9)
©"पं.खेमेश्वर पुरी गोस्वामी"®
धार्मिक प्रवक्ता-ओज कवि
डिंडोरी-मुंगेली-छत्तीसगढ़
8120032834/7828657057