Friday, April 24, 2020

सियासी भाँग पीकर राजधानी बोल पड़ती है

दबे नायाब रिश्तों की कहानी बोल पड़ती है ।।
रखी बुनियाद जिसनें वो रुहानी बोल पड़ती है ।।(1)

कभी तुम गौर से पढ़ना वसीयत बाप पुरखों की,
बुजुर्गों की लिखी इक इक निशानी बोल पड़ती है ।।(2)

करो तुम लाख कोशिश पर ज़माना भाँप ही लेता,
नज़र से हर नज़र की छेड़खानी बोल पड़ती है ।।(3)

दिखाते पाक दामन हो ज़माने को मगर फिर भी,
तुम्हारी बात से तो बदगुमानी बोल पड़ती है ।।(4)

दिखावा खूब करते हैं मियाँ हम भी अमीरी का,
मगर गाहे-बगाहे ये गिरानी बोल पड़ती है ।।(5)

दिखाकर नाज़ नख़रे जब पड़ोसन तू तड़ा करती,
उठाकर हाथ में झाड़ू घराणी बोल पड़ती है ।।(6)

अकेला चाँद निकला है फ़लक पे जा गले मिल ले,
ज़मीं के कान में यह रातरानी बोल पड़ती है ।।(7)

लुटाई जान लाखों नें बचा तब मुल्क़ का परचम,
हमेशा मुल्क़ के हक़ में जवानी बोल पड़ती है ।।(8)

लगाकर जान की बाज़ी बचाई आन जौहर कर, 
यहाँ हर एक बेटी जय भवानी बोल पड़ती है ।।(9)

अभी कुछ साल तक डाँटा मगर अब सोचता हूँ मैं,
अचानक हो गई बिटिया सयानी बोल पड़ती है ।।(10)

न टोपी से न पगड़ी से न फितरत कारनामे से,
बचा ईमान है जिसका ज़ुबानी बोल पड़ती है ।।(11)

नहीं है पास अब मेरे मगर माँ भूल कब पाई,
फ़ज़ाओं में दुआ वो आसमानी बोल पड़ती है ।।(12)

बदलकर भेष लोगों से छुपाता जात वह अपनीं,
मगर लहज़े ज़ुबानी से पठानी बोल पड़ती है ।।(13)

करूँ क्या बात उससे मैं अदब ही बेच बैठा जो,
कभी भी यार सोहरत खानदानी बोल पड़ती है ।।(14)

मसीहा मैं नहीं कहता उसे लेकिन हकीक़त में,
वफ़ा के साथ उसकी हक़-बयानी बोल पड़ती है ।।(15)

मिलें कैसे यहाँ आवाम के दिल "खेमेश्वर" तुम,
सियासी भाँग पीकर राजधानी बोल पड़ती है ।।(16)
           ©"पं.खेमेश्वर पुरी गोस्वामी"®
            धार्मिक प्रवक्ता-ओज कवि
             डिंडोरी-मुंगेली-छत्तीसगढ़
       8120032834/7828657057

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