Sunday, May 3, 2020

इन पाषाणों के बीच कुछ साबित न कर पाओगी

रुक जाओ नारी तुम कभी सीता न बन पाओगी
इन पाषाणों के बीच कुछ साबित न कर पाओगी

खुद मैला करते दामन मन भी घायल करते तेरा
धरती के खुदाओं से न जीत कभी तुम पाओगी

जन्म लिया है नारी से नारी ही पालनहार बनी
कलुषित ऐसे नर के लिए निर्मल मनकैसे लाओगी

अग्निपरीक्षा देकर भी धरती माँ के अंक समाती है
घायल तन मन का बोझ लिए लौट कभी न पाओगी

चाहे त्रेता की सीता हो या हो कलयुग की निर्भया
घृणित आचरण इनका सर अपने लेकर जाओगी 

रुक जाओ नारी तुम कभी सीता न बन पाओगी
इन पाषाणों के बीच कुछ साबित न कर पाओगी

          ©"पं.खेमेश्वर पुरी गोस्वामी"®
            धार्मिक प्रवक्ता-ओज कवि
             डिंडोरी-मुंगेली-छत्तीसगढ़
       8120032834/7828657057

Saturday, May 2, 2020

देखूं जो हंसीं सूरत गमों को भूल जाता हूँ।


थका सा दूर से जब भी तेरे पास आता हूँ!
देखूं जो हंसीं सूरत गमों को भूल जाता हूँ।

बसे हो आंखों में ऐसे हो दिल चुराये बैठे !
लगे है चार सू चाह के मेले सदाएं पाता हूँ।

खिले है गुल भी दिल के सजे बाग मन का!
मिला आ सुर में सुर को हंसीं गीत गाता हूँ।

रजा  है रब  की  मिले  यूँ दिल मन मन से!
करूं ये दुआ भी और एकदूजे को भाता हूं।

नहीं है कुछ भी आप बिन हंसीं  दुनियां में।
मिलें आ आये हम निभाने वफ़ा का नाता हूं।

थका सा दूर से जब भी तेरे पास आता हूँ!
देखूं जो हंसीं सूरत गमों को भूल जाता हूँ।

          ©"पं.खेमेश्वर पुरी गोस्वामी"®
            धार्मिक प्रवक्ता-ओज कवि
             डिंडोरी-मुंगेली-छत्तीसगढ़
       8120032834/7828657057

हां जी ना पाएंगे हम, तुमसे बिछड़के।

आ  जीभर   के  देखूं,   तुझे   प्यार  करके!
हां  जी  ना   पाएंगे   हम,  तुमसे  बिछड़के।

इस  कदर  तुम  हमारे,  हम  तुम्हारे  हुए हैं!
जुदा  रहना  है  मुश्किल,  अब तो कसम से।

चलो  संग  चलें  हम,  जिंदगी  के  सफर में!
लिये  चाहतों  का  हंसीं,  लहर  हर  डगर पे।

जो  रूठूँ  मनाना ,  दूर  एक  पल  ना  जाना!
रहना हमदम हमेशा,  करीब   मेरे  नजर  के।

दिल मिले  और  दिलसे,  दुआ करते रहें हम!
जानेमन जान हो तुम, मेरे धड़कते जिगर के।

आ   जीभर   के  देखूं ,   तुझे   प्यार  करके!
हां  जी  ना पाएंगे   हम,   तुमसे     बिछड़के।

          ©"पं.खेमेश्वर पुरी गोस्वामी"®
            धार्मिक प्रवक्ता-ओज कवि
             डिंडोरी-मुंगेली-छत्तीसगढ़
       8120032834/7828657057

Friday, May 1, 2020

कहूं क्या बताएं सभी को पता है।

सफ़र   में   अकेले    हुएं    सब  जुदा  है!
कहूं  क्या   बताएं   सभी    को    पता  है।

उल्फत  का   ठिकाना   रहा  ना  यहां  पे!
किसे  प्यार   में   यूँ   यकीं   अब  रहा  है।

चन्द  लम्हें    ठहर  कर   गुजरते  चलें  हैं!
मिलकर  बिछड़ने   का  लगा  माजरा  है।

कब तलक इस कदर तय  सफर हम करें!
रूठे हैं पराये यहां  और  अपने   ख़फ़ा है।

लिये दिल ढला था मुहब्बत हां मगर फिर!
जताये   सभी   और   शिकवा   मिला  है।

सफ़र   में   अकेले    हुएं    सब  जुदा  है!
कहूं  क्या   बताएं   सभी    को    पता  है।

          ©"पं.खेमेश्वर पुरी गोस्वामी"®
            धार्मिक प्रवक्ता-ओज कवि
             डिंडोरी-मुंगेली-छत्तीसगढ़
       8120032834/7828657057

दिव्य दीपक चेतना का,हो सजग जलता रहे

सूर्य का है काम ढ़लना,नित्य वह ढ़लता रहे ।।
दिव्य दीपक चेतना का,हो सजग जलता रहे ।।

शाम को जब आ अँधेरा द्वार पर होता खड़ा,
तानकर निज वक्ष दीपक गर्व से रहता अड़ा,
एक दिनकर काट पायेगा भला क्या कालिमा,
कालिमा के व्यूह में दम तोड़ देगी लालिमा,

है तमस का काम छलना द्रोह में छलता रहे ।।(1)
दिव्य दीपक चेतना का,हो सजग जलता रहे ।।

एक जुगनूँ का अहं कब जीत पाया रवि किरण,
मान मर्दन कर गया वह एक अंगद का चरण,
एक कवि स्वीकार करता सत्य के ही पक्ष को,
एक दीपक चीर देता है तमस के वक्ष को,

आँधियों का दम्भ तोड़े उम्र भर खलता रहे ।।(2)
दिव्य दीपक चेतना का,हो सजग जलता रहे ।।

शान्ति के प्रस्ताव का भी हम करें स्वागत भले,
किन्तु ऐसी शान्ति का क्या धर्म जिसमें जा जले,
रह न पाया धर्म रक्षित शेष बचती क्रन्दना,
लेखनी के भाग्य में बस आसनों की वन्दना,

चल पड़ा जो सत्य पथ पर वह सतत चलता रहे ।।(3)
दिव्य दीपक चेतना का,हो सजग जलता रहे ।।

सींचकर निज रक्त से की कोंपलों की सर्जना,
धन्य उनकी साधना है धन्य उनकी अर्चना,
अग्रजों ने है लगाया वह विटप कुछ सोच कर,
कर रहे संहार क्यों हो पत्तियों को नोंच कर,

"खेमेश्वर" विश्वास का यह वृक्ष नित फलता रहे ।।(4)
दिव्य दीपक चेतना का, हो सजग  जलता  रहे ।।

          ©"पं.खेमेश्वर पुरी गोस्वामी"®
            धार्मिक प्रवक्ता-ओज कवि
             डिंडोरी-मुंगेली-छत्तीसगढ़
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शिवलिंग पर बने त्रिपुण्ड्र की तीन आड़ी रेखाओं का रहस्य .

*🚩शिवलिंग पर बने त्रिपुण्ड्र की तीन आड़ी रेखाओं का रहस्य ......*

*शैव परम्परा का तिलक है त्रिपुण्ड्र । यह कितना बड़ा होना चाहिए ? कैसे लगाना चाहिए ? त्रिपुण्ड्र की तीनों रेखाओं का क्या रहस्य है ?*
 
*प्राय: साधु-सन्तों और विभिन्न पंथों के अनुयायियों के माथे पर अलग-अलग तरह के तिलक दिखाई देते हैं । तिलक विभिन्न सम्प्रदाय, अखाड़ों और पंथों की पहचान होते हैं । हिन्दू धर्म में संतों के जितने मत, पंथ और सम्प्रदाय है उन सबके तिलक भी अलग-अलग हैं । अपने-अपने इष्ट के अनुसार लोग तरह-तरह के तिलक लगाते हैं ।*

*शैव परम्परा का तिलक कहलाता है त्रिपुण्ड्र......*

*भगवान शिव के मस्तक पर और शिवलिंग पर सफेद चंदन या भस्म से लगाई गई तीन आड़ी रेखाएं त्रिपुण्ड्र कहलाती हैं । ये भगवान शिव के श्रृंगार का हिस्सा हैं । शैव परम्परा में शैव संन्यासी ललाट पर चंदन या भस्म से तीन आड़ी रेखा त्रिपुण्ड्र बनाते हैं ।*

*एक बार सनत्कुमारों ने भगवान कालाग्निरुद्र से पूछा......*
*· त्रिपुण्ड्र कितना बड़ा होना चाहिए ?*
*· कैसे लगाना चाहिए ?*
*· त्रिपुण्ड्र की तीनों रेखाओं का क्या रहस्य है ?*

*भगवान कालाग्निरुद्र बोले......*

*बीच की तीन अंगुलियों से भस्म लेकर भक्तिपूर्वक ललाट में त्रिपुण्ड्र लगाना चाहिए । ललाट से लेकर नेत्रपर्यन्त और मस्तक से लेकर भौंहों (भ्रकुटी) तक त्रिपुण्ड्र लगाया जाता है । त्रिपुण्ड्र बायें नेत्र से दायें नेत्र तक ही लम्बा होना चाहिए । त्रिपुण्ड्र की रेखाएं बहुत लम्बी होने पर तप को और छोटी होने पर आयु को कम करती हैं । भस्म मध्याह्न से पहले जल मिला कर, मध्याह्न में चंदन मिलाकर और सायंकाल सूखी भस्म ही त्रिपुण्ड्र रूप में लगानी चाहिए ।*

*क्या है त्रिपुण्ड्र की तीन आड़ी रेखाओं का रहस्य .......*

*त्रिपुण्ड्र की तीनों रेखाओं में से प्रत्येक के नौ-नौ देवता हैं, जो सभी अंगों में स्थित हैं ।*

*▪️ पहली रेखा—गार्हपत्य अग्नि, प्रणव का प्रथम अक्षर अकार, रजोगुण, पृथ्वी, धर्म, क्रियाशक्ति, ऋग्वेद, प्रात:कालीन हवन और महादेव—ये त्रिपुण्ड्र की प्रथम रेखा के नौ देवता हैं ।*

*▪️ दूसरी रेखा— दक्षिणाग्नि, प्रणव का दूसरा अक्षर उकार, सत्वगुण, आकाश, अन्तरात्मा, इच्छाशक्ति, यजुर्वेद, मध्याह्न के हवन और महेश्वर—ये दूसरी रेखा के नौ देवता हैं ।*

*▪️ तीसरी रेखा—आहवनीय अग्नि, प्रणव का तीसरा अक्षर मकार, तमोगुण, स्वर्गलोक, परमात्मा, ज्ञानशक्ति, सामवेद, तीसरे हवन और शिव—ये तीसरी रेखा के नौ देवता हैं ।*

*शरीर के बत्तीस, सोलह, आठ या पांच स्थानों पर त्रिपुण्ड्र लगाया जाता है ।*

*त्रिपुण्ड्र लगाने के बत्तीस स्थान.....*

*मस्तक, ललाट, दोनों कान, दोनों नेत्र, दोनों नाक, मुख, कण्ठ, दोनों हाथ, दोनों कोहनी, दोनों कलाई, हृदय, दोनों पार्श्व भाग, नाभि, दोनों अण्डकोष, दोनों उरु, दोनों गुल्फ, दोनों घुटने, दोनों पिंडली और दोनों पैर ।*

*त्रिपुण्ड्र लगाने के सोलह स्थान..........*

*मस्तक, ललाट, कण्ठ, दोनों कंधों, दोनों भुजाओं, दोनों कोहनी, दोनों कलाई, हृदय, नाभि, दोनों पसलियों, तथा पृष्ठभाग में ।*

*त्रिपुण्ड्र लगाने के आठ स्थान.......*

*गुह्य स्थान, ललाट, दोनों कान, दोनों कंधे, हृदय, और नाभि ।*

*त्रिपुण्ड्र लगाने के पांच स्थान......*

*मस्तक, दोनों भुजायें, हृदय और नाभि ।*

*इन सम्पूर्ण अंगों में स्थान देवता बताये गये हैं उनका नाम लेकर त्रिपुण्ड्र धारण करना चाहिए ।*

*त्रिपुण्ड्र धारण करने का फल.......*

*इस प्रकार जो कोई भी मनुष्य भस्म का त्रिपुण्ड करता है वह छोटे-बड़े सभी पापों से मुक्त होकर परम पवित्र हो जाता है । उसे सब तीर्थों में स्नान का फल मिल जाता है ।*
*त्रिपुण्ड्र भोग और मोक्ष को देने वाला है ।*
*वह सभी रुद्र-मन्त्रों को जपने का अधिकारी होता है ।*
*वह सब भोगों को भोगता है और मृत्यु के बाद शिव-सायुज्य मुक्ति प्राप्त करता है ।*
*उसे पुनर्जन्म नहीं लेना पड़ता है ।*

*गौरीशंकर तिलक.......*

*कुछ शिव-भक्त शिवजी का त्रिपुण्ड लगाकर उसके बीच में माता गौरी के लिए रोली का बिन्दु लगाते हैं । इसे वे गौरीशंकर का स्वरूप मानते हैं ।*
*गौरीशंकर के उपासकों में भी कोई पहले बिन्दु लगाकर फिर त्रिपुण्ड लगाते हैं तो कुछ पहले त्रिपुण्ड लगाकर फिर बिन्दु लगाते हैं ।*
*जो केवल भगवती के उपासक हैं वे केवल लाल बिन्दु का ही तिलक लगाते हैं ।*
*शैव परम्परा में अघोरी, कापालिक, तान्त्रिक जैसे पंथ बदल जाने पर तिलक लगाने का तरीका भी बदल जाता है ।*

                   आपका अपना
             "पं.खेमेश्वर पुरी गोस्वामी"
            धार्मिक प्रवक्ता-ओज कवि
             डिंडोरी-मुंगेली-छत्तीसगढ़
       8120032834/7828657057

मजदूर दिवस पर कुछ यूं ही

मजदूर दिवस पर कुछ यूं ही
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रात-दिन खटते रहे जो काम में।
गिन रही दुनियां उन्हें नाकाम में।

कौड़ियों के भाव बिकता श्रम रहा,
मिल रही है भुखमरी ईनाम में।

माँग कर अपनें हकों को भीख में,
डूब जाते हैं गमों की शाम में।

सामने तो कुछ नहीं कहते कभी-
भेजते संदेश लिख पैगाम में।

पीढ़ियों से सह रहे इस रोग को-
है नहीं उपचार अब आवाम में।

कर रहे मेहनत सभी जी जान से-
पर नहीं रहते कभी आराम में।

बस निराशा घेरती दम तौड़ती-
डूब जाते है सभी सब जाम में।

कोशिशों से दर्द भी मिटता नहीं-
कुछ असर होता नहीं है बाम में।

राम के ही नाम का है आसरा-
मिट रहे संकट सभी के नाम से।

         ©"पं.खेमेश्वर पुरी गोस्वामी"®
            धार्मिक प्रवक्ता-ओज कवि
             डिंडोरी-मुंगेली-छत्तीसगढ़
       8120032834/7828657057

न्यू २

प्रति मां. मुख्यमंत्री श्री भूपेश बघेल जी रायपुर , छत्तीसगढ़ शासन विषय : आर्थिक सहायता,आवास, तथा आवासीय पट्टा दिलाने बाबत् आदरणीय महोदय,   ...