मजदूर दिवस पर कुछ यूं ही
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रात-दिन खटते रहे जो काम में।
गिन रही दुनियां उन्हें नाकाम में।
कौड़ियों के भाव बिकता श्रम रहा,
मिल रही है भुखमरी ईनाम में।
माँग कर अपनें हकों को भीख में,
डूब जाते हैं गमों की शाम में।
सामने तो कुछ नहीं कहते कभी-
भेजते संदेश लिख पैगाम में।
पीढ़ियों से सह रहे इस रोग को-
है नहीं उपचार अब आवाम में।
कर रहे मेहनत सभी जी जान से-
पर नहीं रहते कभी आराम में।
बस निराशा घेरती दम तौड़ती-
डूब जाते है सभी सब जाम में।
कोशिशों से दर्द भी मिटता नहीं-
कुछ असर होता नहीं है बाम में।
राम के ही नाम का है आसरा-
मिट रहे संकट सभी के नाम से।
         ©"पं.खेमेश्वर पुरी गोस्वामी"®
            धार्मिक प्रवक्ता-ओज कवि
             डिंडोरी-मुंगेली-छत्तीसगढ़
       8120032834/7828657057
 
 
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