हो के मजबूर दर ब दर आया, 
मेरे हिस्से में बस सफर आया, 
आँख  में  ख्वाब थे उजालों के, 
गाँव को छोड़ जब शहर आया,
जीस्त की बे लिबास आँखों में, 
भूख का ख़ौफ फिर उतर आया,
रूह ने जब भी रोशनी माँगी, 
दूर  जुगनू  कोई नजर आया,
पाँव कुछ और हो गए जिद्दी, 
रास्ता जब भी पुरख़तर आया।
          ©"पं.खेमेश्वर पुरी गोस्वामी"®
            धार्मिक प्रवक्ता-ओज कवि
             डिंडोरी-मुंगेली-छत्तीसगढ़
       8120032834/7828657057
 
 
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