रुक जाओ नारी तुम कभी सीता न बन पाओगी
इन पाषाणों के बीच कुछ साबित न कर पाओगी
खुद मैला करते दामन मन भी घायल करते तेरा
धरती के खुदाओं से न जीत कभी तुम पाओगी
जन्म लिया है नारी से नारी ही पालनहार बनी
कलुषित ऐसे नर के लिए निर्मल मनकैसे लाओगी
अग्निपरीक्षा देकर भी धरती माँ के अंक समाती है
घायल तन मन का बोझ लिए लौट कभी न पाओगी
चाहे त्रेता की सीता हो या हो कलयुग की निर्भया
घृणित आचरण इनका सर अपने लेकर जाओगी
रुक जाओ नारी तुम कभी सीता न बन पाओगी
इन पाषाणों के बीच कुछ साबित न कर पाओगी
©"पं.खेमेश्वर पुरी गोस्वामी"®
धार्मिक प्रवक्ता-ओज कवि
डिंडोरी-मुंगेली-छत्तीसगढ़
8120032834/7828657057
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