Wednesday, August 28, 2019

रूद्राभिषेक का औचित्य

*रूद्राभिषेक का औचित्य*

आजकल  संदेश आते रहे हैं कि महादेव को दूध की कुछ बूंदें चढाकर शेष निर्धन बच्चों को दे दिया जाए। सुनने में बहुत अच्छा लगता है लेकिन हर भारतीय त्योहार पर ऐसे संदेश पढ़कर थोड़ा दुख होता है। दीवाली पर पटाखे ना चलाएं, होली में रंग और गुलाल ना खरीदें, सावन में दूध ना चढ़ाएं, उस पैसे से गरीबों की मदद करें। लेकिन त्योहारों के पैसे से ही क्यों? ये एक साजिश है हमें अपने रीति-रिवाजों से विमुख करने की।

हम सब प्रतिदिन दूध पीते हैं तब तो हमें कभी ये ख्याल नहीं आया कि लाखों गरीब बच्चे दूध के बिना जी रहे हैं। अगर दान करना ही है तो अपने हिस्से के दूध का दान करिए और वर्ष भर करिए। कौन मना कर रहा है। शंकर जी के हिस्से का दूध ही क्यों दान करना?

अपने करीब उपलब्ध किसी आयुर्वेदाचार्य के पास जाकर पूछिये कि वर्ष के जिन दिनों में शिव जी को दूध का अभिषेक किया जाता है उन दिनों में स्वास्थ्य की दृष्टि से दूध का न्यूनतम सेवन किया जाए जिससे मौसमानुसार शरीर में वात और कफ न बढे जिससे हम निरोगी रहे ऐसा आयुर्वेद कहता है कि नहीं।

आप अपने व्यसन का दान कीजिये दिन भर में जो आप सिगरेट, पान-मसाला, शराब, मांस अथवा किसी और क्रिया में जो पैसे खर्च करते हैं उसको बंद कर के गरीब को दान कीजिये | इससे आपको दान के लाभ के साथ साथ स्वास्थ्य का भी लाभ होगा।

महादेव ने जगत कल्याण हेतु विषपान किया था इसलिए उनका अभिषेक दूध से किया जाता है। जिन महानुभावों के मन में अतिशय दया उत्पन्न हो रही है उनसे मेरा अनुरोध है कि एक महीना ही क्यों, वर्ष भर गरीब बच्चों को दूध का दान दें। घर में जितना भी दूध आता हो उसमें से ज्यादा नहीं सिर्फ आधा लीटर ही किसी निर्धन परिवार को दें। महादेव को जो 50 ग्राम दूध चढ़ाते हैं वो उन्हें ही चढ़ाएं।

शिवलिंग की वैज्ञानिकता ....

भारत का रेडियोएक्टिविटी मैप उठा लें, तब हैरान हो जायेगें ! भारत सरकार के न्यूक्लिअर रिएक्टर के अलावा सभी ज्योतिर्लिंगों के स्थानों पर सबसे ज्यादा रेडिएशन पाया जाता है।

शिवलिंग और कुछ नहीं बल्कि न्यूक्लियर रिएक्टर्स ही हैं, तभी तो उन पर जल चढ़ाया जाता है ताकि वो शांत रहे।

महादेव के सभी प्रिय पदार्थ जैसे कि बिल्व पत्र, आक, आकमद, धतूरा, गुड़हल, आदि सभी न्यूक्लिअर एनर्जी सोखने वाले है।

  क्यूंकि शिवलिंग पर चढ़ा पानी भी रिएक्टिव हो जाता है इसीलिए तो जल निकासी नलिका को लांघा नहीं जाता।

  भाभा एटॉमिक रिएक्टर का डिज़ाइन भी शिवलिंग की तरह ही है।

शिवलिंग पर चढ़ाया हुआ जल नदी के बहते हुए जल के साथ मिलकर औषधि का रूप ले लेता है।

  तभी तो हमारे पूर्वज हम लोगों से कहते थे कि महादेव शिवशंकर अगर नाराज हो जाएंगे तो प्रलय आ जाएगी।

  ध्यान दें, कि हमारी परम्पराओं के पीछे कितना गहन विज्ञान छिपा हुआ है।

  जिस संस्कृति की कोख से हमने जन्म लिया है, वो तो चिर सनातन है। विज्ञान को परम्पराओं का जामा इसलिए पहनाया गया है ताकि वो प्रचलन बन जाए और हम भारतवासी सदा वैज्ञानिक जीवन जीते रहें।..

अपना व्यवहार बदलो अपने धर्म को बदलने का प्रयास मत करो।

                         प्रस्तुति
             "पं.खेमेश्वर पुरी गोस्वामी"
            धार्मिक प्रवक्ता-ओज कवि
          प्रदेश संगठन मंत्री एवं प्रवक्ता
   अंतरराष्ट्रीय युवा हिंदू वाहिनी छत्तीसगढ़
      ८१२००३२८३४-/-७८२८६५७०५७

Tuesday, August 27, 2019

सनातन हिन्दू धर्म के पांच पवित्र सरोवर


हिन्दुओं के पवित्र पांच सरोवर, जानिए कौन से हैं????????
 
'सरोवर' का अर्थ तालाब, कुंड या ताल नहीं होता। सरोवर को आप झील कह सकते हैं। भारत में सैकड़ों झीलें हैं लेकिन उनमें से सिर्फ 5 का ही धार्मिक महत्व है, बाकी में से कुछ का आध्यात्मिक और बाकी का पर्यटनीय महत्व है। श्रीमद् भागवत और पुराणों में प्राचीनकालीन 5 पवित्र ऐतिहासिक सरोवरों का वर्णन मिलता है।

जिस तरह 4 पवित्र वटवृक्ष (प्रयाग में अक्षयवट, मथुरा-वृंदावन में वंशीवट, गया में गयावट-बौद्धवट और उज्जैन में सिद्धवट हैं) हैं, जिस तरह 7 पुरी (काशी, मथुरा, अयोध्या, द्वारका, माया, कांची और अवंति (उज्जैन)) हैं, जिस तरह पंच तीर्थ (पुष्कर, कुरुक्षेत्र, गया, हरिद्वार एवं प्रयाग) हैं और जिस तरह अष्ट वृक्ष (पीपल, बढ़, नीम, इमली, कैथ, बेल, आंवला और आम) हैं, जिस तरह 9 पवित्र नदियां (गंगा, यमुना, सरस्वती, सिंधु, कावेरी, कृष्णा, नर्मदा, ब्रह्मपु‍त्र, विस्ता) हैं उसी तरह 5 पवित्र सरोवर भी हैं।

हिन्दुओं ने अपने पवित्र स्थानों को परंपरा के नाम पर अपवित्र कर रखा है। उन्होंने इन पवित्र स्थानों को मनोरंजन और पर्यटन का केंद्र तो बना ही रखा है, साथ ही वे उन स्थलों को गंदा करने के सबसे बड़े अपराधी हैं। गंगा किनारे अपने मृतकों का दाह-संस्कार करना किसी शास्त्र में नहीं लिखा है। गंगा में पूजा का सामान फेंकना और जले हुए दीपक छोड़ना किसी भी हिन्दू शास्त्र में नहीं लिखा है। फिर भी ऐसा कोई हिन्दू करता है तो वह गंगा और सरोवरों का अपराधी और पापी है। खैर... आओ जानते हैं हम उन 5 सरोवरों के बारे में जिसमें से एक को छोड़कर बाकी सभी की हिन्दुओं ने मिलकर हत्या कर दी है। 

पहला सरोवर कैलाश मानसरोवर : - बस यही एक मानसरोवर है, जो अपनी पवित्र अवस्था में आज भी मौजूद है, क्योंकि यह चीन के अधीन है। कैलाश मानसरोवर को सरोवरों में प्रथम पायदान पर रखा जाता है। इसे देवताओं की झील कहा जाता है। यह हिमालय के केंद्र में है। इसे शिव का धाम माना जाता है। मानसरोवर के पास स्थित कैलाश पर्वत पर भगवान शिव साक्षात विराजमान हैं। यह हिन्दुओं के लिए प्रमुख तीर्थस्थल है। संस्कृत शब्द 'मानसरोवर', मानस तथा सरोवर को मिलकर बना है जिसका शाब्दिक अर्थ होता है- 'मन का सरोवर'। हजारों रहस्यों से भरे इस सरोवर के बारे में जितना कहा जाए, कम होगा।

हिमालय क्षेत्र में ऐसी कई प्राकृतिक झीलें हैं उनमें मानसरोवर सबसे बड़ा और केंद्र में है। लद्दाख की एक निर्मल झील।

मानसरोवर लगभग 320 वर्ग किलोमीटर के क्षेत्र में फैला हुआ है। इसके उत्तर में कैलाश पर्वत तथा पश्चिम में राक्षसताल है। इसके दक्षिण में गुरला पर्वतमाला और गुरला शिखर है। यह समुद्र तल से लगभग 4,556 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है। मानसरोवर टेथिस सागर का अवशेष है। जो कभी एक महासागर हुआ करता था, वह आज 14,900 फुट ऊंचे स्थान पर स्थित है। इन हजारों सालों के दौरान इसका पानी मीठा हो गया है, लेकिन जो कुछ चीजें यहां पाई जाती हैं, उनसे जाहिर है कि अब भी इसमें महासागर वाले गुण हैं।

कहते हैं कि इस सरोवर में ही माता पार्वती स्नान करती थीं। यहां देवी सती के शरीर का दायां हाथ गिरा था इसलिए यहां एक पाषाण शिला को उसका रूप मानकर पूजा जाता है। यहां शक्तिपीठ है। यह स्थान पूर्व में भगवान विष्णु का स्थान भी था। हिन्दू पुराणों के अनुसार यह सरोवर सर्वप्रथम भगवान ब्रह्मा के मन में उत्पन्न हुआ था। बौद्ध धर्म में भी इसे पवित्र माना गया है। ऐसा कहा जाता है कि रानी माया को भगवान बुद्ध की पहचान यहीं हुई थी। जैन धर्म तथा तिब्बत के स्थानीय बोनपा लोग भी इसे पवित्र मानते हैं।

दूसरा सरोवर नारायण सरोवर : - नारायण सरोवर का संबंध भगवान विष्णु से है। 'नारायण सरोवर' का अर्थ है- 'विष्णु का सरोवर'। यहां सिंधु नदी का सागर से संगम होता है। इसी संगम के तट पर पवित्र नारायण सरोवर है। पवित्र नारायण सरोवर के तट पर भगवान आदिनारायण का प्राचीन और भव्य मंदिर है। नारायण सरोवर से 4 किमी दूर कोटेश्वर शिव मंदिर है।

इस पवित्र नारायण सरोवर की चर्चा श्रीमद् भागवत में मिलती है। इस पवित्र सरोवर में प्राचीनकालीन अनेक ऋषियों के आने के प्रसंग मिलते हैं। आद्य शंकराचार्य भी यहां आए थे। चीनी यात्री ह्वेनसांग ने भी इस सरोवर की चर्चा अपनी पुस्तक 'सीयूकी' में की है।

नारायण सरोवर में कार्तिक पूर्णिमा से 3 दिन का भव्य मेला आयोजित होता है। इसमें उत्तर भारत के सभी संप्रदायों के साधु-संन्यासी और अन्य भक्त शामिल होते हैं। नारायण सरोवर में श्रद्धालु अपने पितरों का श्राद्ध भी करते हैं।

गुजरात के कच्छ जिले के लखपत तहसील में स्थित है नारायण सरोवर। नारायण सरोवर पहुंचने के लिए सबसे पहले भुज पहुंचें। दिल्ली, मुंबई और अहमदाबाद से भुज तक रेलमार्ग से आ सकते हैं। प्राचीन कोटेश्वर मंदिर यहां से 4 किमी की दूरी पर है।

तीसरा सरोवर पुष्कर सरोवर : - राजस्थान में अजमेर शहर से 14 किलोमीटर दूर पुष्कर झील है। इस झील का संबंध भगवान ब्रह्मा से है। यहां ब्रह्माजी का एकमात्र मंदिर बना है। पुराणों में इसके बारे में विस्तार से उल्लेख मिलता है। यह कई प्राचीन ऋषियों की तपोभूमि भी रहा है। यहां विश्व का प्रसिद्ध पुष्कर मेला लगता है, जहां देश-विदेश से लोग आते हैं। पुष्कर की गणना पंच तीर्थों में भी की गई है।

पुष्कर के उद्भव का वर्णन पद्मपुराण में मिलता है। कहा जाता है कि ब्रह्मा ने यहां आकर यज्ञ किया था। पुष्कर का उल्लेख रामायण में भी हुआ है। विश्वामित्र के यहां तप करने की बात कही गई है। अप्सरा व मेनका यहां के पावन जल में स्नान के लिए आई थीं। सांची स्तूप दानलेखों में इसका ‍वर्णन मिलता है। पांडुलेन गुफा के लेख में, जो ई. सन् 125 का माना जाता है, उषमदवत्त का नाम आता है। यह विख्यात राजा नहपाण का दामाद था और इसने पुष्कर आकर 3,000 गायों एवं एक गांव का दान किया था। महाभारत के वन पर्व के अनुसार योगीराज श्रीकृष्ण ने पुष्कर में दीर्घकाल तक तपस्या की थी। सुभद्रा के अपहरण के बाद अर्जुन ने पुष्कर में विश्राम किया था। मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम ने भी अपने पिता दशरथ का श्राद्ध पुष्कर में किया था। जैन धर्म की मातेश्वरी पद्मावती का पद्मावतीपुरम यहां जमींदोज हो चुका है जिसके अवशेष आज भी विद्यमान हैं।

पुष्कर सरोवर 3 हैं- ज्येष्ठ (प्रधान) पुष्कर, मध्य (बूढ़ा) पुष्कर और कनिष्ठ पुष्कर। ज्येष्ठ पुष्कर के देवता ब्रह्माजी, मध्य पुष्कर के देवता भगवान विष्णु और कनिष्ठ पुष्कर के देवता रुद्र हैं।

ब्रह्माजी ने पुष्कर में कार्तिक शुक्ल एकादशी से पूर्णमासी तक यज्ञ किया था जिसकी स्मृति में अनादिकाल से यहां कार्तिक मेला लगता आ रहा है। पुष्कर के मुख्य बाजार के अंतिम छोर पर ब्रह्माजी का मंदिर बना है। आद्य शंकराचार्य ने संवत्‌ 713 में ब्रह्मा की मूर्ति की स्थापना की थी। मंदिर का वर्तमान स्वरूप गोकलचंद पारेख ने 1809 ई. में बनवाया था।

तीर्थराज पुष्कर को सब तीर्थों का गुरु कहा जाता है। इसे धर्मशास्त्रों में 5 तीर्थों में सर्वाधिक पवित्र माना गया है। पुष्कर, कुरुक्षेत्र, गया, हरिद्वार और प्रयाग को पंचतीर्थ कहा गया है। अर्द्धचंद्राकार आकृति में बनी पवित्र एवं पौराणिक पुष्कर झील धार्मिक और आध्यात्मिक आकर्षण का केंद्र रही है।

झील की उत्पत्ति के बारे में किंवदंती है कि ब्रह्माजी के हाथ से यहीं पर कमल पुष्प गिरने से जल प्रस्फुटित हुआ जिससे इस झील का उद्भव हुआ। यह मान्यता भी है कि इस झील में डुबकी लगाने से पापों का नाश होता है। झील के चारों ओर 52 घाट व अनेक मंदिर बने हैं। इनमें गऊघाट, वराहघाट, ब्रह्मघाट, जयपुर घाट प्रमुख हैं। जयपुर घाट से सूर्यास्त का नजारा अत्यंत अद्भुत लगता है।

चौथा सरोवर पंपा सरोवर : - मैसूर के पास स्थित पंपा सरोवर एक ऐतिहासिक स्थल है। हंपी के निकट बसे हुए ग्राम अनेगुंदी को रामायणकालीन किष्किंधा माना जाता है। तुंगभद्रा नदी को पार करने पर अनेगुंदी जाते समय मुख्य मार्ग से कुछ हटकर बाईं ओर पश्चिम दिशा में पंपा सरोवर स्थित है।

पंपा सरोवर के निकट पश्चिम में पर्वत के ऊपर कई जीर्ण-शीर्ण मंदिर दिखाई पड़ते हैं। यहीं पर एक पर्वत है, जहां एक गुफा है जिससे शबरी की गुफा कहा जाता है। माना जाता है कि वास्तव में रामायण में वर्णित विशाल पंपा सरोवर यही है, जो आजकल हास्पेट नामक कस्बे में स्थित है।

कर्नाटक में बैल्‍लारी जिले के हास्‍पेट से हम्‍पी जाकर जब आप तुंगभद्रा नदी पार करते हैं तो हनुमनहल्‍ली गांव की ओर जाते हुए आप पाते हैं शबरी की गुफा, पंपा सरोवर और वह स्‍थान जहां शबरी राम को बेर खिला रही है। इसी के निकट शबरी के गुरु मतंग ऋषि के नाम पर प्रसिद्ध 'मतंगवन' था।

पांचवां सरोवर बिंदु सरोवर : - बिंदु सरोवर 5 पवित्र सरोवरों में से एक है, जो कपिलजी के पिता कर्मद ऋषि का आश्रम था और इस स्थान पर कर्मद ऋषि ने 10,000 वर्ष तक तप किया था। कपिलजी का आश्रम सरस्वती नदी के तट पर बिंदु सरोवर पर था, जो द्वापर का तीर्थ तो था ही आज भी तीर्थ है। कपिल मुनि सांख्य दर्शन के प्रणेता और भगवान विष्णु के अवतार हैं। 

अहमदाबाद (गुजरात) से 130 किलोमीटर उत्तर में अवस्थित ऐतिहासिक सिद्धपुर में स्थित है विन्दु सरोवर। इस स्थल का वर्णन ऋग्वेद की ऋचाओं में मिलता है जिसमें इसे सरस्वती और गंगा के मध्य अवस्थित बताया गया है। संभवतः सरस्वती और गंगा की अन्य छोटी धाराएं पश्चिम की ओर निकल गई होंगी। इस सरोवर का उल्लेख रामायण और महाभारत में मिलता है।

महान ऋषि परशुराम ने भी अपनी माता का श्राद्ध यहां सिद्धपुर में बिंदु सरोवर के तट पर किया था। वर्तमान गुजरात सरकार ने इस बिंदु सरोवर का संपूर्ण पुनरुद्धार कर दिया है जिसके लिए वह बधाई की पात्र है। इस स्थल को गया की तरह दर्जा प्राप्त है। इसे मातृ मोक्ष स्थल भी कहा जाता है।

अन्य सरोवर : - इसके अलावा अमृत सरोवर (कर्नाटक के नंदी हिल्स पर), कपिल सरोवर (राजस्थान- बीकानेर), कुसुम सरोवर (मथुरा- गोवर्धन), नल सरोवर (गुजरात- अहमदाबाद अभयारण्य में), लोणास सरोवर (महाराष्‍ट्र- बुलढाणा जिला), कृष्ण सरोवर, राम सरोवर, शुद्ध सरोवर आदि अनेक सरोवर हैं जिनका पुराणों में ‍उल्लेख मिलता है।

अमृत सरोवर : कर्नाटक के नंदी हिल्स पर स्थित पर्यटकों को नंदी हिल्‍स की सैर के दौरान अमृत सरोवर की यात्रा की सलाह दी जाती है जिसका विकास बारहमासी झरने से हुआ है। इसी कारण इसे 'अमृत का तालाब' या 'अमृत की झील' भी कहा जाता है। अमृत सरोवर एक खूबसूरत जलस्रोत है, जो इस इलाके का सबसे सुंदर स्‍थल है।

अमृत सरोवर सालभर पानी से भरा रहता है। यह स्‍थान रात के दौरान पानी से भरा और चांद की रोशनी में बेहद सुंदर दिखता है। पर्यटक, बेंगलुरु के रास्‍ते से अमृत सरोवर तक आसानी से पहुंच सकते हैं, जो 58 किमी की दूरी पर स्थित है। योगी नंदीदेश्‍वर मंदिर, चबूतरा और श्री उर्ग नरसिम्‍हा मंदिर यहां के कुछ प्रमुख आकर्षणों में से एक है, जो अमृत सरोवर के पास स्थित हैं।

लोणार सरोवर : महाराष्ट्र के बुलढाणा जिले में लोणार सरोवर विश्वप्रसिद्ध है। माना जाता है कि यहां पर लवणासुर का वध किया गया था जिसके कारण इसका नाम लवणासुर सरोवर पड़ा। बाद में यह बिगड़कर 'लोणार' हो गया। लोणार गांव में ही यह सरोवर स्थित है। इस सरोवर को यूनेस्को ने अपनी सूची में शामिल कर रखा है।

                         प्रस्तुति
             "पं.खेमेश्वर पुरी गोस्वामी"
            धार्मिक प्रवक्ता-ओज कवि
          प्रदेश संगठन मंत्री एवं प्रवक्ता
   अंतरराष्ट्रीय युवा हिंदू वाहिनी छत्तीसगढ़
      ८१२००३२८३४-/-७८२८६५७०५७

हिन्दू शब्द की उत्पत्ति कैसे हुई


*हिन्दू शब्द की उत्पत्ति कैसे हुई!?*

कुछ अज्ञानी लोग कहते हैं की हिन्दू शब्द फारसियों की देन है *.*.क्योंकि इसका उल्लेख वेद पुराणों में नहीं है।

*आपके सन्मुख हजारों वर्ष पूर्व लिखे गये सनातन शास्त्रों में लिखित चंद श्लोक (अर्थ सहित) प्रमाणिकता सिद्ध करती है कि हिन्दू शब्द हमारे धर्म ग्रंथों में भी है ..*.

1- ऋग्वेद के वृहस्पति अग्यम में हिन्दू शब्द का उल्लेख इस प्रकार आया है *...*..

*हिमलयं समारभ्य यावत इन्दुसरोवरं।*
*तं देवनिर्मितं देशं हिन्दुस्थानं प्रचक्षते।।*

(अर्थात हिमालय से इंदु सरोवर तक देव निर्मित देश को हिन्दूस्थान कहते हैं)

2- सिर्फ वेद ही नहीं *..*.बल्कि मेरूतंत्र (शैव ग्रन्थ) में हिन्दू शब्द का उल्लेख इस प्रकार किया गया है *...*..

*हीनं च दूष्यतेव् हिन्दुरित्युच्च ते प्रिये।*

(अर्थात *..*.जो अज्ञानता और हीनता का त्याग करें उसे हिन्दू कहते हैं)

3- और इससे मिलता जुलता लगभग यही श्लोक कल्पद्रुम में भी दोहराया गया है *...*..

*हीनं दुष्यति इति हिन्दू।*

(अर्थात जो अज्ञानता और हीनता का त्याग करें उसे हिन्दू कहते है)

4- पारिजात हरण में हिन्दू को कुछ इस प्रकार कहा गया है *...*..

*हिनस्ति तपसा पापां दैहिकां दुष्टं।*
*हेतिभिः श्त्रुवर्गं च स हिन्दुर्भिधियते।।*

*(अर्थात जो अपने तप से शत्रुओं का दुष्टों का और पाप का नाश कर देता है.*. *वही हिन्दू है)*

5- माधव दिग्विजय में भी हिन्दू शब्द को कुछ इस प्रकार उल्लेखित किया गया है *...*..

*ओंकारमन्त्रमूलाढ्य पुनर्जन्म द्रढ़ाश्य:।*
*गौभक्तों भारतगरुर्हिन्दुर्हिंसन दूषकः ।।*

*(अर्थात.*. *वो जो ओमकार को ईश्वरीय धुन मानें, कर्मों पर विश्वास करें, सदैव गौपालक रहें तथा बुराईयों को दूर रखें, वो हिन्दू है)*

6- केवल इतना ही नहीं हमारे ऋगवेद (८:२:४१) में हिन्दू नाम के बहुत ही पराक्रमी और दानी राजा का वर्णन मिलता है *..*.जिन्होंने 46000 गौमाता दान में दी थी *.*.और ऋग्वेद मंडल में भी उनका वर्णन मिलता है।

*7- ऋग वेद में एक ऋषि का उल्लेख मिलता है जिनका नाम सैन्धव था.*. *जो मध्यकाल में आगे चलकर "हैन्दव/हिन्दव" नाम से प्रचलित हुए, जिसका बाद में अपभ्रंश होकर हिन्दू बन गया ...!!*

8- इसके अतिरिक्त भी कई स्थानों में हिन्दू शब्द उल्लेखित है *...*..

इसलिये गर्व से कहो हाँ आप मैं हिन्दू थे
हिन्दू हैं और सदैव सनातनी हिन्दू ही रहेंगे

            *धर्मस्य मूलम् ज्ञानम्*
🕉🐚⚔🚩🌞🇮🇳⚔🌷🙏🏻

                         प्रस्तुति
             "पं.खेमेश्वर पुरी गोस्वामी"
            धार्मिक प्रवक्ता-ओज कवि
          प्रदेश संगठन मंत्री एवं प्रवक्ता
   अंतरराष्ट्रीय युवा हिंदू वाहिनी छत्तीसगढ़
      ८१२००३२८३४-/-७८२८६५७०५७

गुरूत्वाकर्षण की खोज, प्रमाण सहित

गुरुत्वाकर्षण की खोज 'महर्षि भाष्कराचार्य' द्वारा प्रमाण सहित

  हम सभी विद्यालयों में पढ़ते हैं की न्यूटन ने गुरुत्वाकर्षण की खोज की थी, पर आप को ये जान कर कैसा लगेगा कि गुरुत्वाकर्षण का नियम सर्वप्रथम न्यूटन ने नहीं बल्कि एक भारतीय महर्षि ने खोजा था? इसीलिए हमें भारतीय होने पर गर्व है।

जिस समय न्यूटन के पूर्वज जंगली लोग थे, उस समय महर्षि भाष्कराचार्य ने पृथ्वी की गुरुत्वाकर्षण शक्ति पर एक पूरा ग्रन्थ रच डाला था किन्तु आज हमें कितना बड़ा झूठ पढना पढता है कि गुरुत्वाकर्षण शक्ति कि खोज न्यूटन ने की, ये हमारे लिए शर्म की बात है।

भास्कराचार्य सिद्धान्त की बात कहते हैं कि वस्तुओं की शक्ति बड़ी विचित्र है।

"मरुच्लो भूरचला स्वभावतो यतो,विचित्रावतवस्तु शक्त्य:।।"
सिद्धांतशिरोमणिगोलाध्याय - भुवनकोश आगे कहते हैं-
"आकृष्टिशक्तिश्च मही तया यत् खस्थं,गुरुस्वाभिमुखं स्वशक्तत्या।
आकृष्यते तत्पततीव भाति,समेसमन्तात् क्व पतत्वियं खे।।" -
सिद्धांतशिरोमणिगोलाध्याय - भुवनकोश

अर्थात् पृथ्वी में आकर्षण शक्ति है। पृथ्वी अपनी आकर्षण शक्ति से भारी पदार्थों को अपनी ओर खींचती है और आकर्षण के कारण वह जमीन पर गिरते हैं। पर जब आकाश में समान ताकत चारों ओर से लगे, तो कोई कैसे गिरे? अर्थात् आकाश में ग्रह निरावलम्ब रहते हैं क्योंकि विविध ग्रहों की गुरुत्व शक्तियाँ संतुलन बनाए रखती हैं।

# उन्होंने गुरुत्वाकर्षण की खोज न्यूटन से 500 वर्ष पूर्व ही कर दी थी। #

जब भास्कराचार्य की अवस्था मात्र 32 वर्ष की थी तो उन्होंने अपने प्रथम ग्रन्थ ‘सिद्धान्त शिरोमणि’ की रचना की। उन्होंने इस ग्रन्थ की रचना चार खंडों में की: 'पारी गणित', बीज गणित', 'गणिताध्याय' तथा 'गोलाध्याय'। पारी गणित नामक खंड में संख्या प्रणाली, शून्य, भिन्न, त्रैशशिक तथा क्षेत्रमिति इत्यादि विषयों पर प्रकाश डाला गया है। जबकि बीज गणित नामक खंड में धनात्मक तथा ऋणात्मक राशियों की चर्चा की गई है तथा इसमें बताया गया है कि धनात्मक तथा ऋणात्मक दोनों प्रकार की संख्याओं के वर्ग का मान धनात्मक ही होता है।

भास्कराचार्य द्वारा एक अन्य प्रमुख ग्रन्थ ‘लीलावती’ की रचना की गई। इस ग्रन्थ में गणित और खगोल विज्ञान सम्बन्धी विषयों पर प्रकाश डाला गया था। सन् 1163 ई. में उन्होंने ‘करण कुतूहल’ नामक ग्रन्थ की रचना की। इस ग्रन्थ में भी मुख्यतः खगोल विज्ञान सम्बन्धी विषयों की चर्चा की गई है। इस ग्रन्थ में बताया गया है कि जब चन्द्रमा सूर्य को ढक लेता है तो सूर्य ग्रहण तथा जब पृथ्वी की छाया चन्द्रमा को ढक लेती है तो चन्द्र ग्रहण होता है। भास्कराचार्य द्वारा लिखित ग्रन्थों का अनुवाद अनेक विदेशी भाषाओं में किया जा चुका है। ऐसे ही अगर यह कहा जाय की विज्ञान के सारे आधारभूत अविष्कार भारत भूमि पर हमारे विशेषज्ञ ऋषि मुनियों द्वारा हुए तो इसमें कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी ! सबके प्रमाण उपलब्ध हैं। आवश्यकता स्वदेशी भाषा में विज्ञान की शिक्षा दिए जाने की है।

अगर आप अपनी बात को अपनी भाषा हिंदी में लिखें तो निश्चय ही आपका प्रभाव और भी बढ़ जायेगा। हिंदी हमारे देश भारत वर्ष की भाषा है .....प्रयोग कीजिये ...अच्छा लगता है। इसके प्रयोग से हमारा मान सम्मान और भी बढ़ जाता है।

आपको यदि सही लगे तो शेयर करें अपने अन्य मित्रों को भी

जय सनातन

                          प्रस्तुति
             "पं.खेमेश्वर पुरी गोस्वामी"
            धार्मिक प्रवक्ता-ओज कवि
          प्रदेश संगठन मंत्री एवं प्रवक्ता
   अंतरराष्ट्रीय युवा हिंदू वाहिनी छत्तीसगढ़
      ८१२००३२८३४-/-७८२८६५७०५७

न्यू २

प्रति मां. मुख्यमंत्री श्री भूपेश बघेल जी रायपुर , छत्तीसगढ़ शासन विषय : आर्थिक सहायता,आवास, तथा आवासीय पट्टा दिलाने बाबत् आदरणीय महोदय,   ...