फर्जी बाबाओं पर एक व्यंगात्मक प्रयास
गुरु बन भक्त के नाश करत इन फिरथें....!
रचना:- पं.खेमेस्वर पुरी गोस्वामी
"छत्तीसगढ़िया राजा"
मुंगेली-छत्तीसगढ़ 8120032834/7828657057
धरम के आड़ म अधरमी पनपत जावत हे।
मंदिर में बइठके पुजारी बनत जावत हे।
बाबा के नाम म सभा इन बुलावत हें।
राम नाम ले काम-वासना म आवत हें॥
प्रभु के अस्तित्व ल कलंकित बनावत हें।
धरम के नाम म गलतविचार बढ़ावत हें।
बढत हे बाबा मन के इंहा गलत विचार,
वासना के तो दुकान इहां सजावत हे॥
वेद-पुराण के कथा इंहला कइसे लगथे।
काम भोगी बन घलो राम नाम कइसे भजथें।
गीता उपदेश बचन ल आगू म रखके
मदिरापान करइया ईश्वर ल कइसे रमथें॥
ज्ञान-दान,धरम-करम कर सबो ले कहिथें।
ढोंगी बाबा एें भक्त संग सबो नांचथे।
अइसन बाबा के कहानी खतम होही कब
गुरु बन भक्त के नाश करत इन फिरथें॥
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