गे जमाना अब गुलामी के, मोला स्वतंत्रता अब चाही।
भूल जव बात निलामी के, मोला अखंडता अब चाही।
जाति पाति के भरम ला संगी,जेन हर भुला अब पाही।
धरम करम के बाढ़त हे जंगी,ओला ऐहीच मन मिटाही।
ओ अंग्रेजिहा मन चल दिस,तो अब नेता मन अगूवाहीं।
हिंदी धर्म ला छोड़ के भइया,अब भाषा के राज चलाहीं।
भूलागेव का ओ दिन,सोनाखान में मुँह के खाए रहिस।
बहतराई राजा ह बैरिस्टर,देवाल मा चिपकाए रहिस।
आज ओही बेरा आगे हे,पश्चिमी सभ्यता भगाना हे।
हमर छत्तीसगढ़ में आगू, छत्तीसगढ़ी ल गोठियाना हे।
जब कोनो सरकारी आफिस जाथन,गँवईहा कहाथन।
हमरे घर के भात खवाके,उल्टा अंग्रेजिहा थपरा खाथन।
जेन छत्तीसगढ़ के अफसर,हमर पीरा नई समझ पाही।
हमन ल तो भइया अंग्रेजिहा सही,हितवा अब नि चाही।
गर देश स्वतंत्र होगे हे,अंग्रेजी ले छुट्टी बढ़िया चाही।
पीरा हमर समझे वो,छत्तीसगढ़ मा छत्तीसगढ़िया चाही।
✍पं. खेमेश्वर पुरी गोस्वामी✍
"छत्तीसगढ़िया राजा"
मुंगेली - छत्तीसगढ़
८१२००३२८३४ - ७८२८६५७०५७
khemeshwarpurigoswami@gmail.com
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