भूल कर तुझ को भरा शहर भी तन्हा देखूँ...
याद आ जाए तो ख़ुद अपना तमाशा देखूँ...
मुस्कुराती हुई इन आँखों की शादाबी में...
मैं तेरी रूह का तपता हुआ सहरा देखूँ...
इतनी यादें हैं कि जमने नहीं पाती है नज़र...
बंद आँखों के दरीचों से मैं क्या क्या देखूँ...
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