ये किसका तसव्वुर है ,
ये किसका फ़साना है ।
जो अश्क है आँखों में ,
तस्वीह का दाना है ।
जो उनपे गुजरती है ,
किसने उसे जाना है ।
अपनी ही मुसीबत है ,
अपना ही फसाना है ।
आँखों में नमी -सी है ,
चुप -चुप से वो बैठे है ।
नाजुक सी निगाहों में ,
नाजुक सा फसाना है ।
ये इश्क नही आसां ....,
इतना तो समझ लिजिये।
इक आग का दरिया है ,
और डूब के जाना है ।
या वो खफा है हमसे ,
या हम है खफा उनसे ।
कल उनका जमाना था,
आज अपना जमाना है ।
ये किसका तसव्वुर है ,
ये किसका फसाना है ।
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