12 सितम्बर/ *पुण्य-तिथि*
तमिल काव्य में राष्ट्रवादी स्वर : *सुब्रह्मण्य भारती*
भारतीय स्वतंत्रता संग्राम से देश का हर क्षेत्र और हर वर्ग अनुप्राणित था ऐसे में कवि भला कैसे पीछे रह सकते थे, तमिलनाडु में इसका नेतृत्व कर रहे थे सुब्रह्मण्य भारती, यद्यपि उन्हें अनेक संकटों का सामना करना पड़ा; पर उनका स्वर मन्द नहीं हुआ।
सुब्रह्मण्य भारती का जन्म एट्टयपुरम् (तमिलनाडु) में 11 दिसम्बर, 1882 को हुआ था, पाँच वर्ष की अवस्था में ही वे मातृविहीन हो गये। इस दु:ख को भारती ने अपने काव्य में ढाल लिया इससे उनकी ख्याति चारों ओर फैल गयी। स्थानीय सामन्त के दरबार में उनका सम्मान हुआ और उन्हें *भारती* की उपाधि दी गयी 11 वर्ष की अवस्था में उनका विवाह कर दिया गया। अगले साल पिताजी भी चल बसे, अब भारती पढ़ने के उद्देश्य से अपनी बुआ के पास काशी आ गये।
चार साल के काशीवास में भारती ने संस्कृत, हिन्दी और अंग्रेजी भाषा का अध्ययन किया, अंग्रेजी कवि शेली से वे विशेष प्रभावित थे। उन्होेंने एट्टयपुरम् में *शेलियन गिल्ड* नामक संस्था भी बनाई तथा *शेलीदासन्* उपनाम से अनेक रचनाएँ लिखीं। काशी में ही उन्हें राष्ट्रीय चेतना की शिक्षा मिली, जो आगे चलकर उनके काव्य का मुख्य स्वर बन गयी काशी में उनका सम्पर्क भारतेन्दु हरिश्चन्द्र द्वारा निर्मित *हरिश्चन्द्र मण्डल* से रहा।
काशी में उन्होंने कुछ समय एक विद्यालय में अध्यापन किया। वहाँ उनका सम्पर्क श्रीमती डा. एनी बेसेण्ट से हुआ; पर वे उनके विचारों से पूर्णतः सहमत नहीं थे, एक बार उन्होेंने अपने आवास शैव मठ में महापण्डित सीताराम शास्त्री की अध्यक्षता में सरस्वती पूजा का आयोजन किया। भारती ने अपने भाषण में नारी शिक्षा, समाज सुधार, विदेशी का बहिष्कार और स्वभाषा की उन्नति पर जोर दिया अध्यक्ष महोदय ने इसका प्रतिवाद किया, फलतः बहस होने लगी और अन्ततः सभा विसर्जित करनी पड़ी।
भारती का प्रिय गान बंकिम चन्द्र का वन्दे मातरम् था, 1905 में काशी में हुए कांग्रेस अधिवेशन में सुप्रसिद्ध गायिका सरला देवी ने यह गीत गाया भारती भी उस अधिवेशन में थे। बस तभी से यह गान उनका जीवन प्राण बन गया, मद्रास लौटकर भारती ने उस गीत का उसी लय में तमिल में पद्यानुवाद किया, जो आगे चलकर तमिलनाडु के घर-घर में गूँज उठा।
सुब्रह्मण्य भारती ने जहाँ गद्य और पद्य की लगभग 400 रचनाओं का सृजन किया, वहाँ उन्होंने स्वदेश मित्रम, चक्रवर्तिनी, इण्डिया, सूर्योदयम, कर्मयोगी आदि तमिल पत्रों तथा बाल भारत नामक अंग्रेजी साप्ताहिक के सम्पादन में भी सहयोग किया। अंग्रेज शासन के विरुद्ध स्वराज्य सभा के आयोजन के लिए भारती को जेल जाना पड़ा। कोलकाता जाकर उन्होंने बम बनाना, पिस्तौल चलाना और गुरिल्ला युद्ध का भी प्रशिक्षण लिया, वे गरम दल के नेता लोकमान्य तिलक के सम्पर्क में भी रहे।
भारती ने नानासाहब पेशवा को मद्रास में छिपाकर रखा, शासन की नजर से बचने के लिए वे पाण्डिचेरी आ गये और वहाँ से स्वराज्य साधना करते रहे। निर्धन छात्रों को वे अपनी आय से सहयोग करते थे, 1917 में वे गांधी जी के सम्पर्क में आये और 1920 के असहयोग आन्दोलन में भी सहभागी हुए स्वराज्य, स्वभाषा तथा स्वदेशी के प्रबल समर्थक इस राष्ट्रप्रेमी कवि का 12 सितम्बर, 1921 को मद्रास में देहान्त हुआ।
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प्रस्तुति
"पं.खेमेश्वर पुरी गोस्वामी"
धार्मिक प्रवक्ता-ओज कवि
प्रदेश संगठन मंत्री एवं प्रवक्ता
अंतरराष्ट्रीय युवा हिंदू वाहिनी छत्तीसगढ़
८१२००३२८३४-/-७८२८६५७०५७
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