12 सितम्बर/ *पुण्य-तिथि*
अनुशासन एवं व्यवस्था प्रिय : *डा. रामकुमार जी*
संघ के जीवनव्रती प्रचारक डा. रामकुमार जी का जन्म 1928 ई. में ग्राम बिलन्दापुर (कन्नौज उ.प्र.) में हुआ था उनके पिता श्री गंगाप्रसाद कटियार तथा माता श्रीमती रामदुलारी थीं। उनकी शिक्षा अपने गांव बिलन्दापुर तथा फिर निकटवर्ती ठठिया, तिर्वा और कन्नौज में हुई संस्कृत तथा आयुर्वेद के प्रति रुझान होने के कारण इसके बाद वे हरिद्वार आ गये, 1950 में श्री गुरुकुल आयुर्वेद संस्थान से उन्होंने बी.एम.एस. की उपाधि प्राप्त की।
छात्र जीवन में ही उनका सम्पर्क संघ से हो गया था संघ के प्रखर विचार, रोचक कार्यक्रम और कार्यकर्ताओं के व्यवहार से प्रभावित होकर क्रमशः उनका झुकाव संघ की ओर बढ़ता चला गया, तीनों वर्ष के संघ शिक्षा वर्ग का प्रशिक्षण पूरा कर 1958-59 में वे प्रचारक बन गये।
रामकुमार जी हमीरपुर, उन्नाव, जौनपुर आदि में जिला प्रचारक रहे, आपातकाल के समय उन्हें लखनऊ महानगर का काम दिया गया। उस समय प्रचारकों को भूमिगत रहकर जन जागरण करने का आदेश था अतः वे लखनऊ में संगठन की गतिविधियों में संलग्न रहे; पर पुलिस की नजरों में आ जाने के कारण उन्हें तीन महीने जेल में भी रहना पड़ा, आपातकाल समाप्ति के बाद वे गोंडा और फिर झांसी में विभाग प्रचारक रहे।
रामकुमार जी के कुछ वर्ष बड़े कष्ट में बीते, उनके सिर पर थोड़ी सी हवा लगने से भी भयानक सिर दर्द होने लगता था। इतना ही नहीं, तो उनकी गर्दन भी काफी समय तक जाम रही उसे दायें-बायें हिलाने से भी बहुत दर्द होता था, वे भोजन भी बड़ी कठिनाई से कर पाते थे, चिकित्सक होने के बावजूद वे स्वयं और लखनऊ के चिकित्सक भी इस रोग को नहीं पकड़ सके। अंततः दिल्ली में एक चिकित्सक ने एक्यूपंक्चर के माध्यम से सिर की किसी नस को ठीक किया तब जाकर उन्हें इस कष्ट से मुक्ति मिली।
रामकुमार जी चूंकि स्वयं बालपन में ही स्वयंसेवक बने थे, अतः उन्हें बच्चों के बीच काम करने में बहुत आनंद आता था बच्चे भी उनके पास बैठकर कहानी तथा प्रेरक प्रसंग सुनना पसंद करते थे। उनकी मान्यता थी कि बालपन में पड़े हुए संस्कार जीवन भर अमिट रहते हैं अतः वे सब कार्यकर्ताओं से बाल शाखा पर ध्यान देने का बहुत आग्रह करते थे। उनका हस्तलेख भी मोतियों जैसा था अतः उनके पत्रों को लोग वर्षों तक संभाल कर रखते थे।
उनके जीवन में अनुशासन और व्यवस्था सर्वत्र दिखाई देती थी, वर्षों तक वे संघ शिक्षा वर्ग में प्रथम और फिर द्वितीय वर्ष के शारीरिक प्रमुख रहे। कुछ समय उन पर *सेवा भारती* का काम भी रहा, फिर उन्हें अवध प्रान्त का बौद्धिक प्रमुख बनाया गया। इस दौरान उन्होंने बहुत व्यवस्थित बौद्धिक पुस्तिकाएं बनाईं, जिनसे स्वयंसेवकों और शाखा के कार्यक्रमों की गुणवत्ता में सुधार हुआ।
उन्होंने सैकड़ों महामानवों का संक्षिप्त जीवन परिचय देने वाली पुस्तक *पुण्य प्रवाह हमारा* भी लिखी इसे लखनऊ के लोकहित प्रकाशन ने तीन खंड में प्रकाशित किया है। शाखा में प्रार्थना, सुभाषित, अमृत वचन आदि नियमित तथा सही उच्चारण के साथ हो, इस पर वे बहुत ध्यान देते थे।
रामकुमार जी भारती भवन, लखनऊ में रहते थे कार्यालय की दिनचर्या का वे कड़ाई से पालन करते थे। एक दिन जब वे दोपहर भोजन और फिर शाम की चाय पर नहीं पहुंचे, तो सबको आश्चर्य हुआ। उनके कक्ष में जाकर देखा, तो उन्हें पक्षाघात हो चुका था। तुरन्त उन्हें चिकित्सालय में भर्ती कराया गया, जहां अगले दिन 12 सितम्बर, 2000 को उनका प्राणांत हो गया।
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प्रस्तुति
"पं.खेमेश्वर पुरी गोस्वामी"
धार्मिक प्रवक्ता-ओज कवि
प्रदेश संगठन मंत्री एवं प्रवक्ता
अंतरराष्ट्रीय युवा हिंदू वाहिनी छत्तीसगढ़
८१२००३२८३४-/-७८२८६५७०५७
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