*मै भगवा बोल रहा मेरा दर्द सुनोगे !!!!!!!*
*मैं भगवा हूं,जो भारतवर्ष के प्राचीन इतिहास का साक्षी रहा है। गूंगा हूं, पर सुनता हूं , देखता हूं। मैं मूक (जो बोल नहीं पाता )गवाह हूं।*
*इस प्राचीन देश के उत्थान तथा पतन का।*
*जब एक फिल्म अभिनेता "कमल हासन" ने कहा कि मुझे सभी रंग पसंद है; लेकिन "भगवा" पसंद नही है, तो हृदय विदारित हो गया। मैं फिर जोर-जोर से रोने लगा और रोते-रोते इतिहास अपने "स्वर्णिम इतिहास" में खो गया।*
*...मैं वही भगवा हुं जो वैदिक काल में कभी देवराज इन्द्र के "ऐरावत" पर लहराया करता था। जब ऋषि-मुनी यज्ञ करते थें तो मुझे छोटे-छोटे आकार में बनाकर देवताओं पर चढ़ाया जाता था।*
*...मेरा निर्माण और नामकरण ऋषिओं ने किया था। उषाकाल के सूर्य और अग्नि के रंग को देखकर ऋषिओं ने उसी रंग में मुझे रंग डाला। देवी उषा, भग की बहन थी, इसलिए ऋषिओं ने मेरा नाम "भगवा" कर दिया क्योंकी उषाकाल के समय आकाश और ब्रह्मांड दोनों ही भगवा रंग में रंगा रहता है। ऋग्वेद के मंत्रों में मुझे अरूणा कहा गया।*
*...वैदिक काल में मैं ऋषिओं के कुटीओं में लहराया करता था, फिर उंचे-उंचे महलों पर भी मुझे स्थान दिया गया।*
*..रामायणकाल में श्री राम ने भी मुझे बहुत सत्कार किया। जब राम-रावण युद्ध शुरू हुआ तो सैनिकों की एक टुकड़ी बना दी गयी थी, जो मुझे थामे हुए आगे-आगे चलते थे और पीछे-पीछे श्री राम की सेना चलती थी। मेरा रंग, श्री राम के सेना के पहचान था।*
*..महाभारतकाल में श्री कृष्ण ने भी मैंने अपनी पहचान बनाई। उन्होनें अपने रथ पर मुझमें हनुमान के चित्र अंकित कर लहराया। युधिष्ठीर के रथ पर मुझमें "नछत्र" से युक्त "चंद्रमा" को अंकित किया गया।*
*..मध्यकाल में भी कई राजाओं ने मेरा मान रखा। अनेक राजमहलों के उंचे शिखर पर हमें लहराया जाता था। किसी ने मुझ पर तलवार का चित्र उकेर दिया तो किसी ने सूर्य का, किसी ने चंद्रमा का, किसी ने स्वास्तिक का, तो किसी ने वृक्ष का, तो किसी राजा ने अपने कुलदेवता का। मुझ पर उकेरा गया चित्र ही राजाओं के अपना-अपना पहचान होता था।*
*..फिर भक्तिकाल में, शिव के भक्तों ने मुझपर नंदी का चित्रांकन कर "नंदी ध्वज" बोला तो विष्णु के भक्त वैष्णवों ने गरूड़ को अंकित कर, "गरूड़ ध्वज"। उसी तरह देवी सम्प्रदाय वालों ने सिंह का प्रतिक देकर "सिंह ध्वज" बनाया।*
*..जगन्नाथ मंदिर के शिखर पर मुझमें "अर्धचंद्र" अंकित किया गया, तो दक्षिण के मंदिरों में हमारे बीचोबीच "ॐ" को चित्रांकन कर उसके शिखर पर फहराया गया। गुजरात के द्वारिकाधीश मंदिर के शिखर पर "चक्र" के चित्र के साथ लहराया गया।*
*..इसके अलावा भारतवर्ष के युद्धकाल में मेरा नाम 'भीम ध्वज' के रूप अलग प्रयोग संकेत के रूप में होता था। हमें युद्ध में तेजी लाने के संकेत के रूप लहराया जाता था।*
*मेरे ध्वज के तले भारतवर्ष के भूमि पर अनेक युद्ध हुए हैं। मैं उन युद्धों का मूक साक्षी हुं। चंद्रगुप्त के राजधानी पाटलिपुत्र के भवननुमा शिखर पर भी मुझे उचित स्थान दिया गया।*
*मुझे समुद्रगुप्त, हर्षवर्धन, विक्रमादित्य, यशोवर्धन,पृथ्वीराज चौहान आदि राजाओं ने भी बहुत मान बढाया। मुगलकाल में छत्रपति शिवा जी, महाराणा प्रताप और राजा कृष्ण देवराय ने अपना-अपना प्रतीक बनाया।नाविकों ने अपने-अपने नावों पर भी मुझे लहराने की कोई कसर नही छोड़ा।*
*..भारतवर्ष में जब अंग्रेज आए तो मुझे दरकिनार किया गया। फिर मेरे लिए खुशी के दिन तब आया जब 1926 में करांची में कांग्रेस के अधिवेशन में मुझे "राष्ट्रध्वज" बनाने का प्रस्ताव किया लेकिन वह खुशी क्षणिक थी, अनेक "मुस्लिम नेताओं" ने विरोध कर दिया।*
*एक बार फिर जब देश को राष्ट्रध्वज चुनने की बात आई, तो सरदार वल्लभ भाई पटेल , डा.पट्टाभि सीतारमैया, डा.ना.सु.हर्डीकर, आचार्य काका कालेलकर, मास्टर तारा सिंह आदि ने एक स्वर में यह मांग की "राष्ट्रध्वज भगवा" ही होना चाहिए लेकिन "गांधी जी" ने मुझे राष्ट्रध्वज के रूप में रखने से मना कर दिया।*
*तब से दरकिनार पड़ा हुं। मेरे दर्द को समझकर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने अपना पहचान बनाया।*
*.. मेरी पहचान कभी वीरता, त्याग और संस्कृति के प्रतीक के रूप में होता था। अचानक से 2008 के बाद मेरा पहचान भगवा आतंकवाद के रूप में होने लगा। इस दर्द से मै तभी से व्यथित हुं, मुझे न्याय चाहिए।*
*त्याग, तप, वीरता और संस्कृति के प्रतिक को "आतंक का प्रतीक" कैसे बना दिया गया ?*
*..अंत में यही कहना चाहुंगा*
*अपने ही नयनों से हमने अपना संसार जलते देखा।*
*अपना मधुवन जलते देखा अपना उपवन जलते देखा*
*बस्तियां जलाने वाले को कोई दोष न दे तो अच्छा है।*
*घर के दीपकों से हमने ये घर आंगन जलते देखा।।*
प्रस्तुति
"पं.खेमेश्वर पुरी गोस्वामी"
धार्मिक प्रवक्ता-ओज कवि
प्रदेश संगठन मंत्री एवं प्रवक्ता
अंतरराष्ट्रीय युवा हिंदू वाहिनी छत्तीसगढ़
८१२००३२८३४-/-७८२८६५७०५७
No comments:
Post a Comment