*इस धराधाम पर जन्म लेने के बाद प्रत्येक मनुष्य एक सुंदर एवं व्यवस्थित जीवन जीने की कामना करता है | इसके साथ ही प्रत्येक मनुष्य अपनी मृत्यु के बाद स्वर्ग जाने की इच्छा भी रखता है | मृत्यु होने के बाद जीव कहां जाता है ? उसकी क्या गति होती है ? इसका वर्णन हम धर्मग्रंथों में ही पढ़ सकते हैं | इन धर्म ग्रंथों को पढ़कर जो सारतत्व मिलता है उसके अनुसार मनुष्य अपने कर्मानुसार स्वर्ग एवं नर्क की प्राप्ति करता है | इस पृथ्वी पर परमात्मा ने सब कुछ इतना सुंदर बनाया है कि इस धरती को भी स्वर्ग कहा गया है | स्वर्ग एवं नर्क की अनुभूति मनुष्य जीवित रहते ही कर सकता है और करता भी है | गोस्वामी तुलसीदास जी ने एक क्षण के सत्संग को स्वर्ग से बढ़कर बताया है वहीं आचार्य चाणक्य स्वर्ग एवं नर्क इसी पृथ्वी पर बताते हुये लिखते हैं :--"यस्य पुत्रो वशीभूतो भार्या छन्दानुगामिनी ! विभवे यश्च सन्तुष्टस्तस्य स्वर्ग इहैव हि !!" अर्थात:- जिसका पुत्र आज्ञाकारी हो और स्त्री पति के अनुकूल आचरण करने वाली हो, पतिव्रता हो और जिसको प्राप्त धन से ही संतोष हो अर्थात् उसके पास जितना धन है वह उसी में संतुष्ट रहता हो ऐसे व्यक्ति के लिए स्वर्ग इसी धरती पर है | वहीं नर्क भी इसी धरती पर दिखाने का प्रयास करते हुए आचार्य चाणक्य ने कहा है :-- "अत्यन्तलेपः कटुता च वाणी दरिद्रता च स्वजनेषु वैरम् ! नीच प्रसङ्गः कुलहीनसेवा चिह्नानि देहे नरकस्थितानाम् !! अर्थात :- अत्यन्त क्रोध, कटु वाणी, दरिद्रता, स्वजनों से वैर, नीच लोगों का साथ, कुलहीन की सेवा - नरक की आत्माओं के यही लक्षण होते हैं ! कहने का तात्पर्य बस इतना ही है कि मनुष्य अपने जीते जी अपने कर्मों के द्वारा स्वर्ग एवं नर्क की अनुभूति इसी पृथ्वी पर कर सकता है |*
*आज के समाज का परिवेश एवं आचार्य चाणक्य के वचनों को देखा जाए तो कोई भी स्वर्ग जाने का अधिकारी होता नहीं दिख रहा है | आज जिस प्रकार पुत्रों द्वारा अपने माता - पिता का तिरस्कार करके उनको वृद्धावस्था में वृद्धाश्रम या फिर घर में ही उपेक्षित एवं तिरस्कृत जीवन जीने को विवश किया जा रहा है , घर की स्त्री को सम्मान ना दे कर के पराई स्त्रियों को कुदृष्टि से देखने एवं उनसे दुर्व्यवहार करने के समाचार जिस प्रकार प्रतिदिन मिल रहे हैं , उससे इस बात का अंदाजा लगाया जा सकता है कौन-कौन स्वर्ग जाने का अधिकारी बनता चला जा रहा है | मैं "आचार्य अर्जुन तिवारी" देख रहा हूं कि आज जिस प्रकार अधिकतर मनुष्य क्रोध के वशीभूत होकर के कटु वाणी का प्रयोग करते हैं एवं दुर्जनों का संग करके जिस प्रकार समाज को भयभीत करने का प्रयास कर रहे हैं वे सभी प्राणी आचार्य चाणक्य के वचन अनुसार नरक के ही अधिकारी हैं | ऐसे मनुष्यों से कभी भी परिवार समाज एवं देश के हित की कामना करना भी मूर्खता है | जो लोग अपने जीवनकाल में अपने कर्मों के द्वारा स्वयं के साथ परिवार एवं समाज को नारकीय परिवेश में ढकेल रहे हैं वे मृत्यु के बाद यदि थोड़े से पुण्य के बल स्वर्ग जाने की इच्छा रखते हैं तो यह हास्यास्पद ही कहा जा सकता है |*
*अपने कर्मों के द्वारा मनुष्य इसी धरती पर स्वर्ग एवं नर्क की रचना कर सकता है ! तो आईये नारकीय जीवन से बचते हुए स्वर्ग के आनंद को प्राप्त करने का प्रयास करें |*
आपका अपना
"पं.खेमेश्वर पुरी गोस्वामी"
धार्मिक प्रवक्ता-ओज कवि
प्रदेश संगठन मंत्री एवं प्रवक्ता
अंतरराष्ट्रीय युवा हिंदू वाहिनी छत्तीसगढ़
८१२००३२८३४-/-७८२८६५७०५७,
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