*पांडवों की माता : कुन्ती !!*
कुन्ती की युवावस्था भी सुख से व्यतीत नहीं हुई, पति की भी असमय मृत्यु हो गयी, क्योंकि पाण्डु राजा एक बार मन को काबू में नहीं रख सके, माद्रि के पास गये, और उनकी मृत्यु हो गयी, अब माद्रि ने कहा, बहन मेरी वजह से पति मरे हैं, मैं इनके साथ सती हो जाऊँगी, विचार करिये, एक ऐसी विधवा नारी, ऐसी विषम परिस्थिति में पाँच-पाँच पुत्रों को कैसे पाल सकती हैं?
जिसके पांच पुत्रों को मारने के लिये गांधारी के सौ पुत्र चौबीस घंटे प्रयत्न करते हैं, योजना बनाते है कि कैसे मारे? कभी जहर देकर, कभी पेड़ से गिराकर, कभी लाक्षागृह में जलाकर मारना चाहते हैं, कभी कुन्ती की पुत्रवधु को भरी सभा में निर्वस्त्र करके अपमानित करना चाहते हैं, चौपड़ में हराना चाहते हैं, बारह वर्ष का वनवास एक वर्ष का अज्ञात वास हुआ।
कुन्ती के जीवन का एक भी दिन सुख से नहीं बीता, भगवान् श्रीकृष्ण कहते है बुआजी आज तुम्हारे पुत्रों को सुख मिला है, विजयश्री प्राप्त हुई है, युधिष्ठिर राजगद्दी पर बैठे हैं, मैंने आज तुमसे कुछ मांगने को कहा तो, आज भी तुमने मांगा तो झोली पसारकर दुःख ही मांगा।
सुख ऊपर सिला पडो,
नाम हृदय से जाय।
बलिहारी तो दुःख की,
पल-पल नाम रटाय।।
ऐसे सुख को लेकर क्या करूं? जो परमात्मा को भुला दे, ऐसी सम्पत्ति को लेकर क्या करें जो कन्हैया की विस्मृति करा दे, ऐसे दुःख को तो बार-बार सिर पर रखना चाहिये जो कन्हैया की याद कराता है, मेरे गोविन्द की याद कराता हैं।
विपदोनैव विपदः सम्पदौ नैव सम्पदः।
विपद्नारायणविस्मृति सम्पन्नारायण स्मृतिः।।
विपत्ति को विपत्ति नहीं कहते, सम्पत्ति को सम्पत्ति भी नहीं कहते, गोविन्द को भूल जाना ही सबसे बड़ी विपत्ति और कन्हैया की याद बनी रहना ही सबसे बड़ी सम्पत्ति है।
कहत हनुमंत विपति प्रभू सोई।
जब तब भजन न सुमिरन होई।।
भागवत में लिखा है कि भगवान् के चिन्तन के बिना एक भी मिनट निकल जावे, उसके लिए पश्चाताप करो, मेरा ये समय व्यर्थ में क्यों निकला? माता कुन्ती ने इसलिए दुःख मांगा, यदि दुःख नहीं आता तो आज मेरी आँखों के सामने गोपाल कैसे होता? पग-पग पर मेरे पुत्रों पर और मेरे जीवन में दुःख आया, जब भी दुःख आया तुम्हें पुकारा और तुमने आकर हमें दर्शन दिया, हमारी रक्षा करी।
भगवान बोले, बुआजी, मैं दुःख अब तुम्हें नहीं दे सकता, बहुत दुःख भोगा है तुमने, कुन्ती बोली, तो कष्ट नहीं दे सकते हो तो एक काम कर सकते हो, क्या? बोली, स्नेह की डोरी को तोड़ दो, ये संसार रूपी स्नेह की डोरी जो है, मेरा, अपना, इस डोरी को तोड़ दो, मेरी पत्नी, मेरा बेटा, मेरा मकान।
सज्जनों! हम लोग कभी अपनी पत्नी और बेटे की माला फेरने के लिए बैठते है क्या? मेरी पत्नी मेरी पत्नी, या मेरा बेटा, मेरी दुकान, ऐसा माला पर जप करते हुए किसी को देखा है क्या? पत्नी के लिए माला नहीं फेरते फिर भी माला फेरते समय और चौबीसों घण्टे उसकी याद बनी रहती है, भगवान के लिए माला फेरने बैठते हैं तो फिर भी नींद आती है, तात्पर्य क्या हैं?
पत्नी को हम अपनी मानते हैं, संसार को अपना मानते हैं, भगवान् को अपना नहीं मानते इसलिये माला में नींद आती है, एक सेठजी किसी महाराज से बोले, महाराज क्या बताये? जब भी भजन करने, माला फेरने बैठता हूँ, नींद आ जाती है, गुरुदेव ने कहा, सच बताना नोटों की गड्डी गिनते समय नींद आती है? सेठ बोला, बनिया बेटा हूँ, नोट गिनते समय नींद कैसे आयेगी, अरे आती भी है तो उड़ जाती है।
मतलब क्या है? नोटों को तुम अपना मानते हो, भगवान को अपना नहीं मानते, जिसको अपना मानते है, उसकी याद हर पल बनी रहती है, इसलिये कुन्ती का परमात्मा के प्रति अपनत्व का भाव है, मेरा कन्हैया है, मेरा कृष्ण है, आज रात्रि में युधिष्ठिर जी रो रहे थे, बड़ा रूदन कर रहे थे, कन्हैया ने रात्रि भर युधिष्ठिर जी को बहुत समझाया, लेकिन उनकी समझ में नहीं आया।
युधिष्ठिर जी ने कहा इस राज्य के लिये कई माताओं को पुत्रहीन बना दिया, कई बहनों को भाई हीन बना दिया, कई स्त्रियों को विधवा बना दिया, यह राज सिंहासन रक्त रंजित लगता है, खून से भरा हुआ लगता है, ऐसा राज्य मुझे नहीं चाहिये।
सहज मिला सो दुध सम,
मांगे लेय सो पानी।
कह कबिर सो रक्त सम,
जामे खिंचा तानी।।
सहज, बिना मांगे मिले वो चीज दूध के समान है, मांग के लेना पानी के बराबर, यहां तक तो ठीक है पर कबीरजी तो कहते है कि जो वस्तु लड़ाई झगड़ा करके प्राप्त होती है वो तो खून के बराबर ही है, तो यह राज्य तो मैंने लड़ाई झगड़ा करके ही तो प्राप्त किया है।
भगवान् श्रीकृष्ण ने बहुत समझाया पर समझ में नहीं आया युधिष्ठिर जी के, तो भगवान ने सोचा कि मैं भीष्मपितामह के हृदय में प्रवेश कर, उनके श्री मुख से मैं इनको उपदेश कराऊं तो इनकी समझ में जल्दी आ जायेगा।
मेरे गोविन्द समस्त पांडवों को द्रौपदी को साथ लेकर भीष्म पितामह के पास आये, रोम-रोम में जिनके बाण लगे हुए हैं, सारा शरीर सैंकड़ों बाणों से विच्छेदन हो रखा है, एक-एक बूंद करके जिनके शरीर से सारा रक्त निकल चुका है, जब भीष्म पितामह ने पांडवों के मध्य गोविन्द को आते देखा, उनके नेत्रों से आँसू झर पड़े।
मन ही मन गोविन्द को प्रणाम किया, हाथ तो जोड़ नहीं सकते, नेत्रों से अश्रुप्रवाह बह चला, बोले, मेरी मृत्यु को सुधारने हेतु मेरे कन्हैया का आगमन हुआ है, मैं बड़ा भाग्यवान हूँ, मैं बड़ा पुण्यात्मा हूँ, श्री कृष्ण ने पितामह को प्रणाम किया, पितामह नमस्कार करता हूँ।
आपके पौत्र पांडव है, वो सभी राजा बन गये हैं, भारत के सम्राट हो गये हैं, आपके पास आये हैं प्रणाम करते हैं, द्रौपदी भी आयी है, इन्हें उपदेश करिये, आपके जीवन का जो लम्बा अनुभव है उसके माध्यम से इनका मार्ग प्रशस्त कीजिये, भीष्म पितामह ने कहा, सब कुछ जानते हुए भी, दूसरों को आदर देना तो कोई तुमसे सीखे केशव! मैं क्या उपदेश करूं? तुम आदेश करते हो तो अवश्य कहुंगा, भीष्म ने आँखें खोल कर पांडवों को देखा।
दान धर्मान् राजधर्मान् मोक्ष धर्मान् विभागशः।
भीष्म ने पाण्डवों को सबसे पहले बताया, बेटा तुम लोग भारत के राजा बने ये प्रसन्नता की बात है, लेकिन तुम गृहस्थ को आलसी नहीं होना चाहिये, ज्यादा से ज्यादा श्रम करके धन कमाये, खूब धन कमाना चाहिये, लेकिन जितना धन कमाये उसका दसवां भाग दान के लिए रखो।
तन पवित्र सेवा किये,
धन पवित्र कर दान।
मन पवित्र हरि भजनसों,
होत त्रिविध कल्यान।।
शरीर पवित्र होता है सेवा करने से, धन पवित्र होता है दान करने से और मन पवित्र होता है गोविन्द का कीर्तन करने से, अनीति का धन या जिस धन को जमा ही जमा करते रहेंगे, सत्कार्य के लिए खर्च नहीं करोगे तो उस धन में विकृति आ जाएगी, वह तो जाएगा पर सत्य कार्य या अच्छे काम में न लगकर बुरे कार्य के लिए खर्च होगा।
या तो परिवार में ऐसी बीमारी आ जाएगी उसमें खर्च हो जाएगा या कोर्ट कचहरी में या परिवार के बेटा बेटी अपाहिज या अर्धविकसित होंगे जिनके लिये जीवन भर खर्च करते रहो, धन को अच्छे कार्य में खर्च करना चाहिये, अपनी-अपनी हेसियत के अनुसार।
एक-एक गरीब बच्चे की सहायता करो, गोमाता की सेवा में कबूतरों के दाने में, अन्नदान के द्वारा किसी भी प्रकार थोड़ा-थोड़ा आपका पैसा धर्म में लगना चाहिये, क्योंकि अन्त समय में यही धन आप के साथ जाएगा, बाकी धन तो यहीं रह जाएगा।
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प्रस्तुति
"पं.खेमेश्वर पुरी गोस्वामी"
धार्मिक प्रवक्ता-ओज कवि
प्रदेश संगठन मंत्री एवं प्रवक्ता
अंतरराष्ट्रीय युवा हिंदू वाहिनी छत्तीसगढ़
८१२००३२८३४-/-७८२८६५७०५७
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