मैं एक ज़र्रा बुलंदी को छूने निकला था
हवा ने थम के ज़मीं पर गिरा दिया मुझ को...
सफ़ेद रंग की चादर लपेट कर मुझ पर
फ़सील-ए-शहर पे किस ने सजा दिया मुझ को...
पं.खेमेश्वर पुरी गोस्वामी
मुंगेली छत्तीसगढ़
८१२००३२८३४
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