*मनुष्य इस धरा धाम पर जन्म लेकर के जीवन भर अनेकों कृत्य करते हुए अपनी जीवन यात्रा पूर्ण करता है | इस जीवन अनेक बार ऐसी स्थितियां प्रकट हो जाती है मनुष्य किसी वस्तु , विषय या किसी व्यक्ति के प्रति इतना आकर्षित लगने लगता है कि उस वस्तु विशेष के लिए कई बार संसार को भी ठुकराने का संकल्प ले लेता है | आखिर यह मन किसी के प्रति इतना आकर्षित क्यों और कैसे हो जाता है ? यह स्वयं में एक रहस्य है | किसी के प्रति लगाव क्यों और कैसे उत्पन्न हो जाता है कभी-कभी मनुष्य स्वयं नहीं जान पाता | यही आकर्षण के सिद्धांत का रहस्य है | हमारे मनीषियों का मन के ऊपर बहुत ही विस्तृत वर्णन पढ़ने को प्राप्त होता है | किसी के प्रति लगाव या आकर्षण ऐसे ही नहीं पैदा हो जाता है , यह स्थिति प्रकट होने का एक विशेष कारण यह होता है कि मनुष्य जिस विषय , वस्तु या व्यक्ति के प्रति बारंबार अपने मन में चिंतन करता है , दिन रात उसी के विषय में विचार किया करता है तो उस व्यक्ति विशेष , विषय विशेष या वस्तु विशेष से उसका सहज लगाव हो जाता है | आकर्षण और लगाव का एक रहस्य यह भी कि किसी के प्रति यह लगाव या आकर्षण यदि सकारात्मक होता है तो मनुष्य नित्य नई उर्जा प्राप्त करते हुए उन्नति के पथ पर अग्रसर हो जाता है , परंतु यही लगाव जब नकारात्मकता का लबादा ओढ़कर के मन में घूमा करता है तो मनुष्य का पतन प्रारंभ हो जाता है | किसी के प्रति मन में उत्पन्न हुए प्रेम का सहज कारण यह आकर्षण ही होता है | मन का लगाव कब किससे हो जाएगा यह शायद मन भी नहीं जानता | मनुष्य को संचालित करने की शक्ति रखने वाला मन कभी-कभी इस आकर्षण के चक्रव्यूह में फंसकर इतना विवश हो जाता है कि इससे निकलने का मार्ग नहीं ढूंढ पाता | इससे निकलने का एक ही मार्ग है कि उस व्यक्ति या वस्तु के विषय में सोचना बंद कर दिया जाए अन्यथा जब बार-बार किसी का चिंतन किया जाएगा तो यह मन चुंबक की भांति उसी और दौड़ता रहेगा |*
*आज इस आकर्षण और लगाओ का अर्थ ही बदल कर रह गया है | आज समाज में जिस प्रकार का वातावरण देखा जा रहा है उसके अनुसार मनुष्य का लगाव आत्मिक कम शारीरिक ज्यादा ही दिखाई पड़ रहा है | आज अधिकतर लोग किसी के शारीरिक आकर्षण के जाल में फस कर के स्वयं की मर्यादा एवं पद को भी भूलने को तैयार है | बड़े-बड़े ज्ञानी - ध्यानी मन के इस रहस्य को समझ पाने में असफल ही रहे हैं | मैं "आचार्य अर्जुन तिवारी" सद्गुरुओं से अब तक प्राप्त ज्ञानप्रसाद के आधार पर यह कह सकता हूं कि मन बड़ा चंचल होता है इसको सदैव एक बिगड़े हुए घोड़े की तरह लगाम लगा कर रखना ही उचित है | प्राय: लोग बाबा तुलसीदास जी की एक चौपाई का उद्धरण देते हैं कि बाबा जी ने लिखा है :- कलि कर एक पुनीत प्रतापा ! मानस पुण्य होंहिं नहिं पापा !! लोग तर्क देते हैं कि कलयुग में मन से किए हुए पाप का फल नहीं मिलता है | परंतु विचार कीजिए यदि बार-बार मन को पाप की ओर जाने की छूट दे दी जाएगी , पाप के प्रति आकर्षित होने दिया जाएगा तो मानसिक पाप धरातल पर उतरने में बहुत ज्यादा समय नहीं लगेगा | इसलिए मन का लगाव सकारात्मक एवं नियंत्रित होना चाहिए | यद्यपि कभी-कभी इस पर मनुष्य का बस नहीं रह जाता है परंतु विवश हो जाने के बाद भी मनुष्य को धीरे-धीरे स्थिति नियंत्रित करने का प्रयास करना चाहिए |*
*किसी के विषय में कब , क्यों और कैसे यह मन आकर्षित हो गया यह जान पाना कठिन भी नहीं है | जब मनुष्य बार-बार किसी का चिंतन करेगा तो उसके प्रति लगाव और आकर्षण स्वमेव बढ़ ही जाता है |*
आपका अपना
"पं.खेमेश्वर पुरी गोस्वामी"
धार्मिक प्रवक्ता-ओज कवि
प्रदेश संगठन मंत्री एवं प्रवक्ता
अंतरराष्ट्रीय युवा हिंदू वाहिनी छत्तीसगढ़
८१२००३२८३४-/-७८२८६५७०५७
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