*तत्र पूर्वश्चतुर्वर्गो दम्भार्थम् अपि सेव्यते ।*
*उत्तरस्तु चतुर्वर्गो महात्मन्य् एव तिष्ठति ।।*
*भावार्थः--*
‘‘धर्म के आठ प्रकारों के मार्ग में प्रथम चार- यज्ञ, अध्ययन, दान और तपस्या दम्भ के लिये भी किये जाते हैं । परन्तु पिछले चार- मार्ग सत्य, सन्तोष, सहनशीलता और लोभ न करना तो महापुरूष में ही रहते हैं ।
यह विचार कर स्वतः का अवलोकन करना चाहिए कि हम जो कुछ भी धार्मिक कार्य कर रहे हैं, उसके पीछे मेरा भाव उद्देश्य क्या है । दुनिया को दिखाकर झूठी प्रशंशा प्राप्त करने के लिए या भगवत्प्राप्ति के लिए कर रहे हैं । जो उद्देश्य होगा वही फल प्राप्त होगा ।।
आपका अपना
"पं.खेमेश्वर पुरी गोस्वामी"
धार्मिक प्रवक्ता-ओज कवि
प्रदेश संगठन मंत्री एवं प्रवक्ता
अंतरराष्ट्रीय युवा हिंदू वाहिनी छत्तीसगढ़
८१२००३२८३४-/-७८२८६५७०५७
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