Wednesday, December 18, 2019

बाबा गुरु घासीदास जी

गुरू घासीदास जन्मदिन : 18 दिसम्बर 1756

जन्मभूमि गिरौदपुरी जिला बलौदाबाजार

*गुरू घासीदास* (जन्म 1756 : मृत्यु 1850) ग्राम गिरौदपुरी तहसील व जिला बलौदाबाजार में पिता महंगुदास जी एवं माता अमरौतिन के यहाँ जन्म हुआ था, गुरू घासीदास जी सतनाम समाज जिसे आम बोल चाल में *सतनामी समाज* कहा जाता है के *प्रवर्तक है* गुरूजी भंडारपुरी को अपना धार्मिक स्थल के रूप में संत समाज को प्रमाणित सत्य के शक्ति के साथ दिये; वहाँ गुरूजी के वंशज आज भी निवासरत है।

उन्होंने अपने समय की सामाजिक, आर्थिक विषमता, शोषण तथा जातिभेद को समाप्त करके मानव-मानव एक समान का संदेश दिये, इनसे समाज के लोग बहुत ही प्रभावित रहे हैं, उत्तर प्रदेश सचिवालय में कार्यरत श्रीमती सीमा गुप्ता भी वर्तमान में देश के समावेशी विकास के लिए अनेक सांस्कृतिक सामाजिक संस्थाओं केेे माध्यम से उल्लेखनीय कार्य कर रही हैं जो निश्चित रूप से ऐसे समाज सेवकों का प्रेरणा हीं है।

*विस्तृत जीवनी* सन् १६७२ में वर्तमान हरियाणा के नारनौल नामक स्थान पर साध बीरभान और जोगीदास नामक दो भाइयों ने सतनामी साध मत का प्रचार किया था, सतनामी साध मत के अनुयायी किसी भी मनुष्य के सामने नहीं झुकने के सिद्धांत को मानते थे, वे सम्मान करते थे लेकिन किसी के सामने झुक कर नहीं; एक बार एक किसान ने तत्कालीन मुगल बादशाह औरंगजेब के कारिंदे को झुक कर सलाम नहीं किया तो उसने इसको अपना अपमान मानते हुए उस पर लाठी से प्रहार किया जिसके प्रत्युत्तर में उस सतनामी साध ने भी उस कारिन्दे को लाठी से पीट दिया यह विवाद यहीं खत्म न होकर तूल पकड़ते गया और धीरे धीरे मुगल बादशाह औरंगजेब तक पहुँच गया कि सतनामियों ने बगावत कर दी है।

यहीं से औरंगजेब और सतनामियों का ऐतिहासिक युद्ध हुआ था, जिसका नेतृत्व सतनामी साध बीरभान और साध जोगीदास ने किया था, युद्ध कई दिनों तक चला जिसमें शाही फौज मार निहत्थे सतनामी समूह से मात खाती चली जा रही थी, शाही फौज में ये बात भी फैल गई कि सतनामी समूह कोई जादू टोना करके शाही फौज को हरा रहे हैं; इसके लिये औरंगजेब ने अपने फौजियों को कुरान की आयतें लिखे तावीज भी बंधवाए थे लेकिन इसके बावजूद कोई फरक नहीं पड़ा था; लेकिन उन्हें ये पता नहीं था कि सतनामी साधों के पास आध्यात्मिक शक्ति के कारण यह स्थिति थी।

चूंकि सतनामी साधों का तप का समय पूरा हो गया था और वे गुरू के समक्ष अपना समर्पण कर वीरगति को प्राप्त हुए, जिन लोगों का तप पूरा नहीं हुआ था वे अपनी जान बचा कर अलग अलग दिशाओं में भाग निकले थे, जिनमें घासीदास का भी एक परिवार रहा जो कि महानदी के किनारे किनारे वर्तमान छत्तीसगढ़ तक जा पहुंचा था, जहाँ संत घासीदास जी का जन्म हुआ औऱ वहाँ पर उन्होंने सतनाम पंथ का प्रचार तथा प्रसार किया।

गुरू घासीदास का जन्म 1756 में बलौदा बाजार जिले के गिरौदपुरी में एक गरीब और साधारण परिवार में पैदा हुए थे उन्होंने सामाजिक कुरीतियों पर कुठाराघात किया; जिसका असर आज तक दिखाई पड़ रहा है, उनकी जयंती हर साल पूरे छत्तीसगढ़ में 18 दिसम्बर को मनाया जाता है।

गुरू घासीदास जातियों में भेदभाव व समाज में भाईचारे के अभाव को देखकर बहुत दुखी थे, वे लगातार प्रयास करते रहे कि समाज को इससे मुक्ति दिलाई जाए, लेकिन उन्हें इसका कोई हल दिखाई नहीं देता था, वे सत्य की तलाश के लिए *गिरौदपुरी के जंगल में छाता पहाड़ पर समाधि लगाये* इस बीच गुरूघासीदास जी ने गिरौदपुरी में अपना आश्रम बनाया तथा सोनाखान के जंगलों में सत्य और ज्ञान की खोज के लिए लम्बी तपस्या भी की।

बाबा जी को ज्ञान की प्राप्ति छतीसगढ़ के रायगढ़ जिला के सारंगढ़ तहसील में बिलासपुर रोड में स्थित एक पेड़ के नीचे तपस्या करते वक्त प्राप्त हुआ माना जाता है जहाँ आज गुरु घासीदास पुष्प वाटिका की स्थापना की गयी है *…*..

गुरू घासीदास पशुओं से भी प्रेम करने की सीख देते थे, वे उन पर क्रूरता पूर्वक व्यवहार करने के खिलाफ थे, सतनाम पंथ के अनुसार खेती के लिए गायों का इस्तेमाल नहीं किया जाना चाहिये।

गुरू घासीदास के संदेशों का समाज के पिछड़े समुदाय में गहरा असर पड़ा, सन् 1901 की जनगणना के अनुसार उस वक्त लगभग 4 लाख लोग सतनाम पंथ से जुड़ चुके थे और गुरू घासीदास के अनुयायी थे।

छत्तीसगढ़ के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम सेनानी वीर नारायण सिंह पर भी गुरू घासीदास के सिध्दांतों का गहरा प्रभाव था, गुरू घासीदास के संदेशों और उनकी जीवनी का प्रसार पंथी गीत व नृत्यों के जरिए भी व्यापक रूप से हुआ, *यह छत्तीसगढ़ की प्रख्यात लोक विधा भी मानी जाती है।*

सत्गुरू घासीदास जी की *सात शिक्षाएँ हैं*-

(1) सतनाम पर विश्वास रखना।

(2) जीव हत्या नहीं करना।

(3) मांसाहार नहीं करना।

(4) चोरी, जुआ से दूर रहना।

(5) नशा सेवन नहीं करना।

(6) जाति-पाति के प्रपंच में नहीं पड़ना।

(7) व्यभिचार नहीं करना।

सत्य एवं अहिंसा
धैर्य
लगन
करूणा
कर्म
सरलता
व्यवहार
ये उनके आदर्श रहे हैं *…*..

जयहिंद : *भारत माता की जय*
🕉🐚⚔🚩🌞🇮🇳⚔🌷🙏🏻

                   आपका अपना
             "पं.खेमेश्वर पुरी गोस्वामी"
            धार्मिक प्रवक्ता-ओज कवि
                  मुंगेली छत्तीसगढ़
          प्रदेश संगठन मंत्री एवं प्रवक्ता
   अंतरराष्ट्रीय युवा हिंदू वाहिनी छत्तीसगढ़
    ८१२००३२८३४-/-७८२८६५७०५७

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