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*प्रलये भिन्नमर्यादा भवन्ति किल सागराः।*
*सागरा भेदमिच्छन्ति प्रलयेऽपि न साधवः।।*
भावार्थ: *जिस सागर को हम इतना गम्भीर समझते हैं, प्रलय आने पर वह भी अपनी मर्यादा भूल जाता है और किनारों को तोड़कर जल-थल एक कर देता है; परन्तु साधु अथवा सज्जन पुरुष संकटों का पहाड़ टूटने पर भी श्रेठ मर्यादाओं का उल्लंघन नहीं करता। अतः साधु (सज्जन) पुरुष सागर से भी महान होता है।*
*आपका आज का दिन मंगलमय रहे।*
*🙏🌹🚩सुप्रभातम् 🚩🌹🙏*
*वन्दे मातरम्*🚩🚩
आपका अपना
"पं.खेमेश्वर पुरी गोस्वामी"
धार्मिक प्रवक्ता-ओज कवि
मुंगेली छत्तीसगढ़
प्रदेश संगठन मंत्री एवं प्रवक्ता
अंतरराष्ट्रीय युवा हिंदू वाहिनी छत्तीसगढ़
८१२००३२८३४-/-७८२८६५७०५७
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