कृन्दन करतीं आज दिशायें,भरे पाप के घट देखो,
डरे हुए हैं गली बगीचे,आतंकित पनघट देखो,
मानवता के मूल्य गिरे हैं,दानवता के भाव बढ़े,
राष्ट्र भक्ति की छोड़ किताबें,युवा फेसबुक आज पढ़े,
परिधान बदलते हैं ऐसे,जैसे मौसम बदल रहे,
घात लगाए अंधकार में,कई भेड़िये टहल रहे,
मासूम बच्चियों को भी अब,नहीं छोड़ते दानव हैं,
वहसी दैत्य नराधम केवल,कहनें को ही मानव हैं,
करबद्ध निवेदन करता हूँ,सब सन्ताप मिटा जाओ ।।
एक बार इस धरती पर फिर,हे परसुराम आ जाओ ।।(1)
इक्कीस बार इस धरती को,मुक्ति दिलाई पापों से,
एक बार फिर राष्ट्र बचालो,कलयुग के इन साँपों से,
हर ओर दिखाई देता है,नंगा नर्तन हिंसा का,
बापू नें कर दिया नपुंसक,देकर सबक अहिंसा का,
जातिवाद की ज्वाला सबको,धीरे धीरे निगल रही,
तू तेरा मैं मेरा में ही,कुण्ठा करवट बदल रही,
ऐसी आँधी चली देश में,संस्कृति के वट उखड़ रहे,
अनाचार की ज्वाला में वन,सदाचार के उजड़ रहे,
भारत भू पर सदाचार का,फिर से वृक्ष लगा जाओ ।।(2)
एक बार इस धरती पर फिर,हे,,,,,,,,
किलप रहीं हैं कितनी गायें,कटती बूचड़खानें में,
भर खर्राटे रक्षक सोते,पाँव पसारे थानें में,
विप्र धेनु सुर सन्त हेतु ही,मनुज रूप हरि नें धारे,
जब जब दैत्य बढ़े धरती पर,एक एक कर सब मारे,
नहीं सुरक्षित आज द्रोपदी,नहीं सुरक्षित सीता है,
संकट में गौ गंगा नारी,संकट में अब गीता है,
आज हिन्द में पुनः चतुर्दिक,सहसबाहु की फौज खड़ी,
एक बार फिर परसुराम की,राह निहारे क्रन्द घड़ी,
भारत की इस धर्म भूमि पर,धर्म ध्वजा फहरा जाओ ।।(3)
एक बार इस धरती पर फिर,हे,,,,,,,,
काट न पाया कोई अब तक,आतंकवाद की चोटी,
गरम तवे पर सेंक रहे हैं,अपनी अपनी सब रोटी,
नरसंहार मचा चौतरफा,सेना पर पत्थरबाज़ी,
अपनें अपनें राग अलापें,उछल उछल पंडित काज़ी,
क्रंदन करती भारत माता,राह तुम्हारी देख रही,
असुरों के सन्ताप झेलती,काँप रही है आज मही,
धोते धोते पाप सभी के,अब हो रही मलिन गंगा,
आज़ादी को कोस रहा है,भारत का राष्ट्र तिरंगा,
दुनिया से आतंकवाद का,नाम निसान मिटा जाओ ।।(4)
एक बार इस धरती पर फिर,हे,,,,,,,,
©"पं.खेमेश्वर पुरी गोस्वामी"®
धार्मिक प्रवक्ता-ओज कवि
डिंडोरी-मुंगेली-छत्तीसगढ़
8120032834/7828657057
No comments:
Post a Comment