वो सारी बस्ती जला रहा है ।
पर अपना दामन बचा रहा है।।
नहीं बचेगी किसी की हस्ती ।
बिसात ऐसी बिछा रहा है ।।
वो घोल कर दिल में सबके नफ़रत।
जहां से उल्फ़त मिटा रहा है।।
वो दोष औरों के सर पे मढ़कर।
बेदाग़ ख़ुद को दिखा रहा है।।
ये किसको है रोशनी से नफ़रत।
ये कौन दीये बुझा रहा है।।
'खेमेश्वर ' कैसे बचेगी उल्फ़त ?
मुझे ये ही ग़म सता रहा है !।
©"पं.खेमेश्वर पुरी गोस्वामी"®
धार्मिक प्रवक्ता-ओज कवि
डिंडोरी-मुंगेली-छत्तीसगढ़
8120032834/7828657057
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