* शायर मुनव्वर राना के सम्मान में*
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नफ़रत के हवाओं संग, जमात के धुन में बह गए
शायर था जो कल तक, कातिलों के होकर रह गए.
बदल गया पुरा वक्त ही, पर बदला नहीं जनाब यहां
मजहब की रस्सी गले में डाल, माया मोह में झह गए.
गुरूर हो चला शोहरत का,सच को कहना भूल गए
चक्कर में आकर जाहिलों के, यूं फंसकर ही रह गए.
जरूरत थी जब कोहरे के खिलाफ जंग लड़ने की
जानें कैसे, भटक गया, बद बेहोश होकर रह गए..
मजहब के खातिर प्यार तो देखो शायर डरा हुआ
इंसानियत की बातें भुल, मुसलमान होकर रह गए.
जरुरत थी जब भटके जेहादियों को राह दिखाने की
खुद मुंह मोड़ लिया देश से मस्जिद से प्रेम कह गए..
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आपका अपना
"पं.खेमेश्वर पुरी गोस्वामी"
धार्मिक प्रवक्ता-ओज कवि
मुंगेली छत्तीसगढ़
८१२००३२८३४-/-७८२८६५७०५७
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