Friday, April 24, 2020

आज गलियां सब हैं खाली मौन हर संवाद है ।

आज गलियां सब हैं खाली मौन ,,,,,,,,,,,,,,,,!!!

आज गलियां सब हैं खाली मौन हर संवाद है ।
सब  सिमटे  सिमटे से हैं कहां वाद विवाद है ।
आज गलियां सब हैं खाली मौन ,,,,,,,,,,,,,,,,!!!

ऐसा ही होता जब छलना अनजानी आती है ।
निराशा आती तब आशा जलती सी जाती है ।
किधर मौन  हो हैं  जाते वे बजते गीत सुहाने ।
खोजने पे   भी नजर नहीं आते वे यार पुराने ।
हम भी हैं  सामिल नहीं कहीं हम अपवाद हैं ।
आज गलियां सब हैं खाली मौन ,,,,,,,,,,,,,,,,!!!

इक अनजानी  अनचाही  रिक्त्तता ने घेरा है ।
इस चार दिन की जिंदगी में क्या तेरा मेरा है ।
करते हैं  कहीं पे गुजर कुछ दिन का फेरा है ।
धुंधला धुंधला सा कैसा चित्र उसने उकेरा है ।
मंदिरों के पट हैं बंद नहीं  वहां प्रणव नाद हैं ।
आज गलियां सब हैं खाली मौन ,,,,,,,,,,,,,,,,!!!

उजियारे  का  चांद गगन  में चढ़ के रोता है ।
छोंड़  के  हमें भाग्य भरोसे वह भी सोता है ।
अंधियारे  से  डर  जाने किधर उजियारा है ।
कैसा दौर दुनिया का  हर ओर अंधियारा है ।
सब हैं मौन से  अनजाना  कोई अवसाद है ।
आज गलियां सब हैं खाली मौन ,,,,,,,,,,,,,!!!

इच्छाएं   पर आज  बंदिसें  कोई अज्ञात है ।
जानें किधर खोए सब प्रख्यात विख्यात हैं ।
हो गई भोर बिना आभा के दुखी प्रभात है ।
शोर थम  गए  जो दिखता है वह प्रलाप है ।
सबके  दिलो  में छाया अनजाना संताप है ।
आज गलियां सब हैं खाली मौन ,,,,,,,,,,,,!!!

         ©"पं.खेमेश्वर पुरी गोस्वामी"®
            धार्मिक प्रवक्ता-ओज कवि
             डिंडोरी-मुंगेली-छत्तीसगढ़
       8120032834/7828657057

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