*इस दृश्य मान जगत में जन्म मरण का खेल अभिराम चल रहा है। इस प्रकृति के जादू घर में कुछ भी स्थिर या नित्य नहीं है।*
*अंत में आत्मा युक्त सूक्ष्म- शरीर से वियुक्त होकर तो वह सर्वथा घृणित ,हेय , हो जाता है। एवं हम उसे श्मशान में ले जाकर फूक डालते हैं या भीषण सुनसान स्थान में जमीन खोदकर गाड़ देते हैं। यही तो परिणाम है,, इस शरीर का।*
*आज प्यारी स्त्री, प्राण प्रियतम पति, श्रद्धास्पद माता- पिता,अभिन्न हृदय मित्र, प्राणों के पुतले प्यारे पुत्र आदि को परस्पर पाकर हम अपने को परम सुखी समझते हैं । सबके प्राण हंसते हैं ,,,,*
*परंतु दूसरे ही दिन मृत्यु के भयानक आघात से हमारे यह प्राण प्यारे आत्मीय हम से बिछड़ जाते हैं। हमारा प्यार का भंडार लूट लिया जाता है। हम "हाय हाय" करते हैं, रोते हैं चिल्लाते हैं ,,पर कुछ भी नहीं कर पाते , यही हाल संसार की सभी वस्तुओं का है।*
*आज हम अपने इस शरीर से माता-पिता ,स्त्री स्वामी, पुत्र कन्या ,आदि से प्रेम करते हैं,, उनके बिना क्षण भर भी नहीं रह पाते, उनका थोड़ा सा भी अदर्शन हमें असहाय हो जाता है।,,, पर जब हम उन्हें छोड़ जाते हैं और दूसरे चोले में पहुंच जाते हैं , तब उनका स्मरण भी नहीं करते। न मालूम कितनी बार कितनी योनियों में हमारे प्रिय माता-पिता ,स्त्री ,पुत्र, यस, कीर्ति, घर, जमीन हो चुके परंतु आज हमें उनका स्मरण तक नहीं है।*
*ऐसे विनाशी क्षण स्थायी संबंध को यथार्थ संबंध समझकर सुखी दुखी होना मूर्खता नहीं है तो क्या है ?,,,*
*भगवान हमारे सदा संगी हैं, प्राणों के प्राण हैं ,आत्मा के आत्मा है । उन प्रभु को छोड़कर हम अन्य किसी से भी प्रेम करेंगे, उसी में धोखा होगा ,,जिसको चाहेंगे ,वही दगा देगा।*
*जीवन मृत्यु उनका--- परमात्मा प्रभु का खेल है,,, सब में सब समय सब ओर से उन्हीं को देखो, पकड़ लो। तभी जीवन सार्थक होगा, तभी सुख के--- सच्चे सुख के--- परमानंद के यथार्थ दर्शन होंगे।*
सभी भगवत्प्रेमियों को आज दिवस की *"मंगलमय कामना"*----🙏🏻🙏🏻🌹
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आपका अपना
"पं.खेमेश्वर पुरी गोस्वामी"
धार्मिक प्रवक्ता-ओज कवि
मुंगेली छत्तीसगढ़
८१२००३२८३४-/-७८२८६५७०५७
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