Tuesday, April 14, 2020

कैसे गीत मल्हार लिखूं....!!

🙏🏻🌸🌼गीत🌼🌸🙏🏻


जलती ज्वाला देखी थी कल,इक तितली की पाँखों में,
भय का मातम देख रहा हूँ,आज भ्रमर की आँखों में,
उजड़े उजड़े उपवन देखे,सहमी सहमी कली मिली,
शोक समाहित पनघट सारे,सूनी चौखट गली मिली,

कोयल कागा एक हुए अब,कैसे मुक्त विचार लिखूँ ।।(1)
आग उगलती आज हवायें,कैसे गीत मल्हार लिखूँ ।।

काली काली करतूतों की,आज मिली छवि धुली धुली,
चंदन की खुशबू में जैसे,आ करके दुर्गन्ध घुली,
राजनीति की चौपालों पर,खेल अभी भी जारी है,
इसनें लूटा उसनें लूटा,अब अगले की बारी है,

साँप नेवले हैं गठबन्धित,किसमें* *भरा विकार लिखूँ ।।(2)
आग उगलती आज हवायें,,,,,

कितनें शीश चढाये हमनें,इंकलाब की भाषा में,
कितनें दीप बुझाये हमनें,एक किरण की आशा में,
हिन्दू मुस्लिम सिक्ख पारसी,एक पालकी लानें को,
हर एक यहाँ पर आतुर था,अपनें प्राण लुटाने को,

फाँसी के फन्दों पर लटके,बलिदानी परिवार लिखूँ ।।(3)
आग उगलती आज हवायें,,,,,,

महा-मूर्ति नें चाहा होता,सत्ता भी झुक सकती थी,
राजगुरू सुखदेव भगत की,फाँसी भी रुक सकती थी,
चाचा जी उस रोज अगर तुम,इतना भेद छुपा जाते,
अल्फ्रेड पार्क में शेखर को,गीदड़ घेर नहीं पाते,

घर में आग लगाने वाले,घर के ही गद्दार लिखूँ ।।(4)
आग उगलती आज हवायें,,,,,,

जब राजतिलक की बेला पर,कुटिल मंथरा ऐंठी हो,
बच्चों की रखवाली में घर,आकर डायन बैठी हो,
अपनें और पराये में तब,भेद बताना मुश्किल है,
घर के भेदी लंका ढाते,यह समझाना मुश्किल है,

सारे चेहरे एक सरीखे,फिर भी मैं प्रतिकार लिखूँ ।।
आग उगलती आज हवायें,,,,,,

*******************
          ©"पं.खेमेश्वर पुरी गोस्वामी"®
            धार्मिक प्रवक्ता-ओज कवि
             डिंडोरी-मुंगेली-छत्तीसगढ़
       8120032834/7828657057

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