Wednesday, May 6, 2020

दर्द की मधुशाला

कोरोना का दर्द भुला कर, 
चलो  दिखाएं   मधुशाला।
खुलने से पहले ही आकर,
बैठा    है    पीने    वाला।

चालीस दिन  भी बीत गए, 
होठों का चस्का  बाकी है।
इसी आस में  निकल पड़ा, 
खुलने से पहले मधुशाला।

सड़कें  भी   गुलजार   हुई, 
लाइन भी बढ़ती चली गई।
प्यास बुझाने की आशा में, 
आज   खड़ा  पीने  वाला।

अर्थव्यवस्था  खिसक  रही, 
असमंजस भी तो बना रहा।
कैसे संभलेगी  यह आखिर, 
चिंता   में   सबको   डाला।

नए   तरीके  ढूंढ  रहे  सब, 
मगर  कारगर   नहीं   हुए। 
लेकिन उसे बचाने खातिर, 
खड़ी  हो  गई   मधुशाला।

भेद-भाव व बैर भुलाकर, 
लाइन  में  सब  लगे हुए। 
जैसे  मानो  बरस रही हो 
आसमान  से  ही  हाला।

गुमसुम  चेहरे  लिए  उदासी, 
व्याकुल   ऐसे    दिखते   थे। 
जैसे सब कुछ फूंक चुकी हो,
बुझी  हुई  मन  की  ज्वाला।

नई  सुबह   की  नई  किरण, 
उम्मीदों  से  भर  कर  आई। 
मदिरालय खुलने की आहट, 
लेकर  आया  नया  उजाला।

अभी करोना काल चल रहा, 
कोशिश  है  छंट  जाने  की। 
बीच-बीच में  खुला करें बस, 
अपनी    प्यारी    मधुशाला।

कोरोना  के  भी  कुचक्र  में, 
मजहब   वाले    गीत   सुनें 
मगर यहां सब साथ खड़े हैं, 
खुली है जब से  मधुशाला।

मतवालों  में  देश  प्रेम का, 
नशा    दिखाई    देता   है। 
अर्थव्यवस्था   नहीं   डिगे, 
कोशिश में  हर पीनेवाला।

मतभेदों  व   ऊंच-नीच  की,
खाई  अब   तक  नहीं भरी। 
भरने की कोशिश में लेकिन, 
लगी    हुई    है   मधुशाला।

बिना पिए ही नशा चढ़ा हो, 
मन  चिंता   में   डूबा   हो। 
इससे तो अच्छा मदिरालय, 
जन्नत  सैर   कराने  वाला।

दिन भर का अवसाद लिए, 
घर  जाने   की  तैयारी थी। 
राहत लेकर सड़क किनारे, 
ख्वाहिश  में थी मधुशाला।

ऐसा     कोई    नहीं    मिला, 
जो बिना नशे  के  जीता हो। 
धन यौवन है नशा किसी का,
किसी  पे   हावी   मधुशाला।

देशी   ठर्रा    रम   व   बाईन,
अलग  अलग   है  नाम  मेरे। 
जिसकी जितनी जेब है भारी, 
सुलभ   उसे    वैसी    हाला।

कोई   नहीं  पराया  अपना, 
साकी   तेरी    नजरों    में। 
इसीलिए  भरपूर  पिलाओ, 
जो  भी  हो   पीने   वाला।

दुनिया की  तो  सोच है ऎसी,
उंगली   सदा    उठाने    की। 
फिर भी देखो आदि काल से, 
चली   आ   रही   मधुशाला।

जख्मों  में  मतभेद  भले  हो, 
लेकिन  दर्द  सभी   को   है।
है  इसका  उपचार  कहीं तो, 
चलो    दिखाएं   मधुशाला।

राजा  रंक  सभी  मस्ती   में, 
पैमाने    है  अलग - अलग। 
ना  जाने किस को भा जाए, 
कौन    सुरा   कैसा  प्याला।
  
पीने    और    पिलाने    का, 
जज्बा भी दिल में कायम है। 
साथ  न  हो  यदि पीने वाला, 
नहीं  चाहिए  मादक   हाला।

जाम   जाम    से    टकराए, 
बेहोशी  आंखों   से  छलके।
मदिरालय की  छत के नीचे, 
नाच रहा   हर  पीने  वाला।

जाने   कितने  मिले  दोस्त, 
जाने  कितने  बिछड़  गए। 
साथ  निभाया  जिसने मेरा
मदिरालय   वाली    हाला।

पीने  वालों  की  जमात  का, 
रुतबा   यहां    निराला    है। 
कोई  नहीं  किसी से कमतर, 
पी    लेता   है   जब   हाला।

अपनों  से   दिल   टूट   गया,
साहस  भी संग  में नहीं रहा। 
मदिरालय  आकर  के   देखो, 
हर    कोई     हिम्मत  वाला।

शौक बड़ी और उसके कायल, 
सदा    सुर्खियों     में    छाए।
इसी  शौक  से  मदिरालय  में, 
हर   दम   छलकी   है  हाला।

आए  जब  चुनाव  की  बेला, 
या   त्योहारों    का   मौसम।
जलने   वाले   सदा   लगाते, 
मदिरालय   में   ही    ताला।

जाने क्यों लोगों की नजर में, 
मदिरालय का रूप अलग है। 
लेकिन  जो  है   पीने   वाले, 
उनका  भी  अंदाज निराला।

मदिरा  तो  है  एक  बहाना, 
आदत    की    बीमारी   है। 
ऊपर से  साकी  ने  उसको, 
नए   रूप   में    है   ढाला।

अमन चैन की इस दुनिया में, 
खलल   हमें    मंजूर    नहीं।
किस्मत  वाला  ही  होता  है, 
पीने  और   पिलाने   वाला।

वैसे तो  दुनिया  की  ठोकर, 
औकात  दिखाने में  माहिर। 
जिसने  ठोकर  झेल  लिया, 
स्वागत में उसके मधुशाला।

नाज  करो   मदिरालय  पर, 
कितने आशिक कुर्बान हुए। 
फिर भी अब तक प्यासी है, 
अपनी   प्यारी   मधुशाला।

लुटा दिया सब अपना देखो, 
पीने    और    पिलाने    में। 
फिर भी ताक रही है उनको,
मादक   नजरों   से   हाला।

भरा नहीं जो अब तक तूने, 
कहां   गया    वो   पैमाना। 
साकी आकर तू ही बता दे, 
पूंछ   रहा    पीने    वाला।

मादकता  बदनाम  है  माना, 
दुनिया भर   की  नजरों  में।
महफिल की तो शान रही है, 
साकी  तेरी   मादक  हाला। 

अंगूर  खा   लिया  दोष  नहीं, 
किशमिश से भी परहेज नहीं। 
अंगूरी    चस्के     में     जाने, 
क्यों   इतना  गड़बड़  झाला।

         ©"पं.खेमेश्वर पुरी गोस्वामी"®
            धार्मिक प्रवक्ता-ओज कवि
             डिंडोरी-मुंगेली-छत्तीसगढ़
       8120032834/7828657057

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