Tuesday, May 5, 2020

सच्चा मर्द


देखे हैं जनाब हमने ऐसे भी, बहुत से बादल ।
होता नहीं ऐसे बादलों में,  किंचित भी जल ।।
जल हीन बादल होते हैं,  काले तथा घनघोर ।
गड़गड़ाते हैं जोर ज़ोर से,मचाते हैं बड़ा शोर ।।

बहुत जोर से ही वह, रहते हैं अक्सर गरजते ।
बूंद एक भी नहीं मगर, हैं वे कभी भी बरसते।।
देखे हैं हमने तो ऐसे भी, बहुत से मर्द जनाब ।
देते रहते हैं, बार बार अकारण मूछों पर ताव ।।

पुरुष प्रधान समाज में, रहते वे केवल गरजते ।
होता नहीं है दर्द मर्द को कभी,रहते  फरमाते।।
बात बात पर ही हैं, रहते खाते वह बड़ा ताव ।
दे नहीं चाहे उन्हें कोई,किंचित भी कोई भाव ।।

पड़ा नहीं सच्चे मर्द से, कभी भी उनका पाला ।
होता है सच्चा मर्द, इन्सान एक बड़ा ही आला।।
सच्चा मर्द होता कोई भी, नर हो अथवा नारी ।
हुईं भारत में बहुत नारी  थीं ,मर्दों पर भी भारी।।

नारी होते हुये भी थीं वास्तव में ही सच्ची मर्द।
देश तथा कौम के लिये था, दिल में उनके दर्द।।
थी उनमें से बहुचर्चित वीरांगना झांसी की रानी।
पिलाया अपनी तलवार से,  फिरंगियो को पानी।।

देख कर संकट निर्बलों पर, जाता है मर्द तड़प ।
ज़ालिम राक्षसों को, लेता है वह कसकर जकड़।।
करने में रक्षा महिलाओं की होती उनकी शान ।
बचाने में उनको, कर देते अपनी जान कुर्बान ।।

दर्द जालिमों को होता नहीं है,जनता सताने में ।
होता नहीं दर्द उनको,मासूमों को भी कटवाने में।।
जालिम से होती नहीं मगर सहन,शारिरिक पीर ।
अल्प कष्ट से ही, बहने लगता है नयनों से नीर ।।

सच्चा मर्द होता है वही,जानता जो दूजे का दर्द ।
दर्द दूसरे का जानता नहीं जो वह काहे का मर्द ।।

         ©"पं.खेमेश्वर पुरी गोस्वामी"®
            धार्मिक प्रवक्ता-ओज कवि
             डिंडोरी-मुंगेली-छत्तीसगढ़
       8120032834/7828657057

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