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निगाहों के हमने कई तक़रार देखे हैं!
उलझी सी चाहत कहीं प्यार देखे हैं।
अदाओं के पहलू और दायरे मन के!
टूटते भी आरजू यहां हजार देखे हैं।
जानते हैं इरादे लब ख़ामोश रहे यूँ!
मतलब के लगते हसीं बाजार देखे हैं।
चाहता है जमाना क्या हालात ऐसे में!
गूंजने की आवाजें दूर आसार देखे हैं।
फिरते यूँ चलते हर आहट पल के!
फासलों से छंटते यहां दीदार देखे हैं।
तबाही के मंजर जब अपने लाये तो!
दर्मियां में गिरते कई दीवार देखे हैं।
निगाहों के हमने कई तक़रार देखे हैं!
उलझी सी चाहत कहीं प्यार देखे हैं।
©"पं.खेमेश्वर पुरी गोस्वामी"®
धार्मिक प्रवक्ता-ओज कवि
डिंडोरी-मुंगेली-छत्तीसगढ़
8120032834/7828657057
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